Hindi Urdu TV Channel

NEWS FLASH

कश्‍मीर हमारा है तो कश्‍मीरी हमारे क्‍यों नहीं

यह पहलू भी ग़ौरतलब है कि जो कश्‍मीरी विशेष अधिकार के बावजूद कश्‍मीर की आज़ादी का आंदोलन चला रहे थे और उस आंदोलन के लिए वह एक लाख से अधिक जानों की क़ुरबानी दे चुके हैं; हज़ारों औरतों की इज़्ज़तें दांव पर लगा चुके हैं; अब वे कश्‍मीरी अपने अधिकारों के लुट जाने के बाद कैसे ख़ामोश हो सकते हैंॽ मुझे लगता है कि वहां चरमपंथ बढ़ेगा। अभी तो कर्फ्यू है, नौ लाख संगीनों के साए हैं; मगर जब कर्फ्यू हटेगा तो क्‍या होगाॽ कश्‍मीरियों के विरोध के जवाब में क्‍या गोलियां नहीं चलेंगीॽ सरकार ने आख़िर उसकी क्‍या तैयारी की हैॽ

By: वतन समाचार डेस्क
फाइल फोटो (google के धन्यवाद के साथ)

कलीमुल हफ़ीज़ - कन्वीनर, इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स फ़ोरम, जामिया नगर, नई दिल्ली-25

 

  • हक़ बात कहो जुरअत-ए-इज़हार न बेचो

 

यह बात सौ प्रतिशत सही है कि कश्‍मीर हिंदोस्‍तान का अटूट अंग है। आज़ादी के बाद कश्‍मीर के राजा के निवेदन पर इसको हिंदोस्‍तान में शामिल किया गया था। इसी तरह यह बात भी उचित है कि कश्‍मीर पर पाकिस्‍तान का कोई हक़ नहीं है। लेकिन यह बात भी तो उचित ही है कि हिंदोस्‍तान ने कश्‍मीरियों की स्‍वायत्‍ता और कश्‍मीर के मसले को पाकिस्‍तान के साथ हल करने के समझौते पर दस्‍तख़त किए थे। यह बात भी हम सबके सामने हैं कि कश्‍मीर को मिले हुए विशेष अधिकार का समापन जिस अंदाज़ में किया गया है वह लोकतंत्र और नैतिक मूल्‍यों के ख़िलाफ़ है। हम नहीं चाहते कि कश्‍मीर की एक इंच जगह पर भी कोई क़ब्‍ज़ा करे। कश्‍मीर से हमें उसी तरह मुहब्‍बत है जिस तरह बाक़ी देश से है। कोई हिंदोस्‍तानी मुसलमान पाकिस्‍तान को अपना वतन नहीं समझता। आज़ादी के बाद जिन मुसलमानों ने हिंदोस्‍तान में रहना पसंद किया वह उनकी अपनी इच्‍छा और पसंद थी। किसी ने उनको जबरन नहीं रोका और न किसी ने उनको देश छोड़ने पर मजबूर किया। आज भी हिंदोस्‍तान के मुसलमान अपने इस फ़ैसले पर पूरी तरह संतुष्‍ट हैं। पाकिस्‍तान न जाने का उन्‍हें कोई अफ़सोस नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हिंदोस्‍तान में मुसलमान दूसरी श्रेणी के नागरिक हैं। मुसलमान इस देश में किराएदार नहीं साझेदार हैं। यह कैसे मुमकिन है कि वह अपने देश के नागरिकों पर ज़ुल्‍म होता देखें और ख़ामोश रहें। मज़लूम की हिमायत और उनकी मदद के भरसक प्रयास करना उनका इंसानी और संवैधानिक  कर्तव्य है।

 

 

कश्‍मीर में क़ानूनी तौर पर धारा 370 की समाप्ति या 35-A को निरस्‍त किया जाना संविधान के ख़िलाफ है या नहीं, इस पर तो क़ानून के जानकार ही राय दे सकते हैं। मैं इस पहलु पर कुछ भी कहने की पोज़ीशन में नहीं हूं और इस हाल में तो बिल्‍कुल नहीं हूं जबकि यह मुकद्दमा सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। मैं समझता हूं कि देश का एक संविधान है। इस संविधान पर देश के सभी नागरिकों को विश्‍वास है। लेकिन एक बाइख़्तियार/स्‍वायत्‍त राज्‍य को तीन हिस्‍सों में तक़सीम करके बेइख़्तियार/गै़र-स्‍वायत्‍त बना देना लोकतंत्र मुख़ालिफ़ फै़सला ज़रूर है। विशेष दर्जा प्राप्‍त राज्‍य हमारे देश में कई और भी हैं। वहां भी पहले चरमपंथियों के आंदोलन चलते रहे हैं। आसाम और नागालैण्‍ड को इस संबंध में मिसाल के तौर पर पेश किया जा सकता है। लेकिन एक इकलौते मुस्लिम राज्‍य के साथ यह नामुनासिब बरताव कुछ और ही संकेत दे रहा है। राजा को राजधर्म के साथ राज-पाट करना चाहिए, अगर भेद-भाव से काम किया जाएगा तो मुल्‍क की अखंडता ख़तरे में पड़ जाएगी। बी.जे.पी के घोषणपत्र में भी धारा 370 के ख़त्‍म करने की बात तो कही गई थी, राज्‍य की तक़सीम की बात नहीं कही गई थी। इसका मतलब है कि घोषणपत्र के साथ भी धोखा किया गया है।

यह पहलू भी ग़ौरतलब है कि जो कश्‍मीरी विशेष अधिकार के बावजूद कश्‍मीर की आज़ादी का आंदोलन चला रहे थे और उस आंदोलन के लिए वह एक लाख से अधिक जानों की क़ुरबानी दे चुके हैं; हज़ारों औरतों की इज़्ज़तें दांव पर लगा चुके हैं; अब वे कश्‍मीरी अपने अधिकारों के लुट जाने के बाद कैसे ख़ामोश हो सकते हैंॽ मुझे लगता है कि वहां चरमपंथ बढ़ेगा। अभी तो कर्फ्यू है, नौ लाख संगीनों के साए हैं; मगर जब कर्फ्यू हटेगा तो क्‍या होगाॽ कश्‍मीरियों के विरोध के जवाब में क्‍या गोलियां नहीं चलेंगीॽ सरकार ने आख़िर उसकी क्‍या तैयारी की हैॽ

 

यह अजीब बात है कि एक तरफ़ तो हम कश्‍मीर को अपना अटूट अंग मानते हैं और फिर अपने ही हिस्‍से पर वार करते हैं। जब कश्‍मीर हमारा हिस्‍सा है तो कश्‍मीरी भी हमारा हिस्‍सा हैं। वह भी इसी तरह देश के नागरिक हैं जिस तरह देश के दूसरे शहरी हैं। संविधान में लिखित बुनियादी अधिकार उनके लिए भी हैं। ज़रा सोचिए, दो महीने होने को जा रहे हैं,कश्‍मीर के लोग बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिए गये हैं। उनके लिए टेलीकॉम सुविधा, दवाएं, खाने-पीने का सामान उपलब्‍ध नहीं है। उनके कारोबार बंद हैं। स्‍कूलों पर ताले हैं। सेब की फसलें तबाह हो चुकी हैं। हज़ारों कश्‍मीरियों को देश की विभिन्‍न जेलों में बंद कर दिया गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार 13000 कश्‍मीरी नौजवान ग़ायब हैं। वह अपने रिश्‍तेदारों से संपर्क नहीं कर सकते। उनकी ईदुल-अज़हा की खुशियां और मुहर्रम का मातम सब जेल और क़ैद के नाम हो चुका है। कर्फ्यू का यह हाल है कि लोग वहां की हाई कोर्ट तक पहुंचने से वंचित हो गए हैं, इसका उल्‍लेख पिछले दिनों ख़ुद सुप्रीम कोर्ट में किया गया है और चीफ़ जस्टिस ने इस बात पर आश्‍चर्य व अफ़सोस के जज़्बात का इज़हार किया है। प्रेस बंद है, अख़बार नज़र नहीं आ रहे जबकि इमरजेंसी तक में भी अख़बार प्रकाशित हो रहे थे। इसी कारण कश्‍मीर से संबंधित ख़बरें दूसरे माध्‍यमों से मिल रही हैं। आज, वहां हर घर पर फौजी बंदूक ताने खड़ा है। कश्‍मीर की इस स्थिति में इंटरनेट और संचार माध्‍यमों के बंद होने से जान और माल के नुक़सान के साथ ऐसा नुक़सान हो रहा है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। जो विद्यार्थी अपने फॉर्म न भर सके या समय पर स्‍कूल कॉलेज न पहुंच सके उनका पूरा साल बर्बाद होने का ख़तरा है। जो व्‍यापारी समय पर टैक्‍स जमा न कर सके, वह लोग जिनको किसी प्रकार के लाइसेंस की ज़रूरत थी और वह apply न कर सके, क्‍योंकि आजकल स्‍कूल, कॅलेज, बैंक,GST और तमाम कार्यालय के काम ऑनलाइन ही किए जाते हैं। डिजिटल इंडिया का नारा लगाने वालों के पास उन लोगों के नुक़सान के अंदाजे और भरपाई का क्‍या प्रोग्राम हैॽ सरकार का दावा है कि उसका फै़सला कश्‍मीरियों के दिल की आवाज़ है, कश्‍मीरियों की भलाई के लिए है, इससे कश्‍मीर की तरक़्क़ी जुड़ी है; अगर यह दावे सच हैं और कश्‍मीरी इस फै़सले से ख़ुश हैं तो उन्‍हें ईद और मुहर्रम मनाने की इजाज़त क्‍यों नहीं दी गईॽ

 

कश्‍मीर के हालात पर अमेरिका, बरतानिया जैसे देश में तो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन हमारे देश का इंसाफ पसंद ज़मीर कहां सो गया हैॽ दो महीने से हमारे जैसे इंसान आज़ादी से वंचित कर दिए गये हैं और हमारे दिल में कोई बैचेनी नहींॽ उम्‍मते मुस्लिमा जो खै़रे उम्‍मत है और जिसका अस्त्त्वि/मक़सदे-वजूद ही समाज में इंसाफ का राज कराने के लिए है, वह क्‍यों ख़ामोश हैॽ आख़िर मुस्लिम क़यादत क्‍यों सिर झुकाए हुए हैॽ जानवरों की मौत पर आंसू बहाने वाले, इंसानों के दुख पर ख़ामोश क्यों हैंॽ मानव अधिकारों की दुहाई देने वालों की ज़ुबानें क्‍यों सिली हुई हैंॽ क्‍या मुल्‍क में प्रदर्शन करने और अपनी बात कहने पर कोई पाबंदी हैॽ क्‍या हिकमत और मसलहत के नाम पर इंसानियत के क़त्‍ल को बर्दाश्‍त किया जा सकता हैॽ हमारे लोकतंत्र के मूल्‍यों और इंसाफ की मांग है कि हम कश्‍मीरियों के मानवाधिकारों की बहाली के लिए आवाज़ उठाएं।

 

कश्‍मीरी भाइयों को भी ज़मीनी हक़ीक़त समझनी चाहिए। उनको अपने संघर्ष और क़यादत की कारगुज़ारी पर ग़ौर करना चाहिए। मेरी राय है कि वह आज़ाद कश्‍मीर और पाकिस्‍तान से अपनी संबतद्धता पर पुनर्विचार करें और हिंदोस्‍तानी मुसलमानों के साथ एकजुटता का इज़हार करते हुए उनकी क़ुव्‍वत बनें। मुस्लिम क़यादत को मेरा मशवरा है कि अलग अलग अपनी राय देने के बजाए संयुक्‍त कार्यविधि बनाई जानी चाहिए, व्‍यक्तिगत लाभ के तहफ़्फ़ुज़ के बजाए क़ौमी फ़ायदों की हिफ़ाज़त की चिंता करनी चाहिए। वरना आने वाली नस्‍लें उन्‍हें माफ़ नहीं करेंगी। सरकार को चाहिए कि वह फ़ौरन कर्फ्यू हटाए, कश्‍मीरियों के इंसानी हुक़ूक़ को बहाल करे और अपने फै़सले पर पुनर्विचार करे। लोगों की गरदनें झुकाने के बजाय दिल जीतने की कोशिश करे। अगर मुख़लिसाना कोशिश की गई तो इंशा-अल्‍लाह वादी-ए-कश्‍मीर को दोबारा जन्‍नत निशां बनते देर नहीं लगेगी-

 

 

चुप रहना तो है ज़ुल्‍म की ताईद में शामिल, 

हक़ बात कहो जुरअत-ए-इज़हार न बेचो।

 

 डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.


ताज़ातरीन ख़बरें पढ़ने के लिए आप वतन समाचार की वेबसाइट पर जा सक हैं :

https://www.watansamachar.com/

उर्दू ख़बरों के लिए वतन समाचार उर्दू पर लॉगिन करें :

http://urdu.watansamachar.com/

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें :

https://www.youtube.com/c/WatanSamachar

ज़माने के साथ चलिए, अब पाइए लेटेस्ट ख़बरें और वीडियो अपने फ़ोन पर :

https://t.me/watansamachar

आप हमसे सोशल मीडिया पर भी जुड़ सकते हैं- ट्विटर :

https://twitter.com/WatanSamachar?s=20

फ़ेसबुक :

https://www.facebook.com/watansamachar

यदि आपको यह रिपोर्ट पसंद आई हो तो आप इसे आगे शेयर करें। हमारी पत्रकारिता को आपके सहयोग की जरूरत है, ताकि हम बिना रुके बिना थके, बिना झुके संवैधानिक मूल्यों को आप तक पहुंचाते रहें।

Support Watan Samachar

100 300 500 2100 Donate now

You May Also Like

Notify me when new comments are added.

Poll

Would you like the school to institute a new award, the ADA (Academic Distinction Award), for those who score 90% and above in their annual aggregate ??)

SUBSCRIBE LATEST NEWS VIA EMAIL

Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.

Never miss a post

Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.