संसद के दोनों सदनों से नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद से देेश के लगभग सभी शहरों और गांवों में बड़े पैमाने पर जन आंदोलनों और रैलियों का सिलसिला जारी है। यह देश जिन मूल्यों पर बना है, उनके ख़िलाफ लाए गए इस क़ानून के विरोध में लोगों का गुस्सा अचानक फूट पड़ा है।
प्रदर्शनों में भारतीय समाज के सभी वर्गाें के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शनों में छात्र, राजनीतिक पार्टियां, मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं समूह और सामाजिक संगठन सभी ने भाग लिया है। यहां तक कि देश भर में एक ही समय में हुए हज़ारों लोगों के अनेक कार्यक्रमों में कहीं भी लाॅ एण्ड आर्डर की समस्या सामने नहीं आई। अधिकतर राज्यों में क़ानून लागू करने वाले अधिकारी हर तरह से सहयोग करते नज़र आए हैं।
परंतु, बीजेपी शासित राज्यों में पुलिस ने महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गांें सहित लोगों के साथ बर्बर और हिंसक रवैया अपनाया। यहां तक कि ऐसे लोगों की भी बेरहमी से पिटाई की गई जो किसी भी प्रदर्शन में शामिल नहीं थे। उत्तर प्रदेश में पुलिस ने सबसे ज़्यादा मुस्मिल समुदाय के खिलाफ ऐसी बर्बरता दिखाई, जिसकी मिसाल नहीं मिलती। पुलिस अधिकारियों को देखा गया कि वे क़ानून का कोई ख्याल किये बिना, घरों में घुस रहे हैं, संपत्तियों को बर्बाद कर रहे हैं, घर वालों यहां तक कि महिलाओं और बच्चों को पीट रहे हैं, उन्हें गालियां दे रहे हैं और उन्हें इलाका छोड़कर जाने के लिए कह रहे हैं। उन्होंने प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दोड़ाकर पीटा और उन पर गोलियां चलाईं। राज्य के अंदर इन प्रदर्शनों के दौरान मरने वाले 21 में से 18 लोगों की मौत गोली लगने से हुई। हज़ारों बेगुनाह लोगों के साथ कई एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और संगठनों के प्रतिनिधी अभी भी जेलों में क़ैद हैं।
मीडिया से ऐसी ख़बरें भी मिली हैं कि पुलिस की हिरासत में मदरसे के बच्चों पर यौन हमला भी किया गया, इसकी बारीकी से न्यायिक जांच ज़रूर होनी चाहिए। पुलिस की अब तक की कार्यवाही उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए एक भयानक याद बन गई है।
बेगुनाह लोगों के ख़िलाफ अपने अपराध और प्रदर्शन कर रहे लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करने के कारण यूपी पुलिस का चेहरा सबके सामने खुल गया है। अब ये लोग प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले लोगों और समूहों को बदनाम करके उनका हौसला तोड़ना और लोगों के बीच अविश्वास और बिखराव की स्थिति पैदा करना चाहते हैं। यूपी पुलिस के उच्च अधिकारी अब यह दावा कर रहे हैं कि सभी प्रदर्शनों के पीछे पाॅपुलर फ्रंट का हाथ है और कथित रूप से वे राज्य में संगठन को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं। यह पूरी तरह से तथ्यों के ख़िलाफ है।
जो भी प्रदर्शन हुए या हो रहे हैं वो तमाम लोगों का सामूहिक आंदोलन हैं। इनमें किसी एक संगठन, पार्टी या व्यक्ति की लीडरशिप या सरबराही नहीं रही है। यूपी सरकार जो कुछ कर रही है वह राजनीतिक इंतेक़ाम और बदनाम या बर्बाद करने की चाल है।
हम इसको नहीं मानते और हम पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया सहित किसी भी संगठन या व्यक्ति को प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के कारण दबाने और बदनाम करने की अधिकारियों की हर कोशिश की निंदा करते हैं। प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों पर सीधे फायरिंग करके उनकी हत्या से यूपी पुलिस इंकार कर रही है और वह पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया जैसे संगठन और सामाजिक कार्यकर्ताओं का नाम लेकर मीडिया और लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है। हम यूपी सरकार से मांग करते हैं कि वह सभी बेगुनाह गिरफ्तार लोगों को तत्काल रूप से रिहा करे, और पुलिस के अत्याचार पर निष्पक्ष जांच शुरू करे।
साथ ही क़ानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ भी हम अनुकर्णीय कार्यवाही की मांग करते हैं। जहां हम प्रदर्शनों के दौरान घटी हर तरह की अशुभ घटना की निष्पक्ष जांच का स्वागत करते हैं, वहीं हम देश की जनता से जागरूक रहने और संघ बनाने की स्वतंत्रता के हमारे संवैधानिक अधिकार के इंकार के ख़िलाफ आवाज़ उठाने की भी अपील करते हैं।
हस्ताक्षरः
वामन मेश्राम- राष्ट्रीय अध्यक्ष, बामसेफ
चंद्र शेखर आज़ाद- चीफ, भीम आर्मी
जस्टिस बी.जी. कोल्से पाटिल- पूर्व जज, मुंबई हाईकोर्ट
यश्वंत सिंहा- पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री
लालमणी प्रसाद- पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री, यूपी सरकार
निशांत वर्मा- राजनीतिक विश्लेषक
नंदिता नारायण- अध्यक्ष, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट, दिल्ली विश्विद्यालय
भाई तेज सिंह- राष्ट्रीय अध्यक्ष, अंबेडकर समाज पार्टी
अशोक भारती- अध्यक्ष, आॅल इंडिया अंबेडकर महासभा
प्रो. अभा देव हबीब- सचिव, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट, दिल्ली विश्विद्यालय
एडवोकेट भानू प्रताप सिंह- राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय जनहित संघर्ष पार्टी व एच.एस.डी.ओ.
मौलाना सैयद वली रहमानी- महासचिव, आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड
मौलाना खलीलुर्रहमान सज्जाद नोमानी
मौलाना उबैदुल्लाह ख़ान आज़मी- पूर्व सांसद
वजाहत हबीबुल्लाह- पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
एम.के. फैज़ी- राष्ट्रीय सचिव, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया
मुजतबा फारूक़- डायरेक्टर जनसंपर्क व सदस्य केंद्रीय सलाहकार परिषद, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद
डाॅ. एस.क्यू.आर. इलियास- राष्ट्रीय अध्यक्ष, वेलफेयर पार्टी आॅफ इंडिया
सैयद सरवर चिश्ती- गद्दी नशीन ख़ादिम हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती
प्रो. मोहम्मद सुलैमान- इंडियन नेशनल लीग
एडवोकट महमूद प्राचा- अध्यक्ष, एस.ए.एम.एल.ए., क़ानूनी सलाहकार, भीम आर्मी
नवेद हामिद- अध्यक्ष, आल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत
कमाल फारूक़ी- पूर्व अध्यक्ष, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग
एम. मोहम्मद अली जिन्ना- महासचिव, पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया
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