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आज देश की सीमाओं पर एक गंभीर चुनौती आई है। सरकार के सामने दो विकल्प हैं: Congress

आज देश की सीमाओं पर एक गंभीर चुनौती आई है। सरकार के सामने दो विकल्प हैं, या तो पूरे देश को साथ लेकर सेना के पीछे खडे होकर चीन का मुकाबला करें और या शुतुरमुर्ग की तरफ रेत मे सर छुपाकर यह मान लें कि LAC पर कोई घुसपैठ हुई ही नहीं।

By: वतन समाचार डेस्क
  • आज देश की सीमाओं पर एक गंभीर चुनौती आई है। सरकार के सामने दो विकल्प हैं: Congress
  • पवन खेड़ा, राष्ट्रीय प्रवक्ता, अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (AICC) द्वारा जारी वक्तव्य

 

आज देश की सीमाओं पर एक गंभीर चुनौती आई है। सरकार के सामने दो विकल्प हैं, या तो पूरे देश को साथ लेकर सेना के पीछे खडे होकर चीन का मुकाबला करें और या शुतुरमुर्ग की तरफ रेत मे सर छुपाकर यह मान लें कि LAC पर कोई घुसपैठ हुई ही नहीं। 

 

 

 

अफ़सोस कि मोदी सरकार ने एक तीसरा रास्ता चुना, जहां जो सेवानिवृत सेना अधिकारी, सुरक्षा विशेषज्ञ, विपक्ष, मीडिया कोई भी अगर सरकार से सीमाओं की अखंडता पर प्रश्न पूछे या सरकार को आगाह करें तो उन्हें लाल आंख दिखाई जा रही है और देश के दुश्मन को क्लिन चिट दी जा रही है। प्रधानमंत्री का वक्तव्य कि कोई घुसपैठ हुई ही नहीं आज तक चीन पूरे विश्व समुदाय को मोदी जी द्वारा दी गई एक क्लिन चिट के तौर पर दिखा रहा है। मोदी जी कहते हैं कि चीन आया ही नहीं और चीन भी कह रहा है कि हम तो अपने भूभाग पर हैं और गलवान हमारा भूभाग है।

 

 

 

जब पूरे देश में इस वक्तव्य पर गुस्सा और रोष दिखाई देने लगा तो प्रधानमंत्री कार्यालय, प्रधानमंत्री के वक्तव्य का खंडन करता है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

 

 

 

दोस्तों, कूटनीति के क्या उद्देश्य होते हैं देश के आर्थिक हितों की रक्षा और देश के सामरिक हितों की रक्षा करना। कूटनीति के परम्परागत माध्यम के अलावा Track 2 एवं Track 3 और भी कई माध्यम मानें जाते हैं। जब party to party अथवा organisation to organisation आदान प्रदान किए जाते हैं तो वह Track 2 एवं Track 3 की श्रेणी में गिना जाएगा।

 

 

 

जब राजनाथ सिंह जी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे तब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रतिनिधि मंडल 30 जनवरी 2007 को उनसे मिलने आया और वक्तव्य में भारतीय जनता पार्टी द्वारा यह कहा गया कि भारतीय जनता पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के ऐतिहासिक संबंध हैं।

 

 

 

17 अक्टूबर 2008 को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के महत्वपूर्ण सदस्य राजनाथ सिंह जी से मिले और फिर से यह दोहराया गया कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के संबधों को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।

 

जनवरी 2009 में आरएसएस एवं भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के आमंत्रण पर पांच दिवसीय यात्रा की। जहां अरूणाचल प्रदेश और तिब्बत पर चर्चा की गई। न तो आरएसएस एक राजनीतिक दल है और न भारतीय जनता पार्टी सत्ता में थी, लेकिन चीन जाकर, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ बैठकर अरूणाचल प्रदेश और तिब्बत जैसे महत्वूपर्ण विषयों पर चर्चा की जा रही थी।

 

 

 

19 जनवरी 2011 को भारतीय जनता पार्टी के उस वक्त के अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी भाजपा के एक प्रतिनिधि मंडल को चीन की पांच दिवसीय यात्रा पर ले गए, भाजपा और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संबंधों को और मजबूती देने के उद्देश्य से।

 

 

 

मई 2014 में भाजपा की सरकार बनी और नवम्बर 2014 में भाजपा के 13सांसद व विधायक एक सप्ताह की यात्रा पर चीन गए। यात्रा का उद्देश्य था दोनों सतारूढ़ दलों को मजबूती देना। यह प्रतिनिधिमंडल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के स्कूल जिसको ’द पार्टी स्कूल’ कहा जाता है वहां पार्टी को किस तरह चलाया जाता है वह सीखने गए।

 

 

 

नरेन्द्र मोदी जी के चीन से संबंध कोई आज के तो हैं नहीं जब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस वक्त की परिस्थितियों में विश्व के अनेक देश मोदी जी के संपर्क में नहीं आना चाहते थे। 2 ही देश थे जिन्होंने मोदी जी से संबंध बनाए और रखे, चीन उनमें से प्रमुख था बतौर मुख्यमंत्री मोदी जी ने 4 बार चीन की यात्रा की और अनेक बार चीन के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन लोगों की गुजरात यात्रा हुई। Vibrant Gujarat में चीनी कंपनियों का एक अलग ही महत्व दिखता था। जब मई 2014 में मोदी जी प्रधानमंत्री बनें तब ’ग्लोबल टाइम्स’ जो चीन की सतारूढ़ पार्टी का मुखपत्र माना जाता है ने लिखा चीन मोदी जी एवं भारतीय जनता पार्टी के साथ काम करने में बहुत सहज महसूस करता है। ’ग्लोबल टाइम्स’ लिखता है कि मोदी जी का काम करने का तरीका एवं सोच चीन के बहुत नजदीक है। ’ग्लोबल टाइम्स’ आगे लिखता है  “As a right-winger in Indian politics, Modi is more likely to become India's "Nixon" who will further propel the China-India relationship”

 

 

 

2014 के बाद का इतिहास भी सबके सामने है। मोदी जी बतौर प्रधानमंत्री 5 बार चीन गए और 3 बार  चीन के राष्ट्रपति को भारत आमंत्रित किया। 2014 में अहमदाबाद, 2016 में गोवा और 2019 में महाबलिपुरम में।

 

 

 

हम सब ने देखा कि एक तरफ मोदी जी और चीन के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जी साबरमती के किनारे झुला झुलते हुए फोटो खिंचवा रहे थे और वहीं दूसरी तरफ चीन के सैनिक लद्दाख के चुमार इलाके में घुसपैठ कर रहे थे। साथियों चुमार पर चीन सशर्त पीछे हटा भारत के तिबले में जो Observation Hut थी उसको भी हटाना पड़ा।

 

 

 

2017 में जब डोकलाम हुआ 73 दिनों के पश्चात दोनों सेनाएं पीछे हटी और उसके बाद लगातार खबरें आ रही हैं कि डोकलाम में चीन ने फिर से जोर शोर से निमार्ण गतिविधियां शुरू कर दी हैं।

 

 

 

दिसंबर 2017 में जब गुजरात चुनाव हो रहा था तब चीन सरकार का मुखपत्र ’ग्लोबल टाइम्स’ लिखता है ’’चीनी कंपनियां चाहती हैं कि गुजरात में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही जीत हो’’ । ग्लोबल टाइम्स आगे लिखता है कि कई चीनी कंपनियों को विश्वास है कि भारत एक नए और बडे बाजार के रूप में तैयार हो रहा है। इसके लिए मोदी सरकार जो आर्थिक फैसले ले रही है वह ’’चीनी कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं’’

 

 

 

आज जब चीन की सेना ने भारत के लद्दाख में गलवान घाटी, Hot springs एवं Pangong झील वाले इलाकों में घुसपैठ की है। तमाम सेना मामलों के जानकार यह बता रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी कि लद्दाख की सभासद Urgain बता रही हैं कि चीन लद्दाख के गलवान घाटी इलाके बहुत आगे तक आ चुका है और सरकार ध्यान नहीं दे रही तो हम तो आपसे नहीं पूछ रहे मोदी जी कि आपके जो चीन से संबंध हैं उस घनिष्टता का क्या राज है और उन संबंधों से भारत को नुकसान क्यों हो रहा है? हम तो आपसे यह पूछ रहे कि पिछले डेढ दशक से राजनाथ सिंह जी हों, नितिन गडकरी जी हों, भारतीय जनता पार्टी के जितने भी अध्यक्ष रहे हों चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी से संबंध बनाते रहे तो उसका देश को क्या लाभ हुआ ? हम यह भी जानना चाहते हैं कि जब कुटनीति के परम्परागत रास्ते खुले हैं तब इंडिया फाउंडेशन की भारत की विदेश नीति में क्या भूमिका है ? भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजित डोभाल के सुपुत्र श्री शौर्य डोभाल इंडिया फाउंडेशन की मार्फत किन-किन देशों में जाते हैं, किन-किन लोगों से मिलते हैं और वहां क्या करते हैं ? जब देश की सीमाएं असुरक्षित हो जाएं, जब देश के दुश्मन घुसपैठ करने लग जाएं तब यह तमाम प्रश्न उठेंगे, आप इन सवालों से बच नहीं सकते। सवाल उठेंगे कि क्यों चीनी सरकार का मुखपत्र पिछले कई सालों से आपके गुणगान करता है, सवाल उठेंगे कि चीन के प्रति आप इतनी नरम क्यों हैं, सवाल उठेंगे कि क्या चीन के साथ आपके इतने अच्छे संबंधों के बावजूद चीन ने ऐसी हिमाकत की या इन संबंधों के कारण यह हिमाकत हुई ?

 

 

 

आप इस देश के रहनुमा हैं, तालियों की आहट और वोटों की चाहत के आगे सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार हो जाते हैं तो जाहिर सी बात है कि इन सवालों का जवाब  आपको ही देना होगा। इस देश के वो सेवानिवृत जनरल, रक्षा विशेषज्ञ, विपक्षी पार्टियां, मीडिया, देश का एक-एक नागरिक यह चाहता है कि आप सब को साथ लेकर यह रास्ता निकालें की चीन को पीछे कैसे धकेलें और सेना को कैसे मज़बूती दें और आप चाहते हैं कि इन सब को कैसे चुप कराया जाए, सवाल पूछने से कैसे रोका जाए। देश के रहनुमा को यह शोभा नहीं देता। 

 

 

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