(अमीक़ जामेई, प्रवक्ता समाजवादी पार्टी)
एनडीटीवी के रविश कुमार ने अखिलेश यादव के साथ सेल्फी क्या ली हंगामा मच गया. अमूमन वह ऐसा नहीं करते है. क्यों भाई देश के सबसे बड़े सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री, देश के मोस्ट ऑनेस्ट प्रगतिशील व लिबरल नेता, जिसने लोकतंत्र संविधान विरोधी भाजपा को उत्तर प्रदेश में उसके दो दो मुख्मंत्रियो की जड़े जनता के सहयोग से मिलकर गोरखपुर और इलाहाबाद में उखाड़ फेक दी इस लिए वह सेल्फी आपको पसदं नहीं आएगी, आज भी वह जहा जाये पार्टी से हटकर युवाओ बुजुर्गो की आँखों में उनके लिए प्यार विश्वास और चमक दिखती है, कोई एक बार उन से मिल ले उनका हो जाता है, इसलिए आपको उस सेल्फी से शायद दिक्कत है?
जब देश में आज फाशीजम के खतरे दरवाज़े पर दस्तक दे रहे है उस गरम हवा के दौर में जब संस्थानों पर संघ का कब्जा बढ़ रहा है उस दौर में जब कैराना और नूरपुर में भाजपा की नींदे हराम कर अखिलेश जी ने भाजपा को, नफरत को, द्वेष को, घुटन के माहौल में ताज़ी हवा का झोंखा भरा, दो सीटो पर भाजपा को पटखनी दी, इसलिए शायद आपको सेल्फी अच्छी नहीं लग रही ?
क्या आपको इसलिए वह पसंद नहीं कि जेएनयू के छात्र नजीब के लिए उन्होंने अपने सांसद धर्म्नेद यादव और जावेद अली खान के ज़रिए संसद और दिल्ली के राज्यपाल तक खोज के लिए पूरा प्रयास किये? क्या इसलिए वोह सेल्फी नहीं पसंद आ रही है कि उन्होंने फूलन देवी के समाज से गोरखपुर में मुख्मंत्री की ज़मीन उखाड़ फूलन के सामाज से समाजवादी सांसद दिया? क्या वोह तस्वीर इसलिए पसंद नहीं आ रही कि संसद में अखिलेश जी के निर्देश पर सांसद धर्मेन्द्र यादव जी द्वारा मंडल कमीशन पर आगे की दिशा तय करने में पार्टी ने नीतिया प्रस्तुत कर एतिहासिक रणनीति पेश की?
क्या इसलिए पसदं नहीं कि अनगिनत लोगो के कहने पर नूरपुर कैराना में मुस्लिम कैंडिडेट न दिया जाये जब धुरुवीकरण का डर दिखाया गया उसके बावजूद उन्होंने प्रथम मुस्लिम महिला सांसद और एक मुस्लिम विधायक जिताकर सदन में भेजा, ऐसा क्यों है कि उनके लाख प्रगतिशील धारा को अपनाते हुए, जाति को तोड़ने के सफल प्रयत्न के बाद भी, भाजपा आरएसएस और घोर जातिवादी आरएसएस ने उनका शुद्धिकरण कर दुनिया में अपमानित करती है? जबकि पार्टी में सगठन में उन्होंने जाति देखकर नेत्रित्व में कोई भेदभाव नहीं किया तो ऐसा क्या है कि आपको उनकी तस्वीर आरएसएस की तरह पसंद नहीं है?
क्या यह आपका द्वेष, पिछडो के प्रति नफरत तो नहीं है जैसे आप उन्हें लालू जी की तरह "चाराचोर" से "टोटीचोर" बनाते है, दरअसल आप देश की राजनीति को सेट करने में दलित पिछडो अल्पसंख्यको को देखना पसदं नहीं करते, दरअसल आपको यह पसदं नहीं कि कैसे मुलायम सिंह यादव जी और लालू प्रसाद यादव जी और काशीराम का 85% समाज चपरासी से कलेक्टर या कप्तान बन गया.
अखिलेश जी से आप के नफ़रत के कारण हम समझना शुरु कर दिए है क्यूंकि वह नए सिरे से जाती की जनगणना चाहते है, वोह देश के संसाधन में आबादी के आधार पर भागीदारी के पक्ष में खड़े है, आपको यह निखरती तस्वीर, सामाजिक न्याय की तेज़ जलती मशाल, और भारत के एक निष्पक्ष पत्रकार द्वारा जो प्रतिरोध की आवाज़ बने हुए है जिनसे सत्ता को दिक्कत है, उन्होंने सेल्फी ली, हां हमें पता है, यह तस्वीर आपको क्यूँ नहीं पसंद है.
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