नई दिल्ली: मुस्लिम बहुल इलाकों में टीकाकरण अभियानों के बारे में फैली कुछ गलफहमियों को दूर करने और बच्चों के रोग-प्रतिरक्षीकरण (इम्यूनाइजेशन) को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए यूनीसेफ द्वारा उलेमाओं, मदरसों और उर्दू मीडिया की सहायता ली जाएगी। यूनीसेफ और शिखर आर्गनाइजेशन फॉर सोशल डेवलपमेंट नामक संगठन की ओर से आयोजित उर्दू एडिटर्स नेशनल मीट में उपस्थित मुस्लिम बुद्धिजीवियों और यूनीसेफ तथा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने इस पर सहमति जताई कि धार्मिक विद्वानों, संस्थानों और उर्दू मीडिया की सहायता से अल्पसंख्यक समुदाय में बच्चों की रोग-प्रतिरक्षा बढ़ाने के कार्यक्रमों को लेकर जागरकता बढ़ाई जा सकती है।
इस मौके पर यूनीसेफ की संचार अधिकारी सोनिया सरकार ने कहा, हम ग्लोबल इंटरफेथ वर्ल्ड अलायंस (जीवा) के साथ हम काम करते हैं। इसमें सभी समुदायों के नेता हैं। हमने सभी को शामिल किया है। हम इनके साथ स्वच्छता को लेकर काम कर रहे हैं। धार्मिक नेता जब अपने समुदाय में बात रखते हैं तो उनकी सुनी जाती हैं। पोलियो उन्मूलन में धार्मिक नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसे में हम रोग-प्रतिरक्षा अभियान से उनको जोड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक अल्पसंख्यक समुदाय में सिर्फ 35 फीसदी लोगों का रोग-प्रतिरक्षीकरण हुआ है, जबकि देश भर में यह आंकड़ा 65 फीसदी का है। ऐसे में बहुत सारे बच्चों के गंभीर बीमारियों की चपेट में आने का खतरा बना रहता है। ऐसे में अल्पंसख्यक समुदायों के बच्चों के रोग-प्रतिरक्षीकरण को लेकर विशेष प्रयास करने होंगे। कार्यक्रम में इस्लामी विद्वान अख्तरल वासे ने कहा, अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिम समुदाय में टीकाकरण कार्यक्रमों को लेकर कुछ गलतफहमियां देखने को मिलती हैं। इसमें धार्मिक नेता, मदरसे और दूसरे धार्मिक संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अगर टीकाकरण कार्यक्रम में इनकी सहायता ली जाएगी तो निश्चित तौर पर जागरूकता बढ़ेगी।