2004 में लोकसभा का सदस्य चुने जाने के बाद संसद में फसादात पर बोलते हुए इलियास आज़मी ने एक बहस के दौरान स्पष्ट लफ्जों में कहा कि झगड़ा हिंदू हिंदू के बीच हो सकता है, मुसलमान मुसलमान के बीच हो सकता है, हिंदू मुसलमान के बीच हो सकता है, हिंदू सिख के बीच हो सकता है, मुसलमान सिख के बीच हो सकता है, लेकिन अगर झगड़ा 2- 4 घंटों से ज़्यादा चलता है तो यह मान लेना चाहिए कि यह स्टेट स्पॉन्सर्ड राइट है या इसमें स्टेट का हाथ है या स्टेट की सहमति है।
उन्होंने संसद में कहा कि हमारी ताकत इतनी ज्यादा है कि हम कोई भी झगड़ा दो 4 घंटे से ज्यादा चलने नहीं दे सकते और उसे कंट्रोल कर सकते हैं। उन्होंने संसद में पक्ष और विपक्ष के नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि यह बहुत ही अफसोस और शर्म की बात है कि राइट जैसे विषय पर बहस के दौरान हम एक दूसरे पर टीका टिप्पणी के अलावा कुछ नहीं करते। पक्ष विपक्ष पर आरोप लगाता है और विपक्ष पक्ष पर आरोप लगाता है, जबकि ऐसे अवसर पर हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर कोई भी दंगा 2-4 घंटों से ज्यादा चलता है और सरकार किसी भी पार्टी की हो तो हमें यह मान लेना चाहिए कि इसमें सत्ता की सहमति है। उन्होंने संसद में कहा कि अक्सर यह देखा जाता है कि दंगों के दौरान पुलिस मुसलमानों की हत्या करती है और या उन लोगों का क़त्ल करती है जिन का झगड़ा हिंदू भाइयों से होता है। उन्होंने कहा कि 1984 में सिखों का कत्लेआम हुआ, लेकिन उसको कम्युनल राइट का नाम दे दिया गया। मुरादाबाद की ईदगाह में गोलियां चलाई गयीं और पुलिस ने मुसलमानों का क़त्ल किया उसे भी कम्युनल राइट का नाम दे दिया गया।
उन्होंने कहा कि एक्का दुक्का फसाद को छोड़ कर कोई कम्युनल राइट नहीं होते हैं, लेकिन उसे जान बूझ कर कम्युनल राइट का नाम इसलिए दिया जाता है क्योंकि सिस्टम में घुसे कम्युनल लोग उसकी आड़ में लोगों को कुचलने का अवसर पा जाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा करने पर उन्हें पांडे की तरह प्रमोशन मिलता है। प्रमोशन लंबे समय से चला आ रहा है। इस पर विराम लग जाए तो यह अपने आप रुक जाएगा। उन्होंने कहा कि अक्सर दंगों में देखा गया है कि पुलिस मुसलमानों की हत्या करती है और उसका नाम कम्युनल राइट दे दिया जाता है।
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