आज 21 नवंबर है, अर्थात इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय टेलीविजन दिवस के नाम से भी जाना जाता है. आज हमको और आपको यह तय करना होगा कि हम अपने बच्चों को क्या उस टेलीविजन स्क्रीन के सामने रखना चाहते हैं जो देश और दुनिया में नफरत परोसने का काम कर रहा है, जिसके जरिए से समुदायों में नफरत बढ़ रही है, जिसके जरिए से तथाकथित कुछ लोग अपना एजेंडा चला कर के खुद तो पैसे कमा रहे हैं और उनके बच्चे भारत से बाहर दुनिया के अलग-अलग देशों में पढ़ रहे हैं. ऊंची शिक्षा ले रहे हैं.
वहीं वह अपनी जेब भरने के लिए गरीब मजदूर दबे कुचले लोगों के लिए नफरत परोस कर उन्हें नफरत नफरत खेलने पर मजबूर कर रहे हैं. ना उनके लिए बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, और शिक्षा के उच्च इंतजामात तो दूर की बात शिक्षा का स्तर जो है वह पूरा देश जानता है. आज हालत यह है कि अमीर के बच्चे आईपैड के जरिए से ऑनलाइन शिक्षाएं ले रहे हैं, लेकिन गरीब के पास अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुटाना मुश्किल है, तो फिर वह कैसे अपने बच्चों के लिए आईपैड या आईफोन या फिर कोई ऐसा मल्टीमीडिया फोन इंतजाम करे जिसमें ढंग का वाईफाई भी हो या ढंग के नेटवर्क भी आयें.
वैसे भी गांव देहात में रहने वाले लोग तो वाईफाई तो दूर की बात पैसा 4G का देते हैं लेकिन स्पीड 2G की मिलती है. इसलिए आज समूचे गरीब मजदूर और उन पिछड़े अगड़े गरीब लोगों को भी सोचना होगा कि क्या वह अपने बच्चों को उसी टीवी के सामने बैठाना चाहते हैं जो उनको मानसिक रूप से बीमार कर रहा है. जो उनकी प्रगति में रुकावट बन रहा है. जो उनके दिमाग में उच्च शिक्षा का मोह ना पैदा करके समुदायों और जातियों के लिए नफरत पैदा करने का काम कर रहा है.
वह लोग जो स्टूडियोज में बैठ कर के लाखों रुपए का सूट पहन कर के लाखों रुपए महीने की सैलरी लेकर के आपके बच्चों के दिमाग में नफरत डाल रहे हैं. आज जरूर सोचियेगा कि आपको क्या करना है? क्या आप इसी तरह से अपने बच्चों को उनके हाथों का खिलौना बनाए रखना चाहते हैं या फिर अपनी दुनिया आप पैदा करके नफरत के इस माहौल में भी अपने बच्चों को ऐसे नफरती टीवी से हटा करके उस ओर ले जाना चाहते हैं जहां उनका भविष्य उज्जवल हो.
क्योंकि अगर अभी आपने ध्यान नहीं दिया तो बहुत देर हो जाएगी. फिर वहां से पीछे लौटना आपके लिए असंभव ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा. आप चाह करके भी पीछे नहीं लौट पाएंगे. इसलिए आज आप यह तय करें कि आप अपने बच्चों के लिए कैसे टीवी चैनल या कैसे टीवी उनके लिए परोसना चाहते हैं.
अगर नफरत की अहमियत होती तो गांधी जी हम सबको अहिंसा का ज्ञान ना देते और अगर नफरत के माहौल में नफरती टीवी चैनलों का टोल बनने की अहमियत होती तो स्वामी विवेकानंद रोटी पर बल ना देते और वह यह ना कहते कि हमारे लिए रोटी इंपॉर्टेंट है और रोटी के लिए हम सबको सोचना होगा.
इसलिए आज हमें यह तय करना है कि हमें ऐसा भारत बनाना है जिसमें अहिंसा का बोलबाला हो और सबके लिए रोटी हो या हमें ऐसा भारत बनाना है जिसमें हिंसा का बोलबाला हो और रोटी सिर्फ उन लोगों के लिए हो जो स्टूडियोज में बैठ कर के हमारे और आपके लिए नफरत परोसते हैं.
खुद तो लाखों रुपए का सूट पहनते हैं. लाखों रुपए सैलरी लेते हैं और आपको बेयारो मददगार सड़क पर छोड़ देते हैं. ना आप के मुद्दे उठाते हैं, ना उनको आपसे कोई सरोकार होता है.
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