मार्च 2020 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन के बाद देशव्यापी लॉक डाउन की घोषणा की थी तो उस वक्त देश में इतने बुरे हालात नहीं थे जितने आज (मार्च 2021) हैं. यानी ठीक 1 साल पहले प्रधानमंत्री जी ने जब लॉकडाउन की घोषणा की थी उस वक्त कोरोना की भारत में शुरआत थी. कोरोना के मामले आने शुरू ही हुए थे कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नाम संबोधन में पहले ताली और थाली और दीप जलाने और उसके बाद एक ट्रायल कर्फ्यू के बाद देशव्यापी लॉक डाउन की घोषणा कर दी.
प्रधानमंत्री ने जब लॉकडाउन की घोषणा की थी तो उस वक्त किसी को अंदाजा भी नहीं था कि प्रधानमंत्री मोदी आएंगे और इतना बड़ा ऐलान कर देंगे. उस एलान के बाद देश ने कितनी दुश्वारियों और कठिनाइयों का सामना किया उसकी अभी तक कोई विस्तृत रिपोर्ट नहीं आई है, लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट पर अगर यकीन करें तो उस से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प्रधानमंत्री मोदी ने किसी समिति की सिफारिश के बिना यह फैसला लिया था.
घोषणा उसके बाद मजदूरों का जो पलायन शुरू हुआ और जिस तरह से मुंबई से गुजरात और दिल्ली से उत्तर प्रदेश तक की सड़कों पर सिर्फ गरीब और मजदूर नजर आने लगे, रेल की पटरियों पर मजदूरों का जो हाल हुआ, उसकी टीस रह-रहकर आज भी महसूस हो रही है.
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी को पहली बार इस बात का अहसास हुआ कि देशव्यापी लॉकडाउन समस्या का समाधान नहीं है बल्कि अगर इस से कोरोना की समस्या थोड़ी बहुत कम होती है तो एक बड़ी समस्या बेरोजगारी और भुखमरी की उत्पन्न होती है और मंदी के दौर से पहले से ही गुज़र रहा राष्ट्र इस बोझ को उठाने में अब सक्षम नहीं है.
प्रधानमंत्री मोदी ने बिना ऐलान किए और स्वीकार की राष्ट्रीय फोरम पर पहली बार इस बात को स्वीकारा कि 2020 का लॉकडाउन सरकार की एक बड़ी भूल थी और अन प्लांड फैसला था.
अब जबकि 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन दिया तो उसमें वह रमजान और नवरात्रि जैसे त्योहारों का भी बार-बार जिक्र करते नजर आए और उन त्योहारों से प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को सीख लेने की अपील की. प्रधानमंत्री मोदी जिन्हों ने 2020 में राज्यों पर केंद्र की तरफ से लॉकडाउन को थोपा था 2021 में उन्होंने लॉकडाउन से बचने का प्रयास करते हुए राज्यों से अपील की कि राज लॉकडाउन को आखरी हथियार के तौर पर समझे. जिससे यह बात स्पष्ट हो गया कि भारत सरकार लॉकडाउन करने नहीं जा रही है.
यही वजह है कि दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र और पंजाब से लेकर झारखंड जैसे गैर बीजेपी शासित राज्य जहां लॉक डाउन की सिफारिश कर रहे हैं तो भाजपा शासित राज्य लॉकडाउन से दूरी बनाए हुए हैं, क्योंकि उनको यह लग रहा है कि अब प्रधानमंत्री मोदी ने जब लॉकडाउन ना लगाने का एलान किया है तो फिर कैसे लॉक डाउन का ऐलान किया जाए. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में कोर्ट के जरिए कुछ चयनित शहरों में लॉकडाउन लगाए जाने के ऐलान के बाद यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी और सुप्रीम कोर्ट से लॉकडाउन हटा दिया गया.
अब सवाल यह है कि देश एक तरफ कोरोना की महामारी को झेल रहा है और 1 साल में यह बात स्पष्ट हो गई है कि केंद्र सरकार की तरफ से स्वास्थ्य को लेकर कोई अहम फैसला नहीं लिया गया. सत्ताधारी पार्टी के बड़े-बड़े नेता सिर्फ चुनावी रैलियों में ही नजर आए और उनको लगा कि ताली और थाली बजाकर 21 दिन में करोना खत्म हो जाएगा, लेकिन अब करोना जबकि विकराल रूप ले चुका है और महामारी का सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, ऐसे समय में पलायन एक बार फिर शुरू हो चुका है.
सत्ताधारी दलों से पूछा जाना चाहिए कि 1 साल में आपके पास जो समय था उसमें आपने क्या किया? इस प्रश्न का उनके पास कोई उत्तर नहीं है और वैसे भी आज देश में ऑक्सीजन की कमी देखने को मिल रही है, इस से भी रूह कांप जाती है कि कब क्या हो जाए कुछ नहीं पता और आज नासिक में ऑक्सीजन लीक होने से 22 लोगों की जान भी चली गई है. इससे पूरे राष्ट्र का मन दुखी है, लेकिन आरोप यहां भी लग रहा है कि निगम बीजेपी के अंडर में है और बीजेपी इसके लिए जिम्मेदार है.
हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री ने इस पर दुख प्रकट किया है और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इंक्वायरी की बात कही है लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि दोषियों को सजा कौन देगा? कब मिलेगी? आज लोग सोशल मीडिया और दूसरे माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर ये लिखने के लिए मजबूर हो गए हैं देश के राजा ने देशवासियों को आत्मनिर्भर भारत की गाथा सुनायी थी आज हमारा पूरा सिस्टम ही आत्मनिर्भर हो चुका है और किसी को किसी की कोई चिंता नहीं है. एक तरफ जहां बेड की भारी कमी है तो वहीं ऑक्सीजन आईसीयू बेड की कमी खून के आंसू रुलाने वाली है.
ऐसे समय में देशवासियों को और देश की उन्नति और प्रगति के लिए चिंतित लोगों को सर जोड़ करके बैठना चाहिए कि क्या हमारे पैसे रैलियों और दूसरी चीजों पर खर्च होने के बजाय स्वास्थ्य और शिक्षा पर लगने का समय नहीं आ गया है? यह समय का बड़ा सवाल है. क्योंकि देश की सत्ताधारी पार्टियों की जिस तरह की रूची चुनाव में दिख रही है वैसी रुचि शायद उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य सिस्टम में बिल्कुल नहीं और अगर होती तो 1 साल के बाद करोना के विकराल रूप जो देखने को मिल रहे हैं और उसके जो नतीजे हैं वह शायद देखने को नहीं मिलते.
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