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धर्मांतरण: बार-बार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता को लगाई फटकार, दिए सख्त निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि चूंकि यह मामला विभिन्न अदालतों में लंबित है, इसलिए कानून की मेरिट पर बहस नहीं की जा सकती है। जिसके जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा कि इन सभी याचिकाओं को एक साथ जोडे जाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ऐसा करने की इजाजत दे दी है। इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि जमीयत की तरफ से एक याचिका दायर की जाएगी कि विभिन्न उच्च न्यायालयों के मामलों को उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया जाए। हालांकि अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया आर वेंकटरमणी, जिनसे गत सप्ताह न्यायमूर्ति शाह की पीठ ने कानून को समझने के मामले में मदद मांगी थी, ने सुझाव दिया कि यह उचित होगा कि उच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई करें। क्योंकि विभिन्न कानूनों की वैधता को चुनौती दी जा रही है। इसका जवाब देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि इन सभी कानूनों में एक जैसे प्रावधान हैं, इसलिए एक जगह ही बहस हो जाए तो काफी है।

By: वतन समाचार डेस्क

धर्मांतरण: बार-बार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता को लगाई फटकार, दिए सख्त निर्देश

 

धर्म परिवर्तन अधिनियम से संबंधित याचिका में मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ आपत्तिजनक वाक्यों को हटाया जाए

 

- याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील को मुख्य न्यायाधीश का निर्देश

- मुख्य न्यायाधीश ने जमीयत के वकील कपिल सिब्बल को विभिन्न हाईकोर्ट्स के मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने से संबंधित याचिका दायर करने की अनुमति दी

 

नई दिल्ली, 16 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा धर्मांतरण के एक ही विषय पर सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट की अलग-अलग बेंचों के सामने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल करने और वापस लेने के आचरण को गंभीर बताया.

 

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ 2022 में उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस में जबरदस्ती और धोखे से धर्मांतरण के खिलाफ कदम उठाने की मांग की गई थी।

 

"नई याचिकाओं को वापस लेना और दाखिल करना जारी नहीं रख सकता": सीजेआई

 

सुनवाई के दौरान, तमिलनाडु राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने पीठ को बताया कि याचिकाकर्ता ने 2021 में शीर्ष अदालत से इसी तरह की याचिका वापस ले ली थी, न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ नरीमन की अगुवाई वाली पीठ ने इस पर विचार करने से इनकार कर दिया था। वरिष्ठ वकील ने बताया कि उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में भी इसी तरह की याचिकाएं दायर की हैं और वापस ले ली हैं।

 

विल्सन द्वारा उद्धृत कार्यवाही का उल्लेख करने के बाद, CJI चंद्रचूड़ ने उपाध्याय के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया से कहा: "ऐसा लगता है कि जनहित याचिकाकर्ता यह नहीं सोचता कि वह दलील देने के नियमों से बंधा है .... आप नई याचिकाओं को वापस लेना और दायर करना जारी नहीं रख सकते।"

 

"क्या यह सही है कि आप 9 अप्रैल, 2021 को न्यायमूर्ति नरीमन की पीठ के समक्ष याचिका वापस ले लें?", सीजेआई ने भाटिया से पूछा। सीजेआई ने कहा कि इस जनहित याचिका की विचारणीयता पर उठाई गई आपत्ति पर उचित समय पर विचार किया जाएगा।

 

अल्पसंख्यकों पर याचिकाकर्ता के "अप्रिय और चौंकाने वाले" बयान: हस्तक्षेपकर्ता

 

एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता द्वारा "ईसाइयों और मुसलमानों पर आक्षेप लगाते हुए" अरुचिकर और चौंकाने वाले बयान दिए गए हैं।

 

 

9 जनवरी को, न्यायमूर्ति एमआर शाह की अगुवाई वाली पीठ ने भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय (डब्ल्यूपी (सी) संख्या 63/2022) द्वारा दायर जनहित याचिका के शीर्षक को "इन रे: धर्म परिवर्तन का मुद्दा" के रूप में बदल दिया था। यह देखते हुए कि मामला "बहुत गंभीर" था, खंडपीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सहायता मांगी थी।

 

कई ईसाई और मुस्लिम संगठनों ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए कुछ बयानों पर आपत्ति जताते हुए मामले में हस्तक्षेप आवेदन दायर किए हैं। 12 दिसंबर को हुई सुनवाई में जस्टिस एस रवींद्र भट ने जस्टिस एम आर शाह के साथ बेंच शेयर करते हुए याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील अरविंद दातार से अन्य धर्मों पर लगाए गए झूठे आरोपों को वापस लेने को कहा था.

 

 

ज्ञात रहे कि आज सुप्रीम कोर्ट में लव-जिहाद के तथाकथित विवाद पर कई राज्यों द्वारा पारित “धर्म परिवर्तन अधिनियम“ से संबंधित एक दर्जन याचिकाओं पर सुनवाई हुई। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने सभी पहलुओं की समीक्षा की। इस मामले में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल पेश हुए, जबकि जमीयत के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एमआर शमशाद और नियाज अहमद फारूकी भी मौजूद थे।

 

न्यायालय में जहां अश्वनी उपाध्याय की याचिका में मुसलमानों और ईसाइयों से संबंधित आपत्तिजनक बातों का मुद्दा उठाया गया, वहीं विभिन्न उच्च न्यायालयों में इससे संबंधित विचाराधीन मामलों को इकट्ठा कर के सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर भी विचार हुआ। जामीयत उलेमा-ए-हिंद इस मामले में गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2003 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही उपस्थित है। जामीयत के अनुरोध पर गुजरात हाई कोर्ट ने इस कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी थी, जिसके खिलाफ गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जीमयत ने सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार बनकर सरकार की याचिका का विरोध किया। इसलिए राज्य सरकार को तत्काल स्टे नहीं मिल सका।

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि चूंकि यह मामला विभिन्न अदालतों में लंबित है, इसलिए कानून की मेरिट पर बहस नहीं की जा सकती है। जिसके जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा कि इन सभी याचिकाओं को एक साथ जोडे जाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ऐसा करने की इजाजत दे दी है। इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि जमीयत की तरफ से एक याचिका दायर की जाएगी कि विभिन्न उच्च न्यायालयों के मामलों को उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया जाए। हालांकि अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया आर वेंकटरमणी, जिनसे गत सप्ताह न्यायमूर्ति शाह की पीठ ने कानून को समझने के मामले में मदद मांगी थी, ने सुझाव दिया कि यह उचित होगा कि उच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई करें। क्योंकि विभिन्न कानूनों की वैधता को चुनौती दी जा रही है। इसका जवाब देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि इन सभी कानूनों में एक जैसे प्रावधान हैं, इसलिए एक जगह ही बहस हो जाए तो काफी है।

 

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे की इस याचिका पर कि याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने ईसाईयों और मुसलमानों पर संदेह व्यक्त करते हुए ‘‘आपत्तिजनक और चौंका देने वाले’’ वाक्यों को शामिल किया है, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कृपया उनको हटा दें। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह, संजय हेगड़े, इंदिरा जयसिंह, वृंदा ग्रोवर भी विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए। अगली सुनवाई 30 जनवरी को होगी।

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