जमीअत के प्रोग्राम से राहुल ने बनायी दूरी
देश की आजादी में कांग्रेस के बराबर का योगदान अदा करने वाली देश की सर्वोच्च संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद के ईद मिलन समारोह में जनेऊधारी ब्राह्मण राहुल गांधी दिल्ली में होते हुए भी नहीं पहुंचे. इसके साथ ही यह बात साफ हो गई कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व 2019 तक कम से कम किसी भी ऐसे प्रोग्राम में हिस्सा नहीं लेगा जिससे यह महसूस हो कि वह मुसलमानों के तईं अपने दिल में नरम पहलू रखते हैं.
राहुल कि टीम जमीअत से नाराज़
ज्ञात रहे कि बीते वर्ष मौलाना अरशद मदनी के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद के ईद मिलन समारोह में कांग्रेस के मौजूदा और उस वक्त के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने हिस्सा लिया था. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उस वक्त जमीयत उलमा की ओर से कहा गया था कि राहुल गांधी को बोलना नहीं है, लेकिन जब प्रोग्राम शुरू हुआ तो जमीयत उलमा के लोगों ने मंच पर पहले से मौजूद राहुल गांधी को बोलने के लिए आमंत्रित किया. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राहुल गांधी की टीम ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई थी, और कहा था कि भविष्य में ऐसा नहीं होना चाहिए. राहुल गांधी की टीम की ओर से कहा गया कि जब पहले बोलने के लिए नहीं कहा गया तो फिर बाद में बोलने के लिए क्यों कहा गया.
विपक्ष के बड़े नेता आये नज़र
जमीयत के आज के ईद मिलन समारोह में कांग्रेस की ओर से कांग्रेस के मौजूदा चाणक्य अशोक गहलोत (जो कि OBC समाज से आते हैं) उनके साथ साथ अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद पहुंचे थे. आरजेडी की ओर से तेजस्वी यादव लेफ्ट की ओर से सीताराम येचुरी समाजवादी पार्टी की ओर से पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव समेत कई दूसरे सांसद विधायक और उलेमा प्रोग्राम में मौजूद थे.
दिल्ली में थे राहुल गाँधी
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राहुल गांधी इस प्रोग्राम में दिल्ली में होते हुए भी नहीं पहुंचे, जिससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि राहुल की टीम राहुल को किसी भी ऐसे प्रोग्राम से बचाकर रखना चाहती है जिससे उन पर मुस्लिम समाज की छाप पड़ने का डर हो. ज्ञात रहे कि वैसे बीते दिनों राहुल गांधी ने दिल्ली में ही ओबीसी समाज के सम्मेलन को संबोधित किया था, और उसी समाज से कांग्रेस के मौजूदा चाणक्य अशोक गहलोत आते हैं.
देश की आजादी में कांग्रेस के बराबर का योगदान अदा करने वाली देश की सर्वोच्च संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद का ईद मिलन समारोह
खुद को मुस्लिम टच देने से बच रही है कांग्रेस
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस जो पहले से यह मान रही है कि मुसलमान उसका वोट बैंक है और मुसलमानों के पास देश की मौजूदा परिस्थितियों में पहले भी और अब भी इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि वह कांग्रेस या गठबंधन को वोट दें इसलिए कांग्रेस मुसलमानों को अपनी धरोहर समझते हुए दूसरे समुदायों पर अपना फोकस कर रही है, ताकि वह 2019 की जंग जीत सके. जानकारों का मानना यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद अछूत बना दिया गया मुस्लिम वोट अब 2019 में बधुआ मजदूर के अलावा कुछ नहीं रहेगा, और उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा, इसलिए मुसलमानों को इस लाइन पर गंभीरता पूर्वक गौर करना होगा कि किस तरह से उनके वोटों की खोई हुई हैसियत वापस आ सके.
सबसे पहले इंदिरा गांधी सरकार ने मुसलमानों की देशभक्ति पर किया शक
ज्ञात रहे कि बीते दिनों ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मुशावरत के इफ्तार प्रोग्राम को संबोधित करते हुए देश के वरिष्ठ पत्रकार अभय दुबे ने कहा था कि 80 के दशक वाली इंदिरा सरकार ने सबसे पहले मुसलमानों की देशभक्ति पर शक किया और उसके बाद जो भी सरकार कांग्रेस के नेतृत्व में बनी वह सरकार सेकुलर नहीं रही. खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक प्राइवेट चैनल के प्रोग्राम में खुल कर कहा कि उनकी पार्टी पर मुस्लिम पार्टी का ठप्पा लगने की वजह से 2014 में उनको नुकसान उठाना पड़ा, इसके साथ ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी के नेतृत्व वाली समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में यह कहा था कि पार्टी को मुसलिम वाली छवि ने नुकसान पहुंचाया है.
3 सेकंड भी टोपी नहीं पहन सके राहुल
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब 2015 के बाद बंद हुए इफ्तार को 2018 में शुरू किया तो उन्हें मुस्लिम नेताओं की ओर से सेकुलर नेता के तौर पर उर्दू अखबारों में पेश किया जाने लगा, ताकि उनकी छवि मुसलमानों में बेहतर की जा सके और इसी कड़ी में इजरायल के राजनयिक को न्योता भी नहीं दिया गया लेकिन राहुल गांधी को उनकी ही इफ्तार पार्टी में जब उन्हें टोपी पहनाई गई तो उन्होंने टोपी पहनते ही 3 सेकेंड के अंदर उसको उतार दिया और वह देर तक टोपी भी पहने नहीं रह सके, जिसके बाद सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड चल पड़ा कि राहुल गांधी टोपी के दुश्मन हैं, जबकि उनके पक्ष में कुछ लोगों ने कहा कि राहुल गांधी ने टोपी के सम्मान में उसको उतार दिया. वहीं राहुल गांधी के नाना और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के बारे में यह बात कही जाती है कि उनका यह मत था कि सीट एक भी ना मिले लेकिन वह सेकुलर और संवैधानिक सिद्धांतों को नहीं छोड़ेंगे, लेकिन कांग्रेस का मौजूदा ट्रेंड कुछ और ही कहता है.
बहुसंख्यक वोटो को नाराज़ नहीं करना चाहती कांग्रेस
कांग्रेस के नेताओं कि मुसलमानों से दूरी कि वजह साफ़ है वह हर क़ीमत पर बहुसंख्यक वोटों को नाराज़ नहीं करना चाह रही है. जमीयत उलमा के आज के प्रोग्राम में देश की मौजूदा स्थिति का नजारा भी खूब देखने को मिला, जब जमीयत के मुखिया अरशद मदनी के अलावा कोई भी नेता मंच से बोलने कि हिम्मत नहीं जुटा सका, जबकि मंच पर सीताराम येचुरी जयंत चौधरी तेजस्वी यादव अखिलेश यादव और अहमद पटेल समेत कई नेता उपस्थित थे. इस से पहले यह रिवायत रही है कि मंच पर बैठने वाले मेहमान कुछ न कुछ बोलते रहे हैं.
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