नयी दिल्ली: दिल्ली की मशहूर जामा मस्जिद के गेट नंबर 1 के ठीक सामने मटिया महल को जाने वाले रास्ते पर स्थित "जवाहर होटल" की तारीख भी काफी दिलचस्प है. जवाहर होटल के मालिक रईसुद्दीन ने आज पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में बताया कि यह होटल पहले 'पेशावरी होटल' के नाम से जाना जाता था. उन्होंने बताया कि विभाजन से पहले इसे पठान लोग चलाते थे, लेकिन पार्टीशन के बाद हमने इस होटल को टेकओवर कर लिया.
उन्होंने बताया कि उस वक्त नई नई सरकार का गठन हुआ था. सरकार के मुखिया पंडित जवाहरलाल नेहरु बने थे. बेखुद देहलवी (मशहूर कवी) साहब मेरे पिता के अच्छे मित्र थे. उन्होंने मेरे पिता को मशवरा दिया कि इस होटल का नाम आप जवाहर होटल रखिए. मेरे पिता ने उनकी बात को स्वीकारते हुए इस होटल का नाम जवाहर होटल रख दिया.
ज्ञात रहे कि पेशावर पाकिस्तान का एक मशहूर शहर है, लेकिन विभाजन के बाद रईसुद्दीन के पिता ने अपने होटल का नाम 'पेशावर' के नाम पर रखना गवारा नहीं किया और उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री के नाम पर इस होटल का नाम रखा. रईसुद्दीन का कहना है कि पिता ने अपने मित्र बेखुद देहलवी के मशवरे को बिना इफ और बट के स्वीकार कर लिया.
यह आज उन लोगों के लिए एक संदेश है जो मुस्लिम नामों से नफरत करते हैं और मुस्लिमों को हमेशा किसी ना किसी बहाने पाकिस्तान भेजने का मशवरा देते रहते हैं. रईसुद्दीन ने पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में यह भी बताया कि क्यों कि जामा मस्जिद की चौखट पर मेरा होटल है और यह होटल कई मायनों में ऐतिहासिक है, इस लिए हम को इस पर नाज़ है. उन्हों ने बताया कि आजादी से पहले इसकी 1 तारीख है और आजादी के बाद इसकी दूसरी तारीख है. मुझे खुशी है कि मैं एक भारतीय हूं और यहां सभी लोग मिल जुल कर रहने में विश्वास रखते हैं.
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