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“फिर इन शाहीं बच्चों को बालो पर दे”

आखि़र इसका ज़िम्मेदार कौन है? क्या हमारी मज़हबी, सियसी और समाजी लीडरशिप की यह ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह नौजवानों के लिए प्रोग्राम बनाए।

By: वतन समाचार डेस्क

कलीमुल हफीज़, कंवीनर, इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स फोरम, जामिया नगर, नई दिल्ली-25

 नौजवान किसी भी क़ौम की बड़ी धरोहर हैं। हर क़ौम अपने जवानों पर गर्व करती है। नौजवान तूफ़ान की दिशा मोड़ सकते हैं। पहाड़ों का सीना चीर कर रास्ते बना सकते हैं।आसमानों पर लंगर डाल सकते हैं। यह उम्र संकल्प, धैर्य, निश्चय और कुछ कर दिखाने के जज़्बे से भरपूर होती है। नौजवान औलाद अपने माँ-बाप और बुजु़र्गों का सर ऊँचा रखती है; ख़ानदान, क़ौम और मुल्क का नाम रोशन करती है। लेकिन यह सब उसी समय होता है जब नौजवान गौरान्वित कार्य करते हैं। अगर दुर्भाग्य से कोई नौजवान भ्रमित हो जाए तो वह अपने घर, समाज, क़ौम और मुल्क के लिए घातक होता है।

दुर्भाग्य से आज मुस्लिम मिल्लत की स्थिति इस पहलू से बहुत चिंताजनक है। क़ौम की इस विराट धरोहर को निखारने, संवारने, बचाने और काम में लाने की कोई योजना हमारे पास नहीं है। नौजवानों को रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं, इसलिए वह जिधर चाहते हैं, चल पड़ते हैं।

हम अपने नौजवानों की बुराइयां गिनते हैं, उनकी चर्चा करते हैं, उन पर अफ़सोस करते हैं, उनसे नफ़रत करते हैं, उन पर लानत करते हैं लेकिन हम कभी इस पर ग़ौर नहीं करते कि नौजवानों को इस्तेमाल किस तरह किया जाए, कोई उठता है और उनको अपनी सियासी जमात के जलसे जुलूस में ले जा कर नारे लगवाता है, कोई नेक बनाने के नाम पर हाथ में तसबीह थमा देता है। कोई इनको उर्स और मेले घुमाता है। बेहिचक यह बात कही जा सकती है कि किसी के पास भी नौजवानों के लिए कोई मंसूबा, प्रोग्राम और पॉलिसी नहीं है।

यह नौजवान नस्ल मुस्लिम मुहल्लों में इधर उधर भटकती मिलेगी, ख़ाली मैदानों में गिल्ली डण्डा और क्रिकेट खेलती नज़र आएगी। पान, बीड़ी, गुटका से लेकर चरस, गांजा और शराब पीती पिलाती नज़र आएगी। सट्टा और जुआ खेलेगी, राह चलते लड़कियों को ताकती, झांकती और छेड़ती नज़र आएगी। मोबाइल पर गंदी और फ़िजूल वीडियो में वक़्त बर्बाद करेगी। उसके चेहरे पर मायूसी और थकान दूर से ही देखी जा सकती है। वो अंदेशों में जी रहे हैं, डिप्रेशन का शिकार हैं। उनके सामने न तो रास्ता है ना ही मंज़िल।

आखि़र इसका ज़िम्मेदार कौन है? क्या हमारी मज़हबी, सियसी और समाजी लीडरशिप की यह ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह नौजवानों के लिए प्रोग्राम बनाए। तालीम और कैरियर में उनकी रहनुमाई करे, बेरोज़गार नौजवानों के लिए प्लानिंग करे, उनके मसले को हल करने की कार्यविधि बनाए ताकि उनके चेहरों पर लगातार छायी मायूसी के बादल छंट जाएं, उनके संकल्प, हौसले को बढ़ावा मिले, उनका भविष्य उज्जवल हो। क्योंकि हक़ीक़त यह है कि उनके भविष्य से ही क़ौम और मुल्क का भविष्य जुड़ा हुआ है। किसी भी समाज में नौजवानों की संख्या बच्चों और बूढ़ों से ज़्यादा होती है। 20 साल की उम्र से लेकर 40 साल की उम्र तक के 20 साल ही किसी व्यक्ति की ज़िदगी की दिशा तय करते हैं। यही नवयौवन का ज़माना है, अगर इस उम्र में कोई नौजवान सकारात्मक सोच के साथ मंज़िल की ओर सफ़र शुरू करता है तो मंज़िल उसके क़दम चूमती है। यही दौर अगर लापरवाही में गुज़र जाए तो उसकी ज़िंदगी उसके लिए अज़ाब बन जाती है। बल्कि उसकी कई नस्लें उसको माफ़ नहीं करतीं।

 

मैं जब किसी शहर के हज़ारों नौजवानों को कूड़ा कचरे से भरे मैदानों में बेकार कामों में लगे देखता हूँ तो ख़ून के आंसू रोता हूँ। अगर ये नौजवान सौ रूपये रोज़ भी कमाते तो क़ौम को हज़ारों करोड़ रूपयों का फ़ायदा होता। मेरी गुज़ारिश है समाज-सुधारकों और क़ौम-सुधारकों से कि वह विशेष तौर पर इस ओर ध्यान दें और इनकी तालीम के साथ-साथ इनके लिए काम-धंधे की चिंता करें; ख़ाली पेट ना तो शिक्षा अच्छी लगती है और ना ही भजन। आप तमाम नौजवानों को काम में लगा दीजिए, वह सारे नौजवान स्वयं ही उपयोगी बन जाएंगे।

 

सवाल यह पैदा होता है कि क्या करें? उनको किस प्रकार व्यस्त किया जाए, इसके लिए हमें थोड़ी सी मेहनत करनी होगी, हमें सर्वे करना होगा, बेरोज़गार नौजवानों की लिस्ट बनानी होगी। विशेषतः उन नौजवानों की लिस्ट, जो बेरोज़गार भी हैं और नैतिक स्तर पर बिगाड़ में भी लिप्त हैं। उनकी सलाहियतों को जांचा जाएगा। उसके बाद उनके लिए काम सोचे जाएंगे। याद रखिए, अल्लाह तआला ने कोई चीज़ बेकार पैदा नहीं की है। उसने हर व्यक्ति को काम का बनाया है लेकिन हर व्यक्ति को हर काम का नहीं बनाया। कहीं हालत यह है कि बेरोज़गारों की फ़ौज है और कहीं हालत यह है कि काम के लिए मज़दूर तक नहीं हैं। हमें उनको इज्ज़त देना होगी, उनकों उनके नुक़सान का एहसास दिलाना होगा, उनकी काउंसलिंग करनी होगी, उनकी रहनुमाई करनी होगी। इंसानी ज़िदगी के लिए हर तरह के लोगों की ज़रूरत है। यहाँ मज़दूर, राज मिस्त्री, कारीगर, अध्यापक, क्लर्क, लोहार, बढ़ई, डॉक्टर, कंपाउण्डर, फार्मासिस्ट, ड्राईवर, कंडक्टर, दुकानदार, सेल्समैन, बावर्ची, रिसेप्शनिस्ट, मैनेजर, राइटर, एडिटर, इमाम, मदर्रिस, आर्टिस्ट, जर्नलिस्ट आदि सभी की ज़रूरत है।

 

हमारे नौजवानों को अपने आसपास के कामों पर नज़र रखना चाहिए, खुद को उनमें से किसी के योग्य बनाना चाहिए। यह इंसानी समाज है, यहां एक की ज़रूरत दूसरे से पूरी होती है। इसलिए नौजवानों को भी किसी की ज़रूरत बनना चाहिए। अगर वह किसी की ज़रूरत बनेंगे तो उनको रोज़गार मिलेगा। रोज़गार रहेगा तो खुशहाली आएगी, खुशहाली आएगी तो मुल्क और क़ौम का भविष्य उज्जवल होगा।

 

हमारी लीडरशिप को मुहब्बत के साथ इस मसले पर ग़ौर करना चाहिए। पूरे मुल्क की ना सही लेकिन कम से कम अपनी बस्ती, शहर, अपने मुहल्ले, अपनी ब्रादरी और अपने इलाक़ों की प्लानिंग तो की जा सकती है। अगर समय रहते इस ओर तवज्जो न की गई तो क्राइम और जराइम का ग्राफ़ बढ़ता ही जाएगा। खुशहाल, कामकाजी लोग और मिल्लत के क़ायद यह सोचकर खुश न हों कि वे और उनके बच्चे आर्थिक तौर पर मज़बूत हैं, क्योंकि जब किसी समाज का युवा वर्ग बिगड़ता है तो शरीफ़ों की ज़िन्दगी भी मुश्किल कर देता है। खुदा से दुआ है किः

 

जवानों को मेरी आहे सहर दे, 

फिर इन शाहीं बच्चों को बालो पर दे,

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

 

 

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