इलियास आज़मी का भौक लेख, कल होगा दिल्ली में मंथन?
मैंने 21 साल की उम्र में 1952 में चुनाव में हिस्सा लिया उसके बाद सारे ही चुनावों में सरगर्म रहा
2022 के विधानसभा चुनाव में 100 फीसदी मुसलमानों ने एक पार्टी को वोट दिया हालांकि ये पार्टी अपने गठबंधन सहित 125 सीट ही जीत पाई
उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की तादाद 20 फीसदी है इस चुनाव में मुसलमानों ने 70 से 80 फीसदी तक मतदान किया जिस कारण इनकी इनकी संख्या वोट मतदान 23 फीसदी हो गई इसमें से मात्र 3 फीसदी मुसलमान वोट इधर उधर गया जबकि 20 फीसदी वोट समाजवादी पार्टी को मिला जबकि सभी काबिले ज़िक्र मुस्लिम सियासी या गैर सियासी तंजीमें और कुछ उलेमाओं को छोड़कर सभी सरकरदा शख्सियतें समाजवादी पार्टी के खिलाफ थीं सपा खुद अपने मुस्लिम नेताओं का इस्तेमाल करने के बजाय इन्हें मंच से धक्के मारकर उतार रहे थे
इस चुनाव में गठबंधन को 30.5 फीसदी वोट मिला जिसमें अकेले 20 फीसदी मुसलमानों का था 8 फीसदी यादवों में सपा को मात्र 5 फीसदी वोट मिला 1 फीसदी वोट सिख समुदाय का मिला 1 फीसदी वोट राजभर का मिला 1 फीसदी वोट जाट का मिला और बाकी 4.5 फीसदी वोट उम्मीदवारों का अपना था
गठबंधन को मिली 125 सीट् में 24 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीते जिसमें चंद को छोड़कर बाकी सब ही मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र से जीते क्यों इस बार मुसलमान के वोट का कोई बटवारा नही हुआ
मुस्लिम वोट किस बजह से इस हद तक मुत्तहिद हुआ ये एक ख्याली राज है जो किसी बुराई को भलाई और भलाई से बुराई निकलने पर क़ादिर है।
मैं अपने लंम्बे सियासी तजुर्बे से ये बात कह रहा हूँ कि उत्तर प्रदेश में 2014 से 2022 तक जितने भी चुनाव हुए हैं सबके नतीजे के वाहिद ज़िम्मेदार मुसलमान हैं
उत्तर प्रदेश में कुल आबादी में से 18 से 20 फीसद अपर कास्ट हिन्दू (अगड़ी जाति) 8 से 9 फीसद यादव 28 से 30 फीसद गैर यादव पिछड़ी जातियां 21 से 22 फीसद दलित जिसमें अकेले 13 फीसद जाटव और उनका अपनी आबादी के 63 फीसद लोग अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए कुछ भी कर सकते हैं जिस तरह मुसलमान बीजेपी को रोकने के लिए कोई भी दीवार फांद सकता है उत्तर प्रदेश में 2014 और उसके बाद होने वाले चुनाव के नतीजे में सिर्फ एक ही विश्लेषण काफी है और मुस्लिम समाज इसे अपनी डायरी में नोट कर ले कि जिस दिन मुसलमान ने अखिलेश यादव से किनारा कर लिया उसके बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी कोई चुनाव नही जीत सकती चाहें दो चार मोदी और पैदा हो जाएं
जब उत्तर प्रदेश में 2022 चुनाव शुरू हुआ था तो देखने मे लगता था कि बीजेपी का जीतना तो दूर शायद बीजेपी मुख्य विपक्षी दल भी नही बन पाएगी अपर कास्ट में पण्डित नाराज़ था और रोजगार की बदहाली पर नाराज लोगों की तादाद भी बहुत थी गैर यादब पिछड़ी जातियां जिन्होंने बीजेपी को 3 चुनाव जिताये थे उनका रुख भी आवारा जानवरों व दीगर मसलों पर खिलाफ था
मायावती की बे अमली और उसके सर्व समाज के नारे ने दबे कुचले लोगो का उससे मोह भंग कर दिया था
इस बीच मुसलमानों में भी बीजेपी को हराने या अखिलेश यादव को जिताने के लिए सारी बेग़ैरत को बर्दाश्त कर के चुनाव का जज़्बा इस कदर भर गया था कि वह सड़को पर रश्क करने लगा था मज़कूरा 63 फीसदी वोट को खतरा पैदा हुआ कि कहीं फिर से अखिलेश यादव ना आ जाये सबसे पहले बीजेपी का मुखलिफ़ अपर कास्ट वोट बसपा के उमीदवारों की गाड़ी से गायब होना लगा फिर गैर यादव पिछडी जातियां यादव राज को रोकने में मुब्तिला हो गई आखिर में जाटव भी ये कहने लगा कि अखिलेश यादव ने पद उन्नति में आरक्षण खत्म किया था इस लिए मतदान वाले दिन जाटव बिरादरी बड़ी संख्या में बीजेपी की ओर खिसक गई यदि ऐसा ना होता तो बसपा को सिर्फ 12 वोट क्यों मिलता जबकि उसमे भी आधे से ज्यादा वोट बसपा के उम्मीदवारों का अपना था उन्होंने।पार्टी के प्रभुत्व के बहाने बसपा को छोड़ दिया इस तरह बीजेपी की सीट तो पहले से कम हुई लेकिन वोट में 5 फीसदी इज़ाफ़ा हो गया बीजेपी का सीट कम होने का कारण था कि मुस्लिम समाज के वोट का बंटवारा नाममात्र को भी नही हुआ जिस बजह से मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में सपा जीत गई मुस्लिम आबादी की बड़ी संख्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति की एक बड़ी त्रासदी ये है कि डॉ फरीदी की मुस्लिम कयादत पर बनी पार्टी यहाँ कभी खाता भी नही खोल पाई उनकी ज्यादा तर सीट पूर्वी उत्तर प्रदेश से जीती थी जबकि इस बार चंद मुसलमानो को छोड़कर ज्यादा तर सीट पश्चिम से जीती हैं मुमकिन है कुदरत ने इस बार बुराई में ही भलाई निकालने का फैसला लिया हो
मुझसे रोजाना पूरे उत्तर प्रदेश के हिन्दू मुस्लिम सियासी लोग आकर मिलते हैं सभी का ख्याल है कि सपा अब इतिहास के कूड़ेदान में जाने वाली है जबकि बसपा भी उसी कूड़ेदान की रौनक बन सकती है यदि वह कांसीराम के रास्ते पर ना लौटी तो ?
निश्चित रूप से कुछ भी नहीँ कहा जा सकता
लेखक
श्री इल्यासी आज़मी
-पूर्व सांसद
व्याख्या: यह लेखक के निजी विचार हैं। लेख प्रकाशित हो चुका है। कोई बदलाव नहीं किया गया है। वतन समाचार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। वतन समाचार सत्य या किसी भी प्रकार की किसी भी जानकारी के लिए जिम्मेदार नहीं है और न ही वतन समाचार किसी भी तरह से इसकी पुष्टि करता है।
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