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एक बड़ी आबादी देश के लिए Asset है या बोझ?

बढ़ती जनसंख्या क्या एक देश के लिए बोझ है? क्या ज्यादा आबादी की वजह से किसी भी देश की तरक्की रुक जाती है? क्या बढ़ती हुयी आबादी को रोकने के लिए कानून बनाना वक्त की जरूरत है? क्या मुसलमान बढ़ती हुई आबादी के सबसे बड़े दोषी हैं?

By: वतन समाचार डेस्क
फाइल फोटो

 

 

Ansar Imran SR

एक बड़ी आबादी देश के लिए Asset है या बोझ?

 

बढ़ती जनसंख्या क्या एक देश के लिए बोझ है? क्या ज्यादा आबादी की वजह से किसी भी देश की तरक्की रुक जाती है? क्या बढ़ती हुयी आबादी को रोकने के लिए कानून बनाना वक्त की जरूरत है? क्या मुसलमान बढ़ती हुई आबादी के सबसे बड़े दोषी हैं?

 

अगर आप इन सवालों के जवाब चाहते हैं तो यह वीडियो सिर्फ और सिर्फ आपके लिए है. इस वीडियो में हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर एक बड़ी आबादी किसी देश के लिए Asset है या liability.

 

10 दिसंबर 2022 को संसद में भाजपा सांसद रवि किशन ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक प्राइवेट बिल सदन के सामने पेश किया. इसमें ध्यान दीजियेगा कि सांसद महोदय के खुद के 4 बच्चे है और वह इन बच्चों के लिए कांग्रेस को दोषी मानते हैं.

 

https://twitter.com/i/status/1601557196881661953

https://indianexpress.com/article/india/ravi-kishan-population-control-bill-bjp-children-8315896/

 

इस बिल के बाद से ही एक बड़े पैमाने पर जनसंख्या को ले कर बहस शुरू हो गयी है.  बाकी मुद्दों की तरह इस मुद्दे में भी एक बड़ी गिनती ने बढ़ती आबादी के लिए सीधे तौर पर मुसलमानों को दोषी ठहरा दिया है.

 

ज्यादा आबादी को अमूमन किसी भी देश के लिए बोझ कहा जाता है मगर जब आप आंकड़ों को देखेंगे तो हकीकत कुछ और ही नज़र आएगी. दुनिया की हकीकत से रूबरू होते ही समझ में आयेगा कि ज्यादा आबादी तो किसी भी मुल्क के लिए asset होती है न कि liability. यह तो एक भ्रम फैलाया गया है कि ज्यादा आबादी देश की तरक्की को रोक देता है.

 

असल मुद्दा यह है कि हमारे देश कि राजनेता जो लोक कल्याण के काम करने से तो कन्नी काटते है मगर जनता उनसे पलट कर सवाल न कर दे इसलिए हमेशा जनता को खामखा के मुद्दों में उलझा कर रखती है. जनसंख्या विस्फोट भी ऐसे राजनेताओं द्वारा दिया गया एक शिगूफा है. सरकारें अपनी जनता को बुनियादी सुविधायें और रोज़गार नहीं दे पाती है तो उल्टा जनता को ही दोषी ठहरा कर बोलती है कि तुम लोग ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हो इसीलिए देश की तरक्की नहीं हो रही है.

 

ज्ञानदीप कौशल ने अक्टूबर 2009 में एक आर्टिकल लिखा था जिसमें साफ़ तौर पर कहा गया था की "एक बड़ी आबादी अपने आप में बोझ नहीं है। एक बड़ी आबादी को देश के लिए संपत्ति के रूप में बदला जा सकता है। आज जिस तरह से हम भारत की बड़ी आबादी को देखते हैं, वह सभी मामलों में ठीक वैसा नहीं है। सबसे बड़ा उदाहरण हम चीन का हवाला दे सकते हैं। इसकी जनसंख्या भारत से भी अधिक है, लेकिन हम भारत की तुलना में चीन के विकास के स्तर को देख सकते हैं। वह अपनी आबादी को बोझ नहीं मानती। वह टेंशन में नहीं आता और यह नहीं सोचता कि इतनी बड़ी आबादी का क्या किया जाए बल्कि वह अपनी आबादी को संपत्ति की तरह इस्तेमाल करता है।"

 

https://www.indiastudychannel.com/resources/89041-Population-An-Asset-or-Burden.aspx#:~:text=It%20means%20that%20a%20large,we%20can%20cite%20is%20China

 

कुछ लोगों को यह सुन कर बहुत तकलीफ होगी कि मौजूदा भारत सरकार के गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने भी आबादी को देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा बताया है. जबकि इसी पार्टी से जुड़े हुये लोग दिन रात जनसंख्या विस्फोट का जाप करते हुये मिल जायेंगे.

 

https://www.thehindu.com/news/national/population-is-an-asset-to-the-economy-as-it-is-linked-to-the-scale-of-a-market-amit-shah/article65750254.ece

 

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक 2019 की रिपोर्ट पढ़ेंगे तो उसमें साफ़ तौर पर वजाहत की गयी है कि जनसंख्या समस्या नहीं, हमारी सबसे बड़ी ताकत है. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि निकोलस एबरस्टेड द्वारा 2007 में 'बहुत सारे लोग?' नामक एक अध्ययन में जनसंख्या घनत्व और गरीबी के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया। लोगों का घनत्व जितना अधिक होगा, आप उनसे संसाधनों के लिए लड़ने की उतनी ही अपेक्षा करेंगे - और फिर भी, मोनाको, जो बांग्लादेश के जनसंख्या घनत्व का 40 गुना है, अपने लिए अच्छा कर रहा है। तो बहरीन है, जिसका जनसंख्या घनत्व भारत के तीन गुना है।

 

https://timesofindia.indiatimes.com/home/sunday-times/population-is-not-a-problem-but-our-greatest-strength/articleshow/69707310.cms

 

लाइव मिंट का एक आर्टिकल आप पढ़ेंगे तो समझ आयेगा की आबादी को ले कर भारत में एक अवधारणा बना दी गयी है जिसमें बड़ी आबादी को हर परेशानी के दोषी ठहरा कर विलेन की तरह पेश किया गया है. "पारंपरिक मान्यता है कि भारत गरीब बना रहेगा क्योंकि इसकी जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, यह अंकगणित के एक सरल तर्क पर आधारित है। जनसंख्या जितनी बड़ी होगी, एक भाजक के रूप में, हर चीज की प्रति व्यक्ति उपलब्धता उतनी ही कम होगी। दूसरे शब्दों में, अर्थव्यवस्था को गतिरोध की ओर दौड़ना होगा। यह तर्क इस बात को स्वीकार नहीं करता कि भारत की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है क्योंकि यह गरीब है। ग़रीबों के लिए, माता-पिता के युवा होने पर बच्चे पारिवारिक आय के पूरक और वृद्धावस्था में वित्तीय सहायता के स्रोत होते हैं। उच्च शिशु मृत्यु दर ही अधिक बच्चों के लिए प्रेरणा को मजबूत करती है।"

 

https://www.livemint.com/opinion/columns/opinion-the-country-s-population-can-be-an-asset-it-is-not-a-liability-1568313646428.html

 

 

International Journal of Computing and Corporate Research की तरफ से "POPULATION - AS AN ASSET OR LIABILITY" टॉपिक के तहत एक रिसर्च 2014 में पब्लिश की गयी थी जिसमें कहा गया था कि, "भारत दुनिया में कुशल जनशक्ति (Skilled Manpower) का सबसे बड़ा प्रदाता है। 24 साल की औसत आयु के साथ दुनिया में इसकी सबसे कम उम्र की आबादी है, एक ऐसी दुनिया में जो बहुत तेजी से उम्रदराज हो रही है। बड़ी आबादी, इसकी हड़ताली विविधता के साथ जो चीन की कठोर एकरूपता में नहीं देखी जाती है, दुनिया को विभिन्न प्रकार की पेशकश करती है बोली जाने वाली भाषाओं, तकनीकी शिक्षा और अलग-अलग वातावरण में अनुकूलता के मामले में कौशल। लाखों भारतीय अब स्कूल जा रहे हैं और कुशल हो रहे हैं, भारत दुनिया में इंजीनियरों (सालाना दस लाख से अधिक) और अंग्रेजी बोलने वाले पेशेवरों का बड़ा प्रदाता है। भारत ऑटोमोबाइल, उच्च मूल्य वाले खाद्य पदार्थ, मोबाइल फोन आदि का सबसे बड़ा बाजार है।"

 

"चीन के आगे या ठीक पीछे। जनगणना प्रक्षेपण रिपोर्ट से पता चलता है कि 15 से 59 वर्ष के बीच कामकाजी उम्र की आबादी का अनुपात 2001 में लगभग 58% से बढ़कर 2021 तक 64% हो जाने की संभावना है। 20 -35 वर्ष के अपेक्षाकृत युवा आयु वर्ग में पूर्ण संख्या में 65.5 मिलियन नए प्रवेश होंगे। इस तरह की प्रवृत्ति भारत को दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक बना देगी।"

 

https://www.ijccr.com/November2014/9.pdf

 

एक सबसे बड़ा भ्रम जो भारतीय समाज में फैला दिया है कि गरीब लोग ज्यादा बच्चे पैदा करते है या मुसलमानों के बहुत ज्यादा बच्चे होते है. मगर यह एक कोरे झूठ के अलावा कुछ नहीं है. अगर आप भारत की फर्टिलिटी रेश्यो को देखेंगे तो समझ आएगा कि 1960 में जहां भारत में 6 बच्चे पैदा होना औसत था वहीं 2020 में यह आंकड़ा केवल 2.16 रह चुका है. इससे भी बड़ी एक चिंताजनक बात तो यह है कि कुछ समुदाय में तो जन्म दर मृत्यु दर से भी नीचे जा चुकी है इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि इनकी आबादी बढ़ने की बजाये घट रही है.

 

https://www.google.com/search?q=fertility+rate+in+india&oq=fert&aqs=chrome.3.69i57j0i67i433l2j0i67j0i67i433l2j0i67j0i67i433j0i131i433i512j0i67i433.4045j0j7&sourceid=chrome&ie=UTF-8

 

अब आप बहुत अच्छे से यह बात समझ चुके होंगे कि आबादी के मामले में इस वक़्त देश में केवल एक भ्रम फैलाया जा रहा है. जो आबादी हमारे देश को दुनिया का सबसे युवा देश बनाती है. हमारी इकॉनमी के लिए वरदान साबित हो सकती है उसको नेता नगरी ने अपने कुकर्मों से पल्ला झाड़ने के लिए देश के सामने विलेन बना दिया है. युवाओं को स्किल्ड कर के रोज़गार देने में नाकाम साबित हो चुकी यहां की सरकारें उल्टा जनता को ही बच्चे पैदा करने के दोष के साथ अपराधी साबित कर चुकी है. और जानते है सबसे हैरानी की बात तो यह है कि जनता ने भी मान लिया है कि सरकारें तो बेचारी मासूम है असल दोषी तो वहीं है. उनके बच्चे देश की तरक्की में सबसे बड़ी रुकावट हैं.

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