गोरखपुर: मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ के लोग पिछले लगभग 4 साल से वेतन न मिलने के कारण भुखमरी के डगर पर आ गए हैं. मदरसा आधुनिकीकरण जिनका 80 फीसद पैसा केंद्र सरकार देती है, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह पैसा पिछले 4 साल से जारी नहीं किया गया है. कोरोना के दौर में आमदनी के दूसरे माध्यम भी बंद होने के कारण मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक काफी परेशान हैं और दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं. मदरसा से जुड़े अध्यापक आसिफ महमूद का 10 साला बेटा बीमारी से जूझ रहा है. बेटे को हर महीने खून चढ़ाया जाता है और उसके इलाज के लिए हर महीने एक बड़ी रकम खर्च होती है.
एक उर्दू अखबार ने दावा किया है कि आसिफ महमूद के मुताबिक आम दिनों में ट्यूशन और कोचिंग से होने वाली आमदनी बेटे के ट्रीटमेंट पर खर्च होती थी. कोरोना वायरस के दौर में लोगों ने ट्यूशन बंद कर दिया है, तो आमदनी के दूसरे माध्यम भी पूरी तरह से बंद हो गए हैं. बेटे के इलाज और घर का खर्च, माता पिता की देखभाल सब हमारे ही ज़िम्मे है.
वही पीपीगंज में स्थित एक मदरसे के अध्यापक syed मेहताब Anwar ने कहा कि मार्च 2017 में आखिरी बार केंद्र सरकार की ओर से पैसा जारी किया गया था. 2017 के बाद से राज्य सरकार के हिस्से के तौर पर ₹3000 महाना मिल रहा है. राज्य सरकार का भी 2 से 3 माह के अंदर मिलता है, जिससे गुज़र बसर नहीं हो रहा है. कोरोना के दौर में दोस्तों रिश्तेदारों से कर्ज लेकर काम चला रहे हैं. इस संदर्भ में डिस्टिक माइनॉरिटी वेलफेयर ऑफिसर आशुतोष कुमार पांडेय कहते हैं कि मदरसा स्कीम के अध्यापकों को राज्य सरकार का हिस्सा जारी किया जा रहा है, लेकिन अप्रैल 2017 से केंद्र सरकार की तरफ से जारी किए जाने वाला 80 फीसद हिस्सा नहीं मिला है.
बकाया मानदेय की अदायगी के लिए आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति ने दिसंबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा था, जिसमें आर्थिक परेशानियों का हवाला देते हुए 52 माह का बकाया जारी करने की दरखास्त की गई थी. मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ के जिला अध्यक्ष मोहम्मद इरफ़ान के मुताबिक अध्यापकों को वक्त पर पैसा ना मिलने से जरूरी खर्चे भी चलाने मुश्किल हो गए हैं. सब काम उधार क़र्ज़ पर है, लेकिन यह भी कब तक?
केंद्र सरकार की एसपीक्यूईएम (स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वालिटी एजुकेशन इन मदरसा) जिसका नाम भी अब बदल दिया गया है यह स्कीम 6746 मदरसों में चलती है. इस स्कीम की शुरुआत 1993 में हुई थी. उसके तहत 30000 शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी. यह शिक्षक मदरसों में साइंस हिंदी अंग्रेजी सोशल साइंस कंप्यूटर के विषयों को पढ़ाते हैं. पहले हर मदरसे में दो टीचर रखे गए थे. जिसे दोबारा बढ़ाकर चार कर दिया गया और इन्हें 5 साल के एग्रीमेंट पर रखा गया.
स्कीम के तहत केंद्र सरकार ग्रेजुएट टीचर को ₹6000 और पोस्ट ग्रेजुएट टीचर को ₹13000 देती है. इसके साथ ही राज्य सरकार ने ग्रेजुएट टीचर को 2000 और पोस्ट ग्रेजुएट टीचर को ₹3000 अलग से देने का बंदोबस्त किया है. इस स्कीम के तहत गोरखपुर जिले के 163 मदरसों में लगभग 489 टीचर हैं. जबकि पूरे उत्तर प्रदेश में एक अंदाजे के मुताबिक 30 हजार से अधिक टीचर पढ़ा रहे हैं.
ज्ञात रहे कि पहले यह स्कीम शिक्षा मंत्रालय द्वारा चलाई जाती थी, लेकिन अब इसे अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधीन कर दिया गया है. अब सवाल यह है कि क्या केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी जानबूझकर मदरसा शिक्षकों के बकाया को अदा नहीं कर रहे हैं या इस में कोई रुकावट है? इस के बारे में मंत्री महोदय को साफ़ करना चाहिए.
जानकारों का मानना है कि अगर इसमें कोई रुकावट है तो केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को तत्काल इसे दूर करना चाहिए और प्रधानमंत्री मोदी के सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के सपने को सही रूप से साकार करना चाहिए.
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