पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया के चेयरमैन ई. अबूबकर ने कहा कि सीएसडीएस द्वारा प्रकाशित ‘स्टेटस आफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट’ इस बात का खुला सबूत है कि पुलिस बलों में मुसलमानों के प्रति नफरत का आरएसएस का नज़रिया किस हद तक गहरा चुका है।
हालिया सर्वे की रोशनी में उन्होंने हमारी पुलिस के ज़्यादा से ज़्यादा निष्पक्ष होकर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया। यह बात बहुत ज़्यादा चिंताजनक है कि सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार हर दो में से एक पुलिसकर्मी यह सोचता है कि मुसलमान आम तौर पर अपराध की तरफ ज़्यादा जाते हैं। जांच में यह भी कहा गया है कि 35 प्रतिशत पुलिसकर्मी गौरक्षा हिंसा का समर्थन करते हैं। यह बात हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। इसमें भारतीय मानसिकता का अंधविश्वास और उन लोगों के प्रति गहराई तक मौजूद नफरत भी शरीक है जिन्हें ये लोग गैर समझते हैं। बीजेपी इसी डर और नफरत का राजनीतिक फायदा उठाती है।
सीएसडीएस की रिपोर्ट इस बात का सबूत है कि कट्टरपंथी ताक़तों ने पुलिस के अंदर अपनी जड़ें कितनी मज़बूत कर ली हैं।
ऐसी परिस्थिति में, अजनबियत के शिकार लोग विशेषकर मुसलमान पुलिस से न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते। रिपोर्ट पुलिस के साथ मुस्लिम समुदाय के रोज़मर्रा के अनुभवों को बयान करती है और यह साबित करती है कि जेलों में मुसलामनों की संख्या इतनी ज़्यादा क्यों है और वे हिरासत में प्रताड़ना के इतने शिकार क्यों होते हैं। साथ ही रिपोर्ट यह भी बताती है कि जिन मामलों में मुसलमानों को दिन-दहाड़े बेदर्दी से पीट-पीटकर मार दिया जाता है, उनमें अपराधी क्यों आज़ाद घूमते फिरते हैं। एक हालिया रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि पुलिस के बयान में कमज़ोरी और उनकी ओर से फुरती की कमी के कारण ही, मुज़फ्फरनगर दंगों से जुड़े 41 में से 40 मामलों में जिनमें फैसला आ चुका है, अपराधी आज़ाद हो गए। वह एकमात्र मामला जिसमें सज़ा सुनाई गई, उसमें आरोपी मुसलमान थे।
ई. अबूबकर ने विभिन्न विभागों में मुस्लिम समुदाय के नाकाफी प्रतिनिधित्व की समस्या को हल करने औैर पुलिस के अंदर से बेबुनियाद बातों और पक्षपात को खत्म करने के लिए उनकी ट्रेनिंग पर बल दिया ताकि पुलिस की खोई हुई गरिमा को दोबारा हासिल किया जा सके।
डाॅ॰ मुहम्म शमून
डायरेक्टर, जनसंपर्क
मुख्यालय, पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया
नई दिल्ली
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