नई दिल्ली। जमाअत इस्लामी हिन्द के मर्कज़ी तालीमी बोर्ड के चेयरमैन नुसरत अली ने एक ऑनलाइन प्रेस कान्फ्रेंस में हकूमत की नई शिक्षा नीति के विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए इसकी प्रशंसा की और अवगुणों की तरफ इशारा करते हुए उन्हें दूर की अपील की और कहा कि जमाअत इस्लामी हिन्द के मर्कज़ी तालीमी बोर्ड ने नई शिक्षा नीति 2020 के अध्ययन के लिए शिक्षाविदों और हितधारकों पर आधारित एक समूह का गठन किया है ताकि नागरिकों के लिए नीति को और अधिक लाभकारी बनाया जाए, वि शेष रूप से समाज के हाषिए वाले तबक़े के लिए। इस समूह द्वारा किए गए अवलोकन और सुझाव इस तरह हैं:
नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 की 34 साल बाद समीक्षा की गयी, इसलिए इसे सार्वजनिक करने से पहले संसद में पेश किया जाना था। लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। यह सराहनीय है कि भारत को Global Knowledge Superpower बनाने के लिए अच्छी शब्दावली और उच्च महत्वाकांक्षाओं के साथ इस नीति को तैयार किया गया। इस शिक्षा नीति में नालंदा, तक्षशिला आदि एवं प्राचीन काल में कृतिमान स्थापित करने वाले विद्वानों का उल्लेख किया गया है, लेकिन मध्यकालीन भारत में किए गए महत्वपूर्ण योगदानों को नज़रअंदाज़ किया गया है।
मदरसों का शिक्षा और स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका थी। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सर सैयद अहमद खां, रविंद्रनाथ टैगोर, डॉ ज़ाकिर हुसैन, सावित्रीबाई फूले, ज्योतिराव फूले जैसे शिक्षाविदों के नामों का उल्लेख भी होना चाहिए था। अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान से का भारत को Knowledge Superpower बनाने में गहरा प्रभाव पड़ेगा। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारणों से वे शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं।
विशेष शिक्षा ज़ोन बनाने का विचार काफी रचनात्मक है। पुर्ववर्ती सरकारों द्वारा चिह्नित सभी 60 मुस्लिम केंद्रित ज़िलों में यह शिक्षा ज़ोन स्थापित किया जाना चाहिए। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कुल 28 मीलियन एनआरआई में से 8 मीलियन एनआरआई अरबी बोलने वाले खाड़ी देशों में रहते हैं। इन देशों के साथ हमारे ऐतिहासिक और जीवंत संबंध हैं। द्विपक्षीय संबंधों और आर्थिक लाभों को ध्यान में रखते हुए NEP 2020 में अरबी को विदेशी भाषा के रूप में स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। शिक्षा नीति में निहित संवैधानिक मूल्यों जैसे न्याय, समानता और बंधुत्व को बढ़ावा देना चाहिए और भाईचारा, धर्मनिर्पेक्षता आदि को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाना चाहिए। इस महत्वाकांक्षी नीतियों को लागू करने के लिए राष्ट्रीय बजट के उचित आवंटन की ज़रूरत है। यह सकल घरेलू उत्पाद को 6 फीसद होना चाहिए। और यह आवंटन क़ानून द्वारा अनिवार्य होना चाहिए।
FICCI के अनुसार देश में 25 प्रतिशत निजी स्कूल हैं जिसमें 40 फीसद छात्र पढ़ते हैं। इन स्कूलों में बड़ी संख्या में योग्य और प्रशिक्षित शिक्षक नहीं हैं। इसलिए उनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वे इस नीति में प्रस्तावित शिक्षा शास्त्र का उद्यम कर सकते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसे स्कूल प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति करें। यह लक्षित समुदायों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में हमारे राष्ट्रीय संसाधन के इस्तेमाल का लाभ उठाना सुनिष्चित करेगा।
NEP 2020 के अनुसार भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में ई-सामग्री का विकास सभी भाषाओं में होना चाहिए, लेकिन सभी प्रेस वार्ता में यह उल्लेख किया गया कि ई-सामग्री केवल आठ भाषाओं में तैयार की जाएगी, जिसमें उर्दू का उल्लेख नहीं किया गया है। जबकि उर्दू देश में 7वीं सबसे बड़ी बोली जाने वाली भाषा है। यह शिक्षा नीति विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए दरवाज़ा खोलती है। यह कमज़ोर वर्गों के लिए समाना अवसरों को प्रभावित करेगा। इसलिए कमज़ोर वर्गों के लिए 25 फीसद सीट आरक्षित होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह समावेश कोष से इस आरक्षण में सहयोग करे।
शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा का कार्यान्वयन एक सराहनीय कदम है। यह समय की मांग है। 3-18 वर्ष के छात्रों को शामिल करना भी इस नीति का एक अच्छा क़दम है। लेकिन इसे उचित विधि निर्माण द्वारा आरटीई का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। इस विधि निर्माण में मुफ्त एवं अनिवार्य गुणवत्त शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए। समग्र विकास, विषयों के चयन का विकल्प, लचीलेपन और माध्यमिक स्कूलों में पाठ्यक्रम के कठिन विषयों को अलग कर देना इस पॉलिसी की विशेषता है। उच्च शिक्षा में एक्जिट और एंट्री पॉलिसी विकसित की गई है जो छात्र समुदाय के लिए उपयोगी होगा। इसके अतिरिक्त भी नई शिक्षा नीति के विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश डाले गए।
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