प्रेस रिलीज़
बाबरी मस्जिद मालिकाना हक के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले को चैलेंज करते हुए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया नॉर्थ ज़ोन के सचिव अनीस अंसारी ने 9 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल किया है। पिटिशन दाखिल करने का फैसला संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद ने 15 व 16 नवंबर को आयोजित अपनी बैठक में लिया।
पिटीशन में ठोस ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों की बुनियाद पर सर्वोच्च न्यायालय से न्याय की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने खुद अपने फैसले में यह कहा है कि बाबरी मस्जिद में दो बार तोड़फोड़ की गई है, पहली बार 1949 में जब मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे मूर्ति रखी गई और दूसरी बार 1992 में जब गुंडों की एक भीड़ ने मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इसके बावजूद अदालत ने इन तथ्यों को अनदेखा करते हुए बाबरी मस्जिद के गुनहगारों को जिन्होंने पहले मस्जिद में हस्तक्षेप किया और फिर उसे गिरा दिया, पूरी ज़मीन देने का फैसला सुना दिया। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह कहा है कि अदालत का फैसला उन बिंदुओं और बातों से टकराता है जिन्हें खुद अदालत ने माना और बयान किया है। अतः इस पर पुनर्विचार और दोबारा गौर किया जाना चाहिए।
अपराधियों को मिली इस राहत से उनके अपराध को चाहे वह मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखने का मामला हो या उसे ध्वस्त करने का, खुली शह दी गई है। हालांकि खुद अदालत ने उसी फैसले में इन तमाम हरकतों को कानून के खिलाफ बताया है।
फैसले से आपराधिक न्यायशास्त्र का यह मौलिक सिद्धांत कमज़ोर पड़ गया है, जिसमें कहा गया है (किसी गुनहगार को कानूनी तौर पर अपने किसी अमल से कोई लाभ नहीं उठाने दिया जाना चाहिए)। यह कानून के दायरे में स्थिरता खोजने के लिए उक्त कृत्यों को मज़बूती देता है।
पिटीशन में यह भी कहा गया है कि फैसले पर पुनर्विचार की याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की जाए, इस फैसले और 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले दोनों पर रोक लगाई जाए और केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई भी कदम उठाने से रोका जाए।
पॉपुलर फ्रंट के कार्यकारी सदस्य एडवोकेट ए. मोहम्मद यूसुफ ने बताया कि ‘‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया अपनी शुरुआत से ही बाबरी मस्जिद को इंसाफ दिलाने के लिए अपनी आवाज़ उठाता रहा है। वर्ष 2011 में पॉपुलर फ्रंट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चैलेंज करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन दुर्भाग्य से उसे यह कहते हुए स्वीकार नहीं किया गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में हम कोई पक्ष नहीं थे। लेकिन हाल ही में सबरीमाला मामले में फैसला आने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने बहुत से श्रद्धालुओं की तरफ से दी गई रिव्यू पिटिशन को स्वीकार किया है, क्योंकि वे पीड़ित पक्ष थे।’’ एड. यूसुफ ने इन्हीं आधारों को सामने रखते हुए यह आशा जताई है कि सुप्रीम कोर्ट बाबरी मस्जिद मामले में भी असली पक्षों के साथ-साथ पीड़ित पक्षों की भी याचिका स्वीकार करेगा।
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