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विदेशी तब्लीगी जमातियों की रिहाई से संबंधित अदालतों के फैसले स्वागत योग्य क़दम

जमीअत उलमा-ए-हिंद का स्वागत के साथ अदालती कार्रवाई जारी रखने का संकल्पः मौलाना अरशद मदनी

By: वतन समाचार डेस्क
  • विदेशी तब्लीगी जमातियों की रिहाई से संबंधित अदालतों के फैसले स्वागत योग्य क़दम
  • जमीअत उलमा-ए-हिंद का स्वागत के साथ अदालती कार्रवाई जारी रखने का संकल्पः मौलाना अरशद मदनी

 

 

नई दिल्ली13जून 2020

    सहारनपुर की एक अदालत ने एक अहम फैसला सुनाते हुए 57 विदेशी जमातियों पर विदेशी क़ानून के तहत लगाई गई तमाम धाराओं को निराधार मानते हुए सभी जमातियों को रिहा कर दिया। इस फैसले से उनका अपने देश लौटना आसान हो गया है। अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए अन्य स्थानों पर हिरासत में लिये गए विदेशी जमातियों के लिए न्यायिक संघर्ष की प्रतिबद्धता दोहराई। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन विदेशी जमातियों के खिलाफ महामारी कानून के तहत एफ.आई.आर. दर्ज की थी। एफ.आई.आर. में उनके खिलाफ महामारी और विदेशी कानून के उल्लंघन की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने विदेशी जमातियों को मुल्ज़िम मानते हुए सभी धाराओं के तहत अदालत में चालान प्रस्तुत किया था। इस मामले में अदालत ने सुनवाई करते हुए 57 विदेशी जमातियों, जिसमें इंडोनेशिया के 19, किर्गिस्तान के 21, सूडान के 5, थाईलैंड के 4, मलेशिया के 2 और स्पेन, शाम, फलस्तीन, सऊदी अरब, फ्रांस, माली के एक एक हैं, को रिहा कर दिया और उन पर कोई जुर्माना नहीं लगाया। अदालत ने कहा कि ये लोग एक महीने से अधिक की सज़ा पहले ही काट चुके हैं, इसलिए अब किसी तरह के जुर्माने या सज़ा की ज़रूरत नहीं है। अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने तमाम भारतीय अदालतों के साथ सहारनपूर और नूह की अदालतों के फैसलों की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह स्वागत योग्य क़दम है और उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य स्थानों पर हिरासत में लिये गए विदेशी तब्लीगी जमातियों की रिहाई का रास्ता साफ होगा और जमीअत उलमा-ए-हिंद अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार उन लोगों की रिहाई के लिए न्यायिक संघर्ष करती रहेगी। उन्होंने कहा कि ये सभी विदेशी जमात के लोग नियमानुसार वीज़ा लेकर आए थे। यह आज का कोई नया सिलसिला नहीं है बल्कि देश की आज़ादी के बाद से इसी तरह लोग आते रहते हैं। भले ही वीज़ा टूरिस्ट होता है लेकिन तब्लीग सीखने के लिए आते हैं और भारत के विभिन्न शहरों में अलग-अलग जमातों के साथ वर्षों से इसी तरह तब्लीग सीखने के लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसी तरह अन्य धर्मों के लोग टूरिस्ट वीज़ा लेकर आते हैं और सभी धार्मिक गतिविधियों में शामिल होते हैं, चाहे बनारस के घाट हों या मन्दिर या योगशाला, इसलिए तब्लीगी जमातियों के लिए कोई कड़ा रुख अपनाना उचित नहीं मालूम होता है। उन्होंने कहा कि सहारनपुर की अदालत ने इन विदेशियों के लिए जो रुख अपनाया है उनको हम सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और आशा करते हैं कि नूह और सहारनपुर की अदालत की तरह देश के अन्य राज्यों की अदालतें भी उन्हें अपना अतिथि समझ कर नर्म रुख अपनाएंगी। हमें खुदा से उम्मीद है कि ये लोग जल्द से जल्द अपने मुल्कों को वापस चले जाएंगे। स्पष्ट रहे कि जमीअत उलमा-ए-हिंद तब्लीगी जमातियों का मामला सामने आने के बाद से ही दिल्ली समेत देश के विभिन्न राज्यों में इन विदेशी जमात वालों के लिए उनके दूतावासों से बराबर संपर्क में है और कई जगह जमीअत उलमा-ए-हिंद और जमात का भला चाहने वाले वकील मामले को देख रहे हैं।

    स्पष्ट रहे कि शिव विहार मध्य प्रदेश की अदालत ने 6 विदेशी जमातियों को आज ज़मानत पर रिहा कर दिया है और शामली की अदालत ने भी 12 विदेशियों को रिहा कर दिया है। उल्लेखनीय है कि आज ही महाराष्ट्र के ज़ि़ला अहमद नगर के ताल्लुका जामखेड़ की अदालत ने अपने फैसले में 10 विदेशी जमातियों को ज़मानत देते हुए जेल से रिहा कर दिया है, जिसमें तनज़ानिया के 4, ओरीकोस्ट के 4 और ईरान के 2 लोग शामिल थे। इस से पहले उत्तराखंड की अदालत ने 21 विदेशी जमातियों को रिहा किया था जो जमीअत उलमा-ए-हिंद की सहायता से अपने देश पहुंच चुके हैं। इसी बीच डिपोजेपी के 6 विदेशी उड़ीसा से रहा हो कर दिल्ली पहुंच चुके हैं। अंत में मौलाना मदनी ने कहा कि हमने पहले ही विदेशियों का डाटा जारी करते हुए कहा था कि सांप्रदायिक मीडिया के प्रोपेगंडे ने कोरोना फैलाने का ज़िम्मेदार तब्लीगी जमात वालों को ही बना दिया है जिनकी वजह से यह विदेशी मेहमान परेशानी में हैं, डाटा के अनुसार विदेशी लगभग पूरे देश में 1640 हैं, इनमें केवल दिल्ली में 955, शेष देश के अन्य राज्यों में हैं। जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से एडवोकेट महताब अली खान, एडवोकेट मोहतरमा शहज़ाद खान और एडवोकेट मुहम्मद आरिफ खान पेश हुए। जमीअत उलमा सहारनपुर के जिम्मेदारों मौलाना हबीबुल्लाह मदनी, मौलाना असअद हक़्क़ानी और हाजी एम. शाहिद जुबैरी शुरू ही से इस मुक़दमे की पैरवी कर रहे थे जिसकी वजह से यह सफलता संभव हो सकी।

 

 

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