जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अंग्रेज़ी विभाग में एमएचआरडी प्रायोजित स्पार्क (एसपीएआरसी) के चैथे कोर्स का 20 दिसंबर को समापन हुआ। पाठ्यक्रम का शीर्षक “डिजिटल अप्रोच ऑफ़ पोएटिक्स“ था। यह कोर्स उन छात्रों के लिए था जो दिल्ली के विभिन्न विश्वविद्यालयों से शोध और स्नातकोत्तर कर रहे हैं। फाॅरन कोर्स के समन्वयक प्रोफेसर सीन ए़ प्यू थे, जो मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका से डिजिटल ह्यूमैनिटीज़ के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध विद्वान हैं। इस कोर्स का मक़सद भारतीय काव्य के सिकुड़ते महत्व और आज के बढ़ते डिजिटलीकरण के बीच की खाई को पाटना है। इसका उद्देश्य यह समझने में मदद करना है कि हम भारतीय काव्य ग्रंथों को समझने और उन पर टिप्पणी करने के लिए डिजिटल तकनीक के साधनों का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
कोर्स के पहले हफ्ते में, विभिन्न डिजिटल तकनीकी उपकरणों को समझने पर ज़ोर दिया गया, जिनका इस्तेमाल भारतीय काव्य के डिजिटल संस्करण के लिए किया सकता है। पहले सप्ताह में सीखे गए कुछ उपकरणों में टेक्स्टुअल एन्कोडिंग इनिशिएटिव शामिल था। हालाँकि, दक्षिण एशियाई भाषाओं में टेक्स्टुअल एनकोडिंग इनिशिएटिव के संबंध में एक महत्वपूर्ण कमी है।
दूसरे सप्ताह में, शोधकर्ताओं ने ट्रांसक्राइबस जैसी विभिन्न तकनीकों का उपयोग करने के बारे में सीखा। यह वह सॉफ्टवेयर है जो पांडुलिपि को एनोटेट करने में मदद करता है। यह विशेष रूप से तब मददगार होता है जब हम एक कविता और लेखन के छोटे हिस्से की व्याख्या करते हैं। शोधकर्ताओं ने एजिसब जैसे सॉफ्टवेयर के ज़रिए ऑडियो और विजुअल एनोटेशन को अंजाम देना भी सीखा, जो सबटाइटलिंग की प्रक्रिया में मदद करता है। यह विशेष रूप से एक उपयोगी उपकरण है क्योंकि कई विज़ुअल फाइलें विदेशी या क्षेत्रीय भाषा में हैं। कोर्स की आखि़री दो क्लास में भारतीय कविताओं को समझने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
भारतीय कविताओं के डिजिटल क्रिटिकल एडिशन बनाने के बारे में सामूहिक चर्चा के साथ कोर्स का समापन हुआ।
यह कोर्स एमएचआरडी समर्थित स्पार्क:एसपीएआरसीः कार्यक्रम के तहत हुआ, जो भारतीय विश्वविद्यालयों और शोधकर्ताओं के द्वार पर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञता लाने की एक महत्वपूर्ण पहल है। जामिया के अंग्रेजी विभाग को 4 ऐसे एमएचआरडी प्रायोजित स्पार्क पाठ्यक्रम मिले हैं, जो देश में किसी भी विभाग के लिए दुर्लभ बात है।
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