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जमाअत इस्लामी हिन्द, सिविल सोसायटी ने नागरिकता संशोधन बिल का विरोध किया, बिल को असंवैधानिक बताया

जमाअत इस्लामी हिन्द के एक अन्य उपाध्यक्ष मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि सीएबी द्वारा पाकिस्तान, बंग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के छह धार्मिक अल्पसंख्यकों को जिन में मुसलमान को शामिल नहीं किया गया है नागरिकता देने की बात कही गई है। हमारे ख्याल में यह संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़ है। यह देश का सांप्रदायिक राजनीति की तरफ ले जाएगा। हम सब यहां सीएबी का विरोध करने आए हैं, जो अब क़ानून बन गया है। हम इस क़ानून के ज़रिए छह समुदायों को नागरिकता दिए जाने का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि धर्म के आधार पर मुसलमानों को ख़ारिज करने के ख़िलाफ़ हैं। यह आइडिया ऑफ़ इंडिया के ख़िलाफ़ है। सीएबी को एन आर सी से जोड़ कर के देखने की आवश्यकता है, तभी तश्वीर साफ नज़र आएगी। गृह मंत्री को कहना है कि जिन करोड़ लोगों के पास दस्तावेज़ नहीं है उन्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें सीएबी के ज़रिए सुरक्षा मिलेगा। क्या इससे यह मतलब निकाला जाए कि केवल मुसलमान ही परेशान हों? यह बहुत ख़तरनाक बात है कि महज़ चुनाव जीतने के लिए बांटने की राजनीति की जा रही है।

By: वतन समाचार डेस्क

जमाअत इस्लामी हिन्द, सिविल सोसायटी ने नागरिकता संशोधन बिल का विरोध किया, बिल को असंवैधानिक बताया

नई दिल्ली, 14 दिसम्बर। जमाअत इस्लामी हिन्द और सिविल सोसायटी के नेताओं ने एक संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएबी) का विरोध किया और इसे असंवैधानिक क़रार दिया। प्रेस कलब ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली में सामाजिक संगठनों और सिविल सोसायटी द्वारा आयोजित संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस को जमाअत के उपाध्यक्षों मोहम्मद जाफ़र और मोहम्मद सलीम इंजीनियर, वरिष्ठ पत्रकारों अनिल चमड़िया और प्रशांत टंडन और ऑफ़ इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत के अध्यक्ष नवेद हामिद ने संबोधित किया और सीएबी के खि़लाफ़ अपना विरोध दर्ज कराया।

 

जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष मोहम्मद जाफ़र ने सीएबी की निंदा करते हुए कहा कि हमें इस बात की चिंता है कि संसद के दोनों सदनों ने इस बिल को परित किया। इस बिल को सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के साथ उन पार्टियों का भी समर्थन मिला जिसके बारे में ख़्याल भी नहीं किया गया था। ऐसा लगता है कि उन्हें यह एहसास ही नहीं था कि यह बिल देशवासियों के बीच विभाजन और देश की अस्थिरता का कारण बनेगा। देश का संविधान मज़हब की बुनियाद पर मतभेद की इजाज़त नहीं देता। यह बिल संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। प्रवासियों की समस्याओं के हल के लिए पहले से क़ानून मौजूद है। लेकिन सांप्रदायिक मांसिकता ने इस क़ानून का निर्माण किया है और मुसलमानों को अलग थलग कर दिया गया है। यह रवैया संविधानिक सिद्धांतों के ख़िलाफ और देश के बहुलवाद के लिए हानिकारक है। उन्होंने एलान किया कि हम पूरे देश में होने वाले शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक विरोध का हिस्सा बनेंगे।

 

जमाअत इस्लामी हिन्द के एक अन्य उपाध्यक्ष मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि सीएबी द्वारा पाकिस्तान, बंग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के छह धार्मिक अल्पसंख्यकों को जिन में मुसलमान को शामिल नहीं किया गया है नागरिकता देने की बात कही गई है। हमारे ख्याल में यह संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़ है। यह देश का सांप्रदायिक राजनीति की तरफ ले जाएगा। हम सब यहां सीएबी का विरोध करने आए हैं, जो अब क़ानून बन गया है। हम इस क़ानून के ज़रिए छह समुदायों को नागरिकता दिए जाने का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि धर्म के आधार पर मुसलमानों को ख़ारिज करने के ख़िलाफ़ हैं। यह आइडिया ऑफ़ इंडिया के ख़िलाफ़ है। सीएबी को एन आर सी से जोड़ कर के देखने की आवश्यकता है, तभी तश्वीर साफ नज़र आएगी। गृह मंत्री को कहना है कि जिन करोड़ लोगों के पास दस्तावेज़ नहीं है उन्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें सीएबी के ज़रिए सुरक्षा मिलेगा। क्या इससे यह मतलब निकाला जाए कि केवल मुसलमान ही परेशान हों? यह बहुत ख़तरनाक बात है कि महज़ चुनाव जीतने के लिए बांटने की राजनीति की जा रही है।

 

वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने भी चिंता जताते हुए कहा कि सत्ताधारी बीजेपी केवल बहुसंख्या के आधार पर संविधान विरोधी क़ानून पर ज़ोर दे रही है। सत्ताधारी गठबंधन का आधार केवल ज़ात और धर्म है। वे पालिसियां ला रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि देश ऐसा चाहता है। संविधान विरोधी क़ानून के लिए संसद का इस्तेमाल किया जा रहा है। वे जानते हैं कि सीएबी का क़ानूनी औचित्य नहीं है। फिर भी उन्होंने संसद में बिल पेश किया और पारित कर लिया। अनिल चमड़िया ने कहा कि सब से ख़तरनाक बात संसद की असंवैधानिक संस्कृति होना है।

 

प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष नवेद हामिद ने सीएबी के पीछे सरकार की नीयत पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि पिछली बार यह बिल विचार के लिए संसद की सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने मज़लूम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने इसमें धार्मिक अल्पसंख्यक जोड़ दिया। सीएबी वसुधैव कुटुंब कम की आइडिया के ख़िलाफ़ है। भूटान में ईसाइयों पर अत्याचार हो रहा है, फिर भी भूटान को क्यों शामिल नहीं किया गया? बंग्लादेश में म्यांमार के शरणार्थियों में मुसलमान, हिन्दू और बौद्ध शामिल हैं, फिर सरकार ने म्यांमार को शामिल क्यों नहीं क्या? तामिल हिन्दुओं को इसमें क्यों शामिल नहीं किया गया? इससे मालूम होता है कि सरकार की योजना हिन्दू प्रवासियों को अंदर लाना नहीं है, बल्कि उनका असल मंसूबा फूट की राजनीति है। फूट की राजनीति का आधार भय है। उन्होंने मुसलमानों को एक भूत की तरह पेष किया है।

 

 

वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन जिन्होंने एनआरसी की अंतिम सूची जारी होने के तुरंत बाद असम का दौरा किया था फारेन ट्रीब्यूनल की कार्यप्रणाली पर सवाला उठाया। कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि असम में फारेन ट्रीब्यूनल पेशेवर तरीक़े से काम नहीं कर रहा है। वह अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ मामले का फैसला कर रहा है। उसके फैसले को केवल हाई कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है। फारेन ट्रीब्यूनल के कुछ अधिकारियों की सेवा समाप्त कर दी गयी है, क्योंकि उन्होंने अधिक से अधिक लोगों को विदेशी क़रार नहीं दिया था, जबकि जिन जजों ने अधिक से अधिक लोगों को विदेशी घोषित किया था उनकी तरक्क़ी हुई। उन्होंने बताया कि 19 दिसंबर को सीएबी के ख़िलाफ़ देश भर में शांति प्रदर्शन किया जाएगा।

 

 

कान्फ्रेंस के अंत में मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने एलान किया कि हम सीएबी के अवगुण से देश के तमाम लोगों को अवगत कराएंगे। हम इस मसले पर क़ानून के विशेषज्ञों से परामर्श करेंगे।

 

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