नई दिल्ली, 14 फरवरी 2019। वीरवार को एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्वी दिल्ली की लोकसभा प्रभारी आतिशी ने कहा कि दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार मामले में आज जो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है वह बड़ा ही निराशा पूर्ण है।
मई 2015 को इस केस की शुरुआत हुई। मई 2015 से लेकर अगस्त 2015 तक यह केस हाई कोर्ट में चला। हाई कोर्ट के बाद जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो पहले ही दिन हमारे वकील ने कहा था क्योंकि यह कॉन्स्टिट्यूशन से जुड़ा मामला है, तो कांस्टीट्यूशनल बेंच के समक्ष इस मामले की सुनवाई होनी चाहिए। उस समय भाजपा की तरफ से उपस्थित वकील ने कहा कि नहीं डिविजनल बेंच के सामने ही इस मामले की सुनवाई होनी चाहिए और 4 महीने तक यह मामला डिविजनल बेंच के द्वारा सुना गया।
यह बड़ा ही हास्यास्पद है कि 4 महीने बाद जब केंद्र सरकार के वकील को आर्ग्युमेंट के लिए कहा गया तो 4 महीने का समय खराब करने के पश्चात उन्होंने इस केस को कांस्टीट्यूशनल बेंच के समक्ष भेजने की सिफारिश रख दी।
तत्पश्चात कांस्टीट्यूशनल बेंच बनाई गई इसको बनाने में 6 महीने का समय लगा। कांस्टीट्यूशनल बेंच के समक्ष यह पूरा मैटर सुना गया और नवंबर 2017 में कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के समक्ष भी सारे आर्ग्युमेंट पूर्ण हुए। लेकिन फिर भी कई महीनों तक इस मसले पर कोई भी जजमेंट नहीं दिया गया।
जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले पर जजमेंट दिया गया परंतु उस जजमेंट में भी कोई संतोषजनक निर्णय नहीं लिया गया। आदेश में कहा गया कि लैंड, लॉ एंड ऑर्डर, और पुलिस सिर्फ तीन रिजर्व सब्जेक्ट हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच के इस आदेश से स्पष्ट होता है कि सर्विसेज रिजर्व सब्जेक्ट नहीं है, जैसा कि एमएचए के 2015 के नोटिफिकेशन में क्लेम किया गया था।
जुलाई 2018 के आदेश के बाद मामले को दोबारा से डिवीजन बेंच के समक्ष भेज दिया गया और नवंबर 2018 तक डिवीजन बेंच के समक्ष मामले की सुनवाई चली। नवंबर 2018 के 3 महीने बाद आज फरवरी 2019 में एक आर्डर आता है जिसमें यह कहा जाता है कि हम लोगों के मत इस मामले पर अलग-अलग हैं तो एक 3 जजों की बेंच को यह मामला ट्रांसफर कर दिया जाए।
आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कई प्रश्न उठाए हैं। इन प्रश्नों का उठना स्वाभाविक है ,क्योंकि अगर सुप्रीम कोर्ट के एक मामले को सुनने में चार चार साल का समय लगाएगा तो इस प्रकार के सवाल उठना लाजमी है। यही कारण है कि आज देश की जनता का, आम आदमी का न्यायिक प्रक्रिया से विश्वास उठता जा रहा है।
दिल्ली की जनता के द्वारा चुनी हुई एक सरकार का अपने अधिकारों को लेकर एक प्रश्न पर दिल्ली के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 3 साल में भी कोई फैसला ना ले पाना न्यायिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह तो लगाता ही है। ऐसा नहीं है कि यह प्रश्न केवल आम आदमी पार्टी ने ही उठाया है। देश का हर आम नागरिक जो किसी केस के सिलसिले में कोर्ट के दरवाजे पर जाता है, कोर्ट के चक्कर लगाते लगाते उसकी जिंदगी बीत जाती है परंतु मामले की सुनवाई चलती रहती है।
आतिशी ने कहा कि भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने आम आदमी पार्टी द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर लगाए गए प्रश्न चिन्ह पर जो आपत्ति जताई है, तो मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि वह किस प्रकार की न्यायिक प्रक्रिया इस देश में चाहते हैं? क्या वह ऐसी न्यायिक प्रक्रिया चाहते हैं जिसमें की किसी एक मामले पर सुनवाई चलती ही रहे और उस पर कोई फैसला ना आए, या फिर दिल्ली सरकार का यह मामला जो बेहद महत्वपूर्ण मामला है, दिल्ली की जनता के जनजीवन से जुड़ा हुआ मामला है, तो उस पर जल्द से जल्द फैसला आए ऐसी न्याय प्रक्रिया चाहते हैं।
संबित पात्रा के प्रश्न का जवाब देते हुए आतिशी ने कहा कि भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा जी को पहले मुख्यमंत्री केजरीवाल की प्रेस वार्ता ठीक से देख लेनी चाहिए। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपनी प्रेस वार्ता में सबसे ज्यादा भरोसा देश की न्यायिक प्रक्रिया पर ही जताया है, जिस पर संबित पात्रा प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने देश की जनता से न्यायिक प्रक्रिया पर विश्वास रखते हुए अपने मतों के अधिकार का उपयोग करने की अपील की है।
देश का कानून संसद में बनाया जाता है, और देश की न्यायिक व्यवस्था उस कानून का पालन करती है। अगर दिल्ली की जनता चाहती है कि उनके अधिकार उन्हें मिले तो दिल्ली की जनता को आम आदमी पार्टी को वोट देना होगा, ताकि आम आदमी पार्टी के सातों सांसद जीत कर संसद में जाएं और उनके हक की आवाज संसद में उठा सकें, अन्यथा दिल्ली की जनता और सरकार दोनों ही इसी प्रकार से सालों साल कोर्ट के चक्कर लगाती रह जाएंगी, परंतु न्याय नहीं मिलेगा।
अंत में संबित पात्रा जी से प्रश्न पूछते हुए अतिथि ने कहा कि अगर वह अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कोर्ट की अवमानना करने का केस फाइल करने जा रहे हैं, तो 4 दिन पहले उन्हीं के पार्टी के बड़े नेता येदुरप्पा जी के फोन स्टिंग को भी सुन लें, जिसमें वह दूसरी पार्टी के विधायकों से भाजपा में शामिल होने की अपील कर रहे हैं, और खुलेआम कह रहे हैं कि कोर्ट को तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह जी मैनेज कर लेंगे।
मुझे लगता है कि देश के न्यायालयों की इससे बड़ी अवमानना आज तक कभी नहीं हुई होगी, जहां एक व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री और देश की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष का नाम लेकर कह रहा है कि वह इस देश के न्यायालयों को अपने इशारों पर चलाते हैं।
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