गोदी मीडिया का शर्मनाक चेहरा, चैनलों ने ग्राफिक से प्रधानमंत्री और अमित शाह के फोटो गायब किये
दिल्ली में गोदी मीडिया ने एक और शर्मनाक खेल शुरू कर दिया है। गोदी मीडिया की ओर से जिस तरह के ग्राफिक स्क्रीन पर दिखाए जा रहे हैं उससे यह स्पष्ट हो गया है कि कहीं ना कहीं गोदी मीडिया आज भी प्रेशर में काम कर रहा है। वरिष्ठ पत्रकार रोहिणी सिंह ने बीते रोज ट्वीट किया था कि मीडिया चैनलों को यह आदेश दिया गया है कि अगर भारतीय जनता पार्टी हारती है तो वह प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जगह पर जेपी नड्डा का फोटो प्रयोग करें।
वह अब साफ-साफ दिखता नजर आ रहा है, टीवी चैनलों के स्क्रीन से प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह पूरी तरह गायब कर दिए गए हैं और स्क्रीन पर बीजेपी की हार की जो तस्वीरें दिख रही हैं उसमें जेपी नड्डा और मनोज तिवारी दिख रहे हैं। मनोज तिवारी ने तो सुबह ही आकर स्पष्ट कर दिया था कि उनका सीना खुला हुआ है वह हर तरह की चीज को बर्दाश्त करने के लिए तैयार हैं।
अब गोदी मीडिया के इस खेल को देशवासियों को समझना होगा कि गोदी मीडिया देश को किस ओर ले जाना चाह रहा है और क्या अब भी देशवासी गोदी मीडिया के चंगुल में फंसे रहना चाहते हैं क्योंकि रोहिणी सिंह का जो ट्वीट आया है वह अपने आप में काफी अहम है और उस पर काफी गहन चिंता करने की जरूरत है।
वहीं गोदी मीडिया ने राहुल गांधी जो इस लड़ाई में थे ही नहीं कहीं उन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, और कांग्रेस के हार के लिए उन के फोटो का प्रयोग किया जा रहा है। आदमी पार्टी 62 सीटों और बीजेपी 08 सीटों पर आगे है। कांग्रेस के खाते में एक बार फिर शून्य आता दिख रहा है। यह देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति है जो कुछ साल पहले ही शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 साल शासन कर चुकी है।
साल 1998 का चुनाव दिल्ली में कांग्रेस के उभार की शुरुआत थी। इन चुनाव में महंगाई एक प्रमुख मसला था और ऐसा कहा जाता है कि प्याज की महंगाई ने बीजेपी की सरकार गिरा दी। तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। शीला दीक्षित के उभार की शुरुआत भी यहीं से हुई और वह पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं। उसे करीब 48 सीटें मिलीं। सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली बीजेपी हार गई और उसे महज 15 सीटें मिलीं। बीजेपी को 34 फीसदी वोट मिले।
साल 2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर जबरदस्त जीत मिली थी। उस चुनाव में कांग्रेस ने 47 सीटें हासिल कर एक बार फिर शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। दिसंबर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 48।13 फीसदी वोट हासिल किए थे। दूसरे स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 20 सीटें और करीब 35 फीसदी वोट हासिल किए थे। साल 2008 के चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार जीत के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। कांग्रेस को कुल 43 सीटें हासिल हुई थीं। कांग्रेस को करीब 40 फीसदी वोट मिले थे।
2013 के चुनाव में बाजी पूरी तरह से पलट गई। कॉमनवेल्थ घोटाले की गूंजी और अन्ना आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी के उदय ने माहौल को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। विधानसभा के नतीजे त्रिशंकु रहे। भारतीय जनता पार्टी को 31, आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें मिलीं। बीजेपी को करीब 33 फीसदी, AAP को करीब 29 फीसदी और कांग्रेस को करीब 24 फीसदी वोट मिले। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, हालांकि यह सरकार महज 49 दिन चल सकी। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
साल 2015 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे खराब प्रदर्शन वाले वर्षों में था। आम आदमी के उभार से विपक्ष के सारे किले ढह गए। बीजेपी को जब तीन सीटें मिल पाईं तो कांग्रेस के लिए क्या उम्मीद बची थी। कांग्रेस को मिला शून्य यानी एक भी सीट नहीं। कांग्रेस के दिग्गज नेता भी हार गए। आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें हासिल हुईं।
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में फिर AAP की सरकार बनी। आम आदमी पार्टी को करीब 54 फीसदी, बीजेपी को 32 फीसदी और कांग्रेस को महज 9।7 फीसदी वोट मिले। यानी दो साल के भीतर ही कांग्रेस के वोट प्रतिशत 24 से घटकर 10 पर आ गए। साल 2020 का विधानसभा चुनाव भी पस्त पड़ चुकी कांग्रेस के लिए कोई उम्मीद नहीं जगा पाया। एक बार फिर कांग्रेस के खाते में शून्य दिख रहा है। खबर लिखने तक कांग्रेस एक भी सीट पर न तो आगे थी और न ही किसी सीट पर उसे जीत मिली।
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