सरकार के पास पूरे देश में एनआरसी लागू करने की संसाधन क्षमता नहीं: प्रोफेसर नीरजा
नयी दिल्ली, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी(एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में इन दिनों विवाद और सियासी घमासान चल रहा है। सीएए और एनआरसी पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय(जेएनयू) में ''सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गर्वनेंस'' की प्रोफेसर और पुस्तक ''सिटिजनशिप एंड इट्स डिसकंटेंट्स: ऐन इंडियन हिस्ट्री'' की लेखिका नीरजा गोपाल जयाल से पांच सवाल:
प्रश्न: सीएए को असंवैधानिक बताकर इसका विरोध कर रहे लोगों और सरकार दोनों के पक्ष पर आपकी क्या राय है?
उत्तर: इस बात में पूरा दम है कि यह कानून असंवैधानिक है। आखिर में इसकी वैधानिकता का बारे में न्यायालय तय करेगा। लेकिन मेरा यह मानना है कि यह अनुच्छेद 14 के खिलाफ है। हमारे यहां नागरिकता से जुड़ी संवैधानिक व्यवस्था की मूलभावना में धर्मनिरपेक्षता है। यह उसके खिलाफ है। यही वजह है कि हम इसे असंवैधानिक मानते हैं।
प्रश्न: क्या किसी बड़े लोकतांत्रिक देश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने की ऐसी कोई व्यवस्था है?
उत्तर: मैंने अब तक कभी किसी बड़े लोकतंत्र के बारे में यह नहीं सुना कि वहां धर्म के आधार पर नागरिकता दी गयी हो या फिर सभी नागरिकों से अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा गया हो। 2006 में ब्रिटेन में तो राष्ट्रीय पहचान रजिस्टर से राष्ट्रीय पहचान पत्र को जोड़ने से जुड़े कानूनी प्रवधान का विरोध हुआ और 2011 में राष्ट्रीय पहचान रजिस्टर का डाटा नष्ट किया गया। हां, राजनीतिक शरण की स्थिति में लोग धर्म के आधार पर उत्पीड़न का हवाला देते हैं। यह शरण के लिए होता है। लेकिन जब नागरिकता और राष्ट्रीयता देने की बात आती है तो बड़े लोकतांत्रिक देश धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करते हैं।
प्रश्न: सीएए का विरोध कर रहे लोग इसे ''मुस्लिम विरोधी'' बता रहे हैं और दूसरी तरफ सरकार कई बार कह चुकी कि इससे देश के मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं होगा। इस संदर्भ में आपका क्या कहना है?
उत्तर: फिलहाल तो इससे देश के मुस्लिम नागरिकों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन एनआरसी लागू होने की स्थिति में जो लोग सूची से बाहर रहेंगे उनमें से गैर मुस्लिम स्वतः इस कानून के तहत नागरिक हो जाएंगे। इस संदर्भ में यह कानून भेदभावपूर्ण है।
प्रश्न: आपने असम में एनआरसी की बुनियाद पर पूरे देश में एनआरसी के खर्च का आकलन किया है। आपके मुताबिक पूरे भारत में एनआरसी लागू होने पर कुल कितने का खर्च होगा?
उत्तर: असम में 3.3 करोड़ की आबादी पर एनआरसी में 1600 करोड़ रुपये का खर्च आया और इस काम में करीब 50 हजार लोगों को लगाया गया था। हमारे आकलन के अनुसार पूरे देश के करीब 90 करोड़ मतदाताओं पर एनआरसी का खर्च 4.26 लाख करोड़ रुपये आएगा और इस काम के लिए 1.3 करोड़ से ज्यादा लोगों को तैनात करना पड़ेगा। इसलिए मेरा यह कहना है कि हमारी सरकार के पास संसाधन के संदर्भ में इतनी क्षमता नहीं है कि वह इसे पूरे देश में कर पाए। न तो वितीय संसाधन न ही प्रशासनिक संसाधन है।
प्रश्न: आखिर सीएए और एनआरसी को लेकर चल रहे विवाद का समाधान क्या है?
उत्तर: इस पर कानूनी निर्णय तो न्यायालय को करना है। लेकिन अगर सरकार इस कानून के भेदभावपूर्ण प्रावधान को हटा दे तो रास्ता खुद निकल जायेगा।
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