जम्मू कश्मीर राज्य के स्टेटस में बदलाव का केंद्र सरकार का फैसला और जिस तरीके से यह बदलाव लाया गया, वह लोकतंत्र और भारतीय संविधान का उल्लंघन करता है। इन विचारों को पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया के चेयरमैन ई. अबूबकर ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर राज्य को प्राप्त धारा 370 और 35ए को ख़त्म करने का फैसला हमारे देश और जनता के हित में नहीं है।
एनआईए, यूएपीए और आरटीआई आदि जैसे बिल संसद में पास किये गए हालिया कुछ दूसरे कानूनों के साथ, जम्मू कश्मीर को प्राप्त विशेष संवैधानिक दर्जा को ख़त्म करने का यह क़दम लोकतंत्र और नागरिक अधिकार पर मंडलाते काले दिनों का पता दे रहा है। ज्ञात हो कि अब जम्मू कश्मीर और लद्दाख़ दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्य बन गए हैं।
हमारे देश के गणतंत्र बनने के बाद से ही राज्य को धारा 370 और 35ए के द्वारा प्राप्त विशेष संवैधानिक दर्जे को वापस लेना कोई ऐसा मामला नहीं है, जिसे हितधारकों के साथ बात-चीत के बिना किया जा सकता हो। यह एक सोचा समझा फैसला है और यह बडे आश्चर्य की बात है कि बीजेपी सरकार ने इसके बारे में संसदीय छान-बीन और मुनासिब चर्चा का भी ख्याल नहीं किया। सरकार को चाहिए था कि सत्र के शुरू में इस बिल को चर्चा के लिए पेश करती, उसे जनता के सामने लाती और सभी लोगों की बातों को सुनती। लेकिन ऐसा करने के बजाए, लोकतंत्र का थोड़ा भी सम्मान न करते हुए एक पहले से तय ड्रामाई माहौल में राष्ट्रपति फरमान के रूप में इसे जारी कर दिया गया।
बीजेपी अब यह शेखी बघार सकती है कि उन्होंने 2014 और 2019 के अपने चुनावी घोषणापत्र में किये गए वादे को पूरा किया है। लेकिन कश्मीर के हितधारकों को इस प्रक्रिया से अलग रखना और लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पूर्व मुख्यमंत्री को ऐलान से पहले ही नज़रबंद करना राजनीतिक घमंड और इंतेकाम का पता देता है, जो कि देश के इतिहास में कभी नहीं देखा गया है। यह क़दम बीजेपी के गठबंधन के साथियों सहित उन सभी राजनीतिक ताक़तों और नेताओं को धोखा देने जैसा है जो हमेशा भारत सरकार के साथ खड़े रहे। बड़े पैमाने पर सैन्य बलों की तैनाती और राज्य भर में दहशत का माहौल पैदा करने से कश्मीरी जनता देश के बाकी हिस्सों में और अधिक अजनबियत का शिकार हो जाएगी।
सरकार के ऐलान में किया गया यह दावा कि उसे जम्मू कश्मीर सरकार की सहमति के साथ जारी किया गया है, एक मज़ाक के सिवा कुछ नहीं है। अब जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है और इसी उद्देश्य से जान-बूझकर लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव नहीं कराए गए, जो कि उस समय होना था। अगर केंद्र सरकार के द्वारा नियुक्त राज्यपाल की मंजूरी को उस राज्य के संवैधानिक दर्जे को बदलने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी के तौर पर लिया जाता है तो फेड्रलिज़्म की यह क़िस्मत भारत के किसी भी राज्य पर कभी भी आ सकती हैै। यह भी गौरतलब है कि कश्मीर कोई एकमात्र राज्य नहीं है जिसे धारा 370 के तहत विशेष संवैधानिक दर्जा हासिल है। भविष्य में दूसरे राज्यों में भी इस तरह के बदलाव बिना किसी चर्चा, बात-चीत और सहमति की कोशिश के लाए जाएंगे।
ई. अबूबकर ने कहा कि कश्मीर स्ट्रेटजी में आया यह नया मोड़ संघ परिवार के नफरती नज़रिये से प्रभावित साम्प्रदायिक भीड़ को संतुष्ट करने के लिए काफी है। लेकिन कश्मीर में शांति केवल कश्मीरी जनता को भरोसे में लेकर चर्चा के रास्ते से ही लाई जा सकती है। उन्होंने नागरिक समाज से देश के सेक्युलर और लोकतांत्रिक विस्तार की रक्षा की ज़िम्मेदारी निभाने का अनुरोध किया, जो कि शासक दल के घमंड और अधिकतर विपक्षी दलों की मौकापरस्ती के कारण दिन प्रतिदिन सिकुड़ता चला जा रहा है।
ताज़ातरीन ख़बरें पढ़ने के लिए आप वतन समाचार की वेबसाइट पर जा सक हैं :
https://www.watansamachar.com/
उर्दू ख़बरों के लिए वतन समाचार उर्दू पर लॉगिन करें :
http://urdu.watansamachar.com/
हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें :
https://www.youtube.com/c/WatanSamachar
ज़माने के साथ चलिए, अब पाइए लेटेस्ट ख़बरें और वीडियो अपने फ़ोन पर :
आप हमसे सोशल मीडिया पर भी जुड़ सकते हैं- ट्विटर :
https://twitter.com/WatanSamachar?s=20
फ़ेसबुक :
यदि आपको यह रिपोर्ट पसंद आई हो तो आप इसे आगे शेयर करें। हमारी पत्रकारिता को आपके सहयोग की जरूरत है, ताकि हम बिना रुके बिना थके, बिना झुके संवैधानिक मूल्यों को आप तक पहुंचाते रहें।
Support Watan Samachar
100 300 500 2100 Donate now
Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.