Hindi Urdu TV Channel

NEWS FLASH

अशफाक उल्ला खान जयंती: नमाज़ के पाबंद थे पंडित बिस्मिल के दोस्त अशफाक उल्ला खान

अशफाक उल्ला खान का जन्म 22 अकटुबर सन् 1900 को उत्तर प्रदेश के ज़िला शाहजहांपुर में एक आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार में हुआ था। अमर शहीद अशफाक उल्ला खान एक सच्चे भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। मात्र 27 साल की आयु में अशफाक ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देकर फांसी के फंदे को खुशी-खुशी चूम लिया था। शहीद अशफाक को काकोरी कांड में उनकी भूमिका, उनके उर्दू शायराना अंदाज़ और बिस्मिल से उनकी मित्रता के लिए जाना जाता है।

By: Abdus Samad
Ashfaq Ulla Khan Jayanti: Ashfaq Ulla, a friend of Pandit Bismil, was a staunch worshippers

अशफाक उल्ला खान जयंती: नमाज़ के पाबंद थे पंडित बिस्मिल के दोस्त अशफाक उल्ला खान 

 

अशफाक उल्ला खान का जन्म 22 अकटुबर सन् 1900 को उत्तर प्रदेश के ज़िला शाहजहांपुर में एक आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार में हुआ था। अमर शहीद अशफाक उल्ला खान एक सच्चे भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। मात्र 27 साल की आयु में अशफाक ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देकर फांसी के फंदे को खुशी-खुशी चूम लिया था। शहीद अशफाक को काकोरी कांड में उनकी भूमिका, उनके उर्दू शायराना अंदाज़ और बिस्मिल से उनकी मित्रता के लिए जाना जाता है।

 

 

अशफाक उल्ला खान के क्रांतिकारी बनने का सफर काफी दिलचस्प है, दरअसल उनके क्रांतिकारी बनने का कारण महात्मा से उनकी नाराज़गी थी। यह बात सुनकर अजीब लगता है कि एक व्यक्ति, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से नाराज़ होकर देश की स्वतंत्रता के लिए हथियार उठा लेता है, जबकि महात्मा गांधी खुद एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी ज़िंदगी का उद्देश्य केवल स्वराज्य और भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र होते देखना था।

 

 

असल में साल 1922 में महात्मा गांधी ने चौरीचोरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन (NON COOPERATION MOVEMENT) को वापस लेने का फैसला किया, जिससे कई युवाओं को निराशा हुई, इन युवाओं में सबसे उल्लेखनीय अशफाक उल्ला खान और रामप्रसाद बिस्मिल थे। यह दोनों व्यक्ति मित्रता, प्रेम, भाईचारे, विश्वास, वफादारी, क्रांति, स्वंत्रता और हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द के प्रतीक थे, जिनकी दोस्ती की मिसालें आज भी कई मौकों पर भारतीय समाज में दी जाती हैं। 

 

 

यह दोनों युवा महात्मा गांधी से नाराज़ होकर क्रांतिकारी पार्टी में शामिल हो गए, इनका मानना था कि स्वतंत्रता मांगने से और महात्मा गांधी के अहिंसा के रास्ते पर चलने से नहीं मिलेगी, बल्कि इसको हमें छीन कर हासिल करनी होगी और इसके लिए हमें लड़ना होगा।

 

 

इन क्रांतिकारियों का मानना था कि अंग्रेज़ तादाद में इतने कम होने के बावजूद भारत पर इसलिए काबिज़ हैं क्योंकि उनके पास अच्छे हथियार हैं। अतः स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए उन्हें भी बम, बंदूकों सहित कई तरह के हथियारों की आवश्यकता थी। 

 

इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्हें धन की आवश्यकता थी जिसके लिए उन्होंने अंग्रेज़ सरकार के पैसे लूटने की योजनी बनाई। दरअसल शाहजहांपुर से एक ट्रेन में अंग्रेज़ हुकूमत का पैसा लखनऊ भेजा जाता था। अशफाक अपने दोस्त बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों के साथ उस ट्रेन में लूट के उद्देश्य से सवार हो गए। जिसके बाद काकोरी में उन्होंने ट्रैन को लूटा, लेकिन इसमें गलती से एक आम नागरिक को गोली लग गयी। जिसके बाद अशफाक और उनके साथियों को तुरंत वहां से भागना पड़ा।

 

 

इस घटना की खबर सुनकर अंग्रेज़ हुकूमत के पांव तले से ज़मीन खिसक गई। और उन्होंने बड़े स्तर पर तलाशी अभियान चलाया जिसमें अशफाक के ज़्यादातर साथी पकड़े गए।

 

 

लेकिन किसी तरह से अशफाक भागने में कामयाब हो गए। परंतु एक साथी के धोखे के कारण अशफाक को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद अशफाक को फैज़ाबाद की जेल में डाल दिया गया। अशफाक पर काकोरी कांड का मुख्य मास्टरमाइंड होने का केस था, जिसके चलते अशफाक, बिस्मिल, लाहिड़ी और ठाकुर रोशन को फांसी की सज़ा सुनाई गई।

 

 

अशफाक उल्ला खान रोज़ जेल में भी पांचों वक्त की नमाज़ अदा करते थे और खाली समय में डायरी लिखा करते थे। कहा जाता है कि एक दिन दो अंग्रेज़ अफसर उनकी बैरक में उस समय आए जब वह नमाज़ पढ़ रहे थे, इसे देख अंग्रेज़ अफसर ने बोला, "देखते हैं इस चूहे को अपने खुदा पर उस समय कितना विश्वास रहेगा जब इसे फांसी पर लटकाया जाएगा।"

 

 

इसका जवाब अशफाक ने फांसी के वक्त दिया। 19 दिसम्बर 1927, को जब अशफाक को फांसी की सज़ा होनी थी तो अशफाक ने खुद आगे बढ़कर फांसी का फंदा चूम लिया और बोले "मेरे हाथ खून से रंगें हुए नहीं हैं। मेरे खिलाफ जो भी आरोप लगे हैं, वह सब झूठे हैं। अल्लाह ही अब मेरा फैसला करेगा।‘’ यह बात कहने के बाद अशफाक ने खुद फांसी का फंदा अपने गले में डाल लिया। और इसी दिन स्वतंत्रता के इस चिराग ने जाम-ए-शहादत पीकर इस दुनिया को अलविदा कहा।

 

 

दोस्ती के प्रतीक अशफाक और बिस्मिल को एक ही दिन दो अलग-अलग जेलों में फांसी दी गयी थी। अशफाक को फैज़ाबाद की जेल में और बिस्मिल को गोरखपुर की जेल में शहादत प्राप्त हुई थी।

 

अशफाक उल्ला खान एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जो अपनी स्वतंत्रता की भावनाओं, और गुलामी के दुख का इज़हार अपनी शायरी के ज़रिए किया करते थे। उनकी एक मशहूर नज़्म कुछ इस प्रकार है :-

 

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे

हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे

बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का
चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुंजा देंगे

परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की
है जान हथेली पर, एक दम में गवां देंगे

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं
खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे

मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे

 

 

इसी प्रकार अशफाक उल्ला खान की डायरी में लिखी कुछ शायरियों में से एक है-

 

किए थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाए,

ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना

 
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं,

जबां तुम हो लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना

ताज़ातरीन ख़बरें पढ़ने के लिए आप वतन समाचार की वेबसाइट पर जा सक हैं :

https://www.watansamachar.com/

उर्दू ख़बरों के लिए वतन समाचार उर्दू पर लॉगिन करें :

http://urdu.watansamachar.com/

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें :

https://www.youtube.com/c/WatanSamachar

ज़माने के साथ चलिए, अब पाइए लेटेस्ट ख़बरें और वीडियो अपने फ़ोन पर :

https://t.me/watansamachar

आप हमसे सोशल मीडिया पर भी जुड़ सकते हैं- ट्विटर :

https://twitter.com/WatanSamachar?s=20

फ़ेसबुक :

https://www.facebook.com/watansamachar

यदि आपको यह रिपोर्ट पसंद आई हो तो आप इसे आगे शेयर करें। हमारी पत्रकारिता को आपके सहयोग की जरूरत है, ताकि हम बिना रुके बिना थके, बिना झुके संवैधानिक मूल्यों को आप तक पहुंचाते रहें।

Support Watan Samachar

100 300 500 2100 Donate now

You May Also Like

Notify me when new comments are added.

Poll

Would you like the school to institute a new award, the ADA (Academic Distinction Award), for those who score 90% and above in their annual aggregate ??)

SUBSCRIBE LATEST NEWS VIA EMAIL

Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.

Never miss a post

Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.