ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मुशावरत के दफ्तर में बीते रोज आयोजित इफ्तार पार्टी से पूर्व "भारत में लोकतंत्र का भविष्य" के विषय पर बातचीत करते हुए सीएसडीएस से जुड़े देश के वरिष्ठ पत्रकार अभय दुबे ने कहा कि 80 के दशक वाली इंदिरा गांधी की सरकार ऐसी पहली सरकार थी जिसने भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति पर शक किया.
उन्होंने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आजादी मिलने के बाद कई बार इस बात को दोहराया कि वह अपने लोकतांत्रिक मूल्यों से पीछे नहीं हटेंगे, चाहे उन्हें एक ही सीट मिले. यही वजह है कि प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जब उनके खिलाफ इलेक्शन लड़ रहे थे और पंडित जी को यह महसूस हुआ कि हिंदू समाज का ज्यादा वोट उन्हें चला जाएगा तो उस वक्त पंडित नेहरू ने फूलपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अगर आप लोगों को मुझे वोट नहीं देना है तो ना दें, लेकिन अब इसके बाद मैं आपके बीच नहीं आऊंगा और पंडित नेहरू के भाषण का असर यह हुआ कि प्रभुदत्त ब्रह्मचारी को 2-3 हजार वोट ही मिले.
अभय दुबे ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि 80 के दशक के बाद जो भी कांग्रेस की सरकार आई उसे मैं सेकुलर सरकार नहीं मानता. उन्होंने कहा कि आज यह होड़ लगी है कि हिंदुओं का नेता कौन हो. उन्होंने देश के लोकतंत्र को सशर्त उज्जवल बताते हुए कहा कि जब तक हम अपने लोकतंत्र को बहुसंख्यक वादी इंपल्स से नहीं बचाएंगे उस वक्त तक उज्जवल लोकतंत्र का भविष्य बे माना है.
उन्होंने कहा कि अगर हम बहुसंख्यक वाद की स्थापना पर विराम लगा पाए तो यह हमारी सबसे बड़ी कामयाबी होगी. अभय दुबे ने कहा कि पंडित नेहरु और उनकी पीढ़ी के नेता बहुसंख्यकवाद की स्थापना से बचे रहे. यही वजह है कि उन्होंने हिंदुओं को नाराज किए बगैर कई बड़े फैसले किये. उन्होंने कहा कि एक अवसर पर जब आचार्य कृपलानी ने पंडित नेहरू को मुस्लिम विरोधी बताते हुए यह कहा कि आप सारा रिफार्म सिर्फ हिंदुओं के लिए ला रहे हैं मुसलमानों पर आप की कोई तवज्जो नहीं है.
अभय दुबे ने बताया कि बदकिस्मती यह है कि 80 के दशक के बाद कांग्रेस अपने मूल्यों से हट गई और मुसलमानों की भारतीयता पर शक किया जाने लगा. अभय दुबे ने बताया कि बाल ठाकरे हिंदू हृदय सम्राट बाद में बने. ठाकरे ने अपने एक भाषण में कहा कि जब इंदिरा दीदी यह काम कर सकती हैं तो यह काम और आसानी से कर सकते हैं. इसका मतलब यह है कि कांग्रेस ने ही ये रास्ते दिखाए हैं.
अभय दुबे ने देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी को मशवरा देते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों को आपस में एक दूसरे के सुख दुख को समझते हुए एक दूसरे के करीब आना होगा. उन्होंने कहा कि अपनी परेशानियों का जिम्मेदार सिर्फ बाहर के लोगों को बता कर काम नहीं चलने वाला है, बल्कि हमें अपने अंदर भी झांकना होगा. अल्पसंख्यक समाज को एक ऐसे प्रवक्ता की जरूरत है जो बाहरी ताकतों से मुकाबला करने के साथ-साथ अंदर की दकियानूसी शक्तियों से मुकाबला कर सके. उन्होंने दुख प्रकट करते हुए कहा कि बड़े अफ़सोस की बात है कि देश की सबसे शक्तिशाली अल्पसंख्यक यूपी में 20 फीसद है और उसका एक सांसद जब लोकसभा चुनाव होने वाले हैं तब जीतकर आया है.
उन्होंने कहा कि जिस तरह से आपके वोटों को बेअसर किया गया इस पर भी आपको गहन चिंतन की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भाजपा का हिंदू और हिंदुत्व दोनों में बड़ा फर्क है. संघ के संस्थापकों ने साफ कहा था कि यह हिंदुत्व धर्म नहीं बल्कि उनका पोलिटिकल एजंडा है.
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