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एक ऐसा लेख जो बदल सकता है मुसलामानों की दिशा और दशा: BY MJ KHAN

भारतीय मुसलमान शिक्षा, नौकरियों और व्यवसायों में कम हिस्सेदारी से लेकर बढ़ते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हाशिए पर और छवि व धारणा के मुद्दों से लेकर सांस्कृतिक पहचान, सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी और "200 मिलियन" वाले भारतीय मुस्लिम समुदाय की स्थिति में कोई भी सकारात्मक बदलाव, आंतरिक सुधारों को शुरू करने, आधुनिक दृष्टिकोण अपनाने और एक तरफ सामुदायिक सेवा करने और दूसरी ओर अनुकूल सामाजिक और राजनीतिक वातावरण के निर्माण से ही संभव है। साथ ही साथ इस समुदाय के लिए शैक्षिक और आर्थिक अवसरों की पहुंच को सक्षम बनाना भी आवश्यक है।

By: Guest Column
  • भारतीय मुसलमान और परिवर्तन की चुनौतियां: डॉ. एम.जे. खान

  • एक ऐसा लेख जो बदल सकता है मुसलामानों की दिशा और दशा: BY MJ KHAN

 

भारतीय मुसलमान शिक्षा, नौकरियों और व्यवसायों में कम हिस्सेदारी से लेकर बढ़ते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हाशिए पर और छवि व धारणा के मुद्दों से लेकर सांस्कृतिक पहचान, सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी और "200 मिलियन" वाले भारतीय मुस्लिम समुदाय की स्थिति में कोई भी सकारात्मक बदलाव, आंतरिक सुधारों को शुरू करने, आधुनिक दृष्टिकोण अपनाने और एक तरफ सामुदायिक सेवा करने और दूसरी ओर अनुकूल सामाजिक और राजनीतिक वातावरण के निर्माण से ही संभव है। साथ ही साथ इस समुदाय के लिए शैक्षिक और आर्थिक अवसरों की पहुंच को सक्षम बनाना भी आवश्यक है।

 

हमें अपने दृष्टिकोड़ और विकास योजनाओं को वैश्विक रुझानों और गतिशीलता और उभरती सामाजिक-आर्थिक और तकनीकी वास्तविकताओं के साथ संरेखित करने की भी आवश्यकता है। दुनिया में पिछले चार दशकों में तेजी से बदलाव हुए हैं. खासकर विश्व व्यापार संगठन के संचालन के साथ इस में बड़े बदलाव देखने को मिले हैंI पिछले 50 वर्षों में विश्व व्यापार पिछले 500 वर्षों में हुए व्यापार की तुलना में कई गुना अधिक रहा है। 

 

तकनीकी विकास की गति, विशेष रूप से दूरसंचार और इंटरनेट ने दुनिया को एक छोटा सा गांव बना दिया है, जहां एक छोटी सी जगह की खबर कुछ ही समय में वैश्विक हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक निकायों और वित्त पोषण संगठनों की सामाजिक क्षेत्र की विकास प्राथमिकताओं पर आज "समावेश, समानता और विविधता" के दर्शन का प्रभुत्व है। सरकारों या भारतीय मुसलमानों को कोई भी सामाजिक या आर्थिक विकास की नीतियां इन बदलती हुई वैश्विक नीतियों को अपनाने के साथ ही संभव होगा. या यूं कहें कि अगर बदलते हुए हालात से हम ने सबक़ नहीं लिया तो फिर तरक़्क़ी की दौड़ में हम काफी पीछे रह जायेंगेI

 

भारत की 1990-91 में 266 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था 2019-20 में दस गुना बढ़कर 2.6 ट्रिलियन डॉलर हो गयीI इस अवधि में विश्व राजनीति में कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुएI सोवियत संघ से 15 स्वतंत्र देशों में विघटन से लेकर नए गठबंधन और देशों के पुनर्गठन, यूरोपीय संघ के गठन, एशिया के उदय और अमेरिका में पहले अश्वेत राष्ट्रपति के साथ ही बहुत कुछ बदल गया। आज 90 ट्रिलियन डॉलर की वैश्विक अर्थव्यवस्था में, उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय संघ और एशिया, चीन को हटाकर, लगभग 24 ट्रिलियन डॉलर प्रत्येक के बराबर है। पिछले चार दशकों के दौरान ज्ञान अर्थव्यवस्था और सेवा क्षेत्र में तेजी से वृद्धि ने महत्वपूर्ण परिवर्तन को चिह्नित किया है, जिस ने शिक्षा के महत्व को केंद्र स्तर पर लाया है, और सामाजिक विविधता और बहुसंस्कृतिवाद को किसी भी देश के लिए बड़ी संपत्ति के रूप में मान्यता दी है। 

 

नए युग में भारत ने जबरदस्त तरक्की की है अर्थव्यवस्था से लेकर विशेष रूप से सॉफ्टवेयर व्यवसाय के क्षेत्र में इन्किलाब आया हैI भारत की अपनी विशाल सामाजिक विविधता, जो मानव संसाधन को सॉफ्टवेयर कोडिंग, सेवाओं और ज्ञान व्यवसायों के लिए सबसे उपयुक्त बनाता है, नयी आर्थिक विकास मार्ग के लिए वरदान साबित हुई है।

 

 

 

90 के दशक की शुरुआत में वैश्वीकरण की शुरुआत ने वैश्विक अवसरों का और विस्तार किया, और ई-कॉमर्स के उभार ने भौतिक दूरियों से होने वाले नुक्सान को कम किया। जबकि भारत ने ज्ञान व्यवसायों और सॉफ्टवेयर उत्पादों और सेवाओं में तेजी से वृद्धि की, जो आज अकेले $ 60 बिलियन से अधिक निर्यात के लिए जिम्मेदार है, और भारत के $2.6 ट्रिलियन सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) में $1.5 ट्रिलियन का योगदान देता हैI परन्तु बदलती हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था जिस में ज्ञान आधारित व्यवसाय सेवा क्षेत्र प्रमुखता से आगे बढ़ रहे हैं. भारत व दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय ने एक बड़ा अवसर गंवा दिया, जहां शिक्षा सफलता के लिए अनिवार्य थी, न कि निवेश।

 

भारत में 1990-91 में प्रारम्भ हुए आर्थिक सुधारों की शुरुआत के बाद से देश तेजी से विकसित हुआ है, और भारतीय आबादी के हर वर्ग को आय और जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हुई है, जब की भारतीय मुसलमानों की कहानी एक बार फिर से खोए हुए अवसरों में से एक रही है। मुस्लिम समुदाय लाइसेंसिंग राज के पहले चार दशकों के दौरान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से विकास में हिस्सा लगाने में चूक गया, तत्पश्चात उदारीकरण की अवधि के दौरान फिर से बस पकड़ने से चूक गया, और अब जब नए युग की अर्थव्यवस्था को उच्च शिक्षा, विशेष रूप से तकनीकी और पेशेवर शिक्षा की आवश्यकता थी, चाहे कॉर्पोरेट क्षेत्र में करियर की सीढ़ी चढ़ना या एक सफल व्यवसाय उद्यम शुरू करना। समुदाय फिर से उन्हीं कारणों से स्टार्टअप्स युग की बस को मिस करने के लिए तैयार है।

 

हालांकि, एक दिलचस्प हालिया विकास यह है कि इतिहास में पहली बार, 1882 में विलियम हंटर आयोग की रिपोर्ट के बाद से, कि मुस्लिम आबादी में अपने हिस्से से अधिक सरकारी योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कुछ योजनाओं में इसकी हिस्सेदारी 27% तक हो गई है। यह ऐसा सच है, जो किसी को भी उजागर करने के लिए उपयुक्त नहीं है। आज की सरकार अपने मूल मतदाता की प्रतिक्रिया का जोखिम नहीं उठा सकती है, सेक्युलर जमाअतें समुदाय के मतदान में बदलाव से डर सकते हैं और समुदाय स्वयं स्थिति को उलटने का जोखिम नहीं उठा सकता है।

 

अब सवाल यह उठता है कि भारतीय मुसलमानों को क्या हो गया है? 1882 में जस्टिस हंटर से लेकर 2006 में जस्टिस सच्चर रिपोर्ट और 1970 में रंग विलास मिश्रा से लेकर 2008 में जस्टिस रंग नाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट तक, समुदाय की स्थिति गंभीर बनी रही। तो क्या यह सरकार के रंग या बाहरी factors के बारे में है जो जिम्मेदार हैं या हमारा अपना रवैया और आंतरिक factors हैं? नौकरियों, शिक्षा, व्यवसायों और आर्थिक गतिविधियों और कल्याण कार्यक्रमों में समुदाय की हिस्सेदारी में गिरावट 1947 से पूरी अवधि के दौरान जारी रही। 

 

इस दौरान राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उतार चढ़ाव् होता रहा है। 1980 में 49 सांसदों के शिखर से 2014 में 23 सीटों और 2019 में 27 सीटों तक, लोकसभा में मुसलमानों की हिस्सेदारी 76 सीटों के आनुपातिक हिस्से का लगभग एक तिहाई है। समाज में ईमानदार आत्मनिरीक्षण की तत्काल आवश्यकता है। समय आ गया है कि हमें अपने वास्तविक मुद्दों और वास्तविक शत्रुओं का पता लगाना चाहिए। हमारे असली हीरो और रोल मॉडल आखिर हैं कौन? बहुत लंबे समय तक हम ने सर-सैयद अहमद खान जैसे दूरदर्शी लोगों के जीवन से सीख लेने की जगह उनके साथ जो व्यवहार किया उस का नतीजा हमारे सामने है। 

 

 

हमने सर सय्यद अहमद खान साहब जैसे समाज सुधारक की प्रशंसा तो की, लेकिन उन से सीखने से इनकार कर दिया। समुदाय ने स्व-केंद्रित धार्मिक व राजनैतिक नेताओं द्वारा खुद का शोषण करने की अनुमति दी, जिन्होंने गैर-मुद्दों पर समुदाय को भावनात्मक रूप से फंसाया और अपने व्यक्तिगत राजनीतिक हितों की सेवा के लिए इसका इस्तेमाल किया।

 

आज समुदाय के लिए वास्तविक चुनौती ख़राब छवि और आम धारणा, नकारात्मक दृष्टिकोण और प्रतिगामी सोच, और मानव गतिविधियों के लगभग सभी क्षेत्रों में खराब आचरण और कम योगदान के कारण है। और इस्लाम के सार को समझने और उसका पालन करने के बजाय, हम मुस्लिम पहचान के प्रतीकों को प्रदर्शित करने में अधिक विश्वास करते रहे हैं। हमारे दृष्टिकोण में समाज की सेवा करने की अवधारणा गायब रही है, जिसे हम आज सिखों और ईसाइयों से सीख सकते हैं। IMPAR ने स्वच्छता अभियान शुरू करने और गरीब भोजन कार्यक्रमों को चलाने की कोशिश की है और इस की विभिन्न राज्य और जिला इकाइयों को भी समुदाय को अपनाने और प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरित किया है। जबकि हमें आत्मनिरीक्षण करने और अपने पाठ्यक्रम को सही करने की आवश्यकता है. हमें मीडिया और राजनीतिक और नीतिगत विकास की निगरानी करने की भी आवश्यकता है, और इसे अनदेखा करना काफी महंगा होगा।

 

पक्षपातपूर्ण मीडिया की भूमिका और अप्रैल 2020 में लॉकडाउन की अवधि के दौरान हमने जो देखा, जिसने समुदाय के लिए इतनी कठिन स्थिति पैदा कर दी थी कि वैसा माहौल मीडिया कुछ दिन और बनाने में सफल रहता तो भारत में गृह युद्ध जैसे हालात पैदा हो जाते। IMPAR उस संकट की घडी का सामना करने के लिए निर्माण किया गया था, और इस ने उस चुनौती को सफलतापूर्वक संभाला और बदलाव लाया। दुर्भाग्य से दशकों से सत्तारूढ़ दलों का दृष्टिकोण 200 कुलीन मुस्लिम परिवारों के सदस्यों को अच्छे ओहदे देकर अपनी जिम्मेदारियों के अंत के रूप में रखने का रहा है, जैसे कि 200 परिवारों को सशक्त बनाना 200 मिलियन मुसलमानों के सशक्तिकरण का पर्याय है।

 

 

 

अपने नागरिकों के लिए प्रभावी तरीके से शैक्षिक और आर्थिक अवसरों का विस्तार करना भारत के लिए एक राष्ट्रीय प्राथमिकता है। मुसलमानों के सामने आने वाली बाधाओं और समानता के लिए सरकार, मीडिया, विचारकों और राजनीतिक वर्ग द्वारा बेहतर समझ की आवश्यकता होती है, जिसके लिए समुदाय द्वारा एक शोध, निगरानी, संवाद और नीति वकालत मंच बनाने की आवश्यकता रही है। IMPAR लंबे समय से महसूस की जाने वाली इस अत्यधिक चिंता का परिणाम है। राजनीति, नौकरशाही, शिक्षा, व्यवसाय, विज्ञान, मीडिया, कानून, कला और फिल्मों आदि जैसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से 500 से अधिक मुसलमानों द्वारा गठित, IMPAR समाज में सार्थक बदलाव लाने के लिए तत्पर है।

 

भारतीय मुसलमानों को बेहद विविध और बहुसांस्कृतिक राष्ट्र में जन्म लेने और लोकतंत्र और विविधता के लाभांश का आनंद लेने का सौभाग्य मिला है। भारतीय मुसलमान दुनिया के मुसलमानों को रास्ता दिखा सकते हैं। हाल के दिनों में युवाओं और समुदाय की महिलाओं में एक नया आत्मविश्वास पैदा हुआ है, परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्हें सकारात्मक और उत्पादक उद्देश्यों के लिए अपनी ऊर्जा का उपयोग करने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता है। समुदाय को अधिक कार्यक्रमों की आवश्यकता है जो जनता के लिए अवसर पैदा कर सकें। हमें अपनी सोच और कार्य में सकारात्मकता और आशावाद की आवश्यकता है। भारत तेजी से विकास करने वाला देश है और अवसर प्रचुर मात्रा में हैं।

 

हमें तरक्की के नए रास्ते तलाशने होंगे। घिसे हुए रास्तों पर फिर से चलना और अलग परिणाम की उम्मीद करना बेईमानी होगी। हमें सरकार व सभी समुदायों से मिलकर व सभी का साथ लेकर पिछड़े हुए भारतीय मुस्लिम समुदाय के लिए योगदान करने की आवश्यकता है। IMPAR लाखों लोगों की आशा है। हमें विश्वास है कि यह लाखों लोगों को लाभान्वित करने में सक्षम होगा।

 

 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.


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