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बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद: जमाअत इस्लामी हिन्द का मत आप भी जानिये

नई दिल्ली, 5 नवंबर। जमाअत चाहती है कि अयोध्या विवाद पर फैसला आने के बाद सरकार इस बात को विश्वसनीय बनाए कि देश में शांति और व्यवस्था बहाल रहे। यह बात जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने जमाअत के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने देश के तमाम नागरिकों से अपील की कि वे प्रशासन के साथ सहयोग करें और उत्तेजना, हिंसा और और आगजनी जैसे भड़काऊ अपीलों से सावधान रहें। इंजीनियर सलीम ने बताया कि हाल ही में जमाअत इस्लामी हिन्द के केंद्रीय सलाहकार परिषद ने देश की सूरतेहाल पर कुछ प्रस्ताव पारित किए हैं। सलाहकार परिषद ने बाबरी मस्जिद-अयोध्या विवाद, देश की आर्थिक व्यवस्था और एन आर सी पर अपनी चिंता व्यक्त किया है।

By: वतन समाचार डेस्क
  • बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद: जमाअत इस्लामी हिन्द का मत आप भी जानिये
  • Babri Masjid Ram Janmabhoomi controversy: You also know the opinion of Jamaat Islami Hind

 

नई दिल्ली, 5 नवंबर। जमाअत चाहती है कि अयोध्या विवाद पर फैसला आने के बाद सरकार इस बात को विश्वसनीय बनाए कि देश में शांति और व्यवस्था बहाल रहे। यह बात जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने जमाअत के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने देश के तमाम नागरिकों से अपील की कि वे प्रशासन के साथ सहयोग करें और उत्तेजना, हिंसा और और आगजनी जैसे भड़काऊ अपीलों से सावधान रहें। इंजीनियर सलीम ने बताया कि हाल ही में जमाअत इस्लामी हिन्द के केंद्रीय सलाहकार परिषद ने देश की सूरतेहाल पर कुछ प्रस्ताव पारित किए हैं। सलाहकार परिषद ने बाबरी मस्जिद-अयोध्या विवाद, देश की आर्थिक व्यवस्था और एन आर सी पर अपनी चिंता व्यक्त किया है।

इंजीनियर मोहम्मद सलीम ने कहा कि यह हमारा एहसास है कि बाबरी मस्जिद मुक़दमा में मुस्लिम पक्षकारों के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में बहुत ही उच्च स्तरीय बहस की और मस्जिद के हक़ में पूरी शक्ति के साथ तथ्य, दलीलें और साक्ष्य पेश किए। यक़ीनन दुनिया यह देखेगी कि इस संवेदनशील और अत्यंत महत्वपूर्ण मामले में फैसले की बुनियाद क्या बनती है। तथ्य एवं साक्ष्य, देश का संविधान और हक़ एवं इंसाफ़ की अपेक्षाएं या केवल दावे। अब यह हकूमत की ज़िम्मेदारी है कि फैसला आने के बाद शांति एवं क़ानून और व्यवस्था को बनाए रखे और विधि के शासन को विश्वसनीय बनाये और इसी तरह देश के नागरिकों की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे देश में शांति व्यवस्था और साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बनाये रखने में सहयोग करे।

देश की दयनीय अर्थव्यवस्था पर अपनी चिंता प्रकट करते हुए उपाध्यक्ष ने कहा कि अर्थ-व्यवस्था से संबंधित सभी कारक गिरावट की ओर संकेत कर रहे हैं और लगभग सभी लोग परेशान हैं। देश का शासक वर्ग बहुत दिनों तक अर्थ-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को स्वीकार करने से बचता रहा और अब, जबकि पानी सर से ऊपर हो चुका है, लगातार इंकार के अपने रवयै को तो सुधार लिया, लेकिन खुल कर बिगड़ी स्थितियों की निशानदेही करने, उनके कारणों पर विचार करने, और उनके अनुसार सुधार करने के लिए तैयार नज़र नहीं आता। शासक वर्ग वैश्विक मंदी के दौर को इसका कारण बताकर अपनी ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा है। अर्थ-व्यवस्था की विकास दर घटती जा रही है। मांग बुरी तरह प्रभावित हुई है, नतीजतन उत्पादन में कमी आयी है, जिसने बेरोज़गारी को बहुत ज़्यादा बढ़ा दिया है। सुस्त अर्थ-व्यवस्था को ठीक करने, और उसमें दुबारा तेज़़ी लाने के लिए जो प्रयास सरकार ने किए हैं, वे कारगर साबित नहीं हुए क्योंकि यह काम बिमारी की सही पहचान किए बिना किया गया है। उन्होंने असम में नेषनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी होने के बाद 19 लाख से अधिक लोगों के सूची से खारिज कर दिए जाने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने इस बात पर भी चिंता प्रकट की कि असम के बाद अब गृह मंत्री ने एनआरसी को देशव्यापी लागू करने का एलान किया है।

इंजीनियर मोहम्मद सलीम ने बताया कि दिल्ली और देश के बड़े शहरों में बढ़ते वायुमंडलीय प्रदूषण पर जमाअत इस्लामी हिन्द गंभीर चिंता प्रकट करती है। तेज़ रफ्तार औद्योगीकरण, असंतुलित विकास और बेक़ाबू गाड़ियों के उत्पादन ने सड़कों पर बेपनाह ट्रेफिक पैदा कर दिए हैं जिससे वायुमंडलीय प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि अब इन शहरों में हवा सांस लेने के क़ाबिल नहीं रही। भूमंडलीकरण, निजीकरण और उदारवाद ने पूरी दुनिया में एक नयी तरह की उपभोगतावादी संस्कृति को जन्म दिया है जो उधार लिए हुए पैसों पर बेपनाह खर्च करने का पक्षधर है। इससे कई देशों की आर्थिक प्राथमिकता पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है और इन देशों में अपेक्षित क़ानूनों और संसाधनों के अभाव से वहां प्रदूषण पर नियंत्रण पाने में असफलता का सामना करना पड़ रहा है। इस्लाम की आर्थिक शिक्षा यह है कि उत्पाद में संतुलन रखा जाए और उपभोक्ता बाज़ार में इतनी मांग न बढ़ाए जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।

 

 

 

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