धार्मिक अफीम से खतरे हो टाल नहीं सकतीं सरकारें
भारत की अजमत और उसका वकार पूरी दुनिया में तस्लीम शुदा है. अगर आज कोई भारत की अजमत को तस्लीम करता है तो कोई तअज्जुब की बात नहीं है. ताअज्जुब और खुशी की बात यह है कि 14 सौ साल पहले हमारे आका (नबीﷺ) ने जो बातें कही थीं उस हवाले से शायरे इस्लाम ने भारत की अज़मत का क़सीदा गाते हुए कहा -"मीर ए अरब को आयी ठंडी हवा जहां से - मेरा चमन वही है, मेरा चमन वही है". इतना अजीम मुल्क जिसकी तरफ पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हों, जिसकी अज़मत की तरफ अल्लाह के महबूब में इशारा किया हो अगर उस पर ख़िज़ाँ के बादल छाएं तो सबसे पहले उन लोगों का बेचैन होना लाजमी है जो आका के मानने वाले हैं. हमारे देश की जो इमेज हमारी सरकारें दुनिया के सामने पेश कर रही हैं वह इंतिहाई तकलीफ देह है. वह खुद को राष्ट्रवादी कहती हैं, भारत को दुनिया का क़ाइद बनाने की बात करती हैं, लेकिन अमल बिल्कुल इसके उलट है.
वह समाज के एक बड़े हिस्से पर इल्जामात की बारिश करती हैं, कहती हैं कि इन के लिए दो ही जगह है, या तो कब्रिस्तान या पाकिस्तान, लेकिन मेरी नजरों में उनका राष्ट्रवाद झूठा है. मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली से बड़े राष्ट्रवादी यह हो ही नहीं सकते. जिन्होंने कहा था "तेरी एकमुश्त ए ख़ाक के बदले- लूँ ना हरगिज़ अगर बहिश्त मिले" उन मुस्लिम बादशाहों से बड़े वतन दोस्त यह नहीं हो सकता जिनके इक़्तेदार में कुल GDP में भारत की हिस्सेदारी 26 फीसद से ज्यादा थी. अगर यह कहा जाए कि यह लोग राष्ट्रवाद के अफीम की आड़ में मुल्क की दौलत को लूट कर ख़ास लोगों के हवाले करना चाहते हैं और मुल्क की आवाम को उस चिड़िया की मानिंद बनाना चाहते हैं जिसके सभी पंख तोड़ कर उसको अपाहिज बना दिया जाए और मालिक के सहारे जीने के लिए मजबूर किया जाये तो यह गलत नहीं होगा. हमारे रहनुमाओं की सूरते हाल भी इससे अलग नहीं है. पहले उन्होंने आवाम को इस मुल्क से डराया जिस का दुनिया के नक्शे पर कोई वजूद ही नहीं है. जो वर्ल्ड बैंक का पूरी तरह मक़रूज़ है. अगर हमारा मीडिय यह प्रचार करेगा कि पाकिस्तान भूखा है पाकिस्तान नंगा है पाकिस्तान में टमाटर हजार रुपए किलो है, ऐसे में अगर हमें दो वक्त की रोटी मिल जाए तो हम तो यह कहेंगे कि हम पाकिस्तान से अच्छे हैं. हमें यह समझना होगा कि पाकिस्तान हमारा बेंच मार्क नहीं है. हमारा मुकाबला चीन अमेरिका और जापान जैसे देशों से है. वह हमारे बेंच मार्क हैं. हमें उन को पछाड़कर सूफी संतों ऋषि-मुनियों और पीरों पैगंबरों के उसूलों पर दुनिया की क़यादत करनी है.
जिस तेजी के साथ हमारे यहां दो भारत बनते जा रहे हैं, मजहबी जुनून की आड़ में वक्ती तौर से उस के ज़हर को कम किया जा सकता है. उस को वक्ती तौर से कुछ देर के लिए सीबीआई ED या कोई D दिखाकर दबाया जा सकता है लेकिन टाला नहीं जा सकता, क्योंकि जब बर्बादी को ढोल नगाड़े के साथ दावत दी जा रही हो तो वह आकर ही रहेगी.
कुदरत भी उन्हीं की हिफाजत करती है जो अपनी हिफाजत आप करना चाहते हैं, जो यमुना नदी में कूदकर खुदकुशी करना चाहते हों उनको बहर हाल किसी भी तरह बचाया नहीं जा सकता. आज जिस तरह से बेरोजगारी बीते 40-45 सालों में सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है उस से आप आंख नहीं मूँद सकते. हर रोज मीडिया में यह खबर आ रही है कि हजारों की तादाद में पीएचडी करने वालों ने डी ग्रुप की मुलाजमत के लिए दरखास्त दी है और सरकार है कि उस नौकरी को भी खत्म करने के दर पर है. मेक इन इंडिया का नारा बहुत अच्छा है. यह नारा अंबानी और अडानी के लिए बेहतर भी है, लेकिन आम आदमी को इससे कोई सरोकार नहीं है. कहने में बहुत अच्छा लगता है कि हम नौकरी देने की जगह नौकरी देने वाले लोग पैदा कर रहे हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई बिल्कुल इस के उलट है. हमें जुमलों से आगे बढ़ना ही होगा. हमसे वादा किया गया था कि काला धन लाएंगे, लाए हैं चीता यही सरकार की विफलता है. चाहिए राशन देंगे भाषण, चाहिए नौकरी देंगे नौटंकी. इसलिए बहुत होशियार रहने की जरूरत है. इसीलिए प्रेमचंद जी को बरसों पहले इस ढोंगी राष्ट्रवाद का एहसास हो गया था और उन्होंने ऐसे राष्ट्रवाद से खबरदार भी किया था. खुद रोटी और मजहब के रिश्ते को स्वामी विवेकानंद जी ने बहुत पहले स्पष्ट कर दिया है. राष्ट्रवाद की आड़ में ऐसा मजहबी अफीम पिलाया गया कि आज ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के 116 मालिक की सूची में हम 101 मकाम पर हैं. हमें उन देशों की सूची में रखा गया है जिनकी सूरते हाल संगीन है. बीते साल 107 ममालिक की फेहरिस्त में हम 94 नंबर पर थे. मतलब साफ़ है कि हर रोज मामला संगीन से संगीन तर होता जा रहा है. सोचिये हम अफगानिस्तान नाइजीरिया और मोज़ाम्बिक जैसे ममालिक की सूची में है, फिर कैसे दुनिया की हम अगुवाई कर सकते हैं. हम से बेहतर पाकिस्तान (92) है जिस से हमें डराया जा रहा है. सोचिये और सोचिये कि हम से अच्छे नेपाल और बांग्ला देश हैं, बाक़ी आप समझ सकते हैं कि मामला कितना गंभीर है.
हमने माज़ी में देखा कि कैसे बच्चे ने भात भात कहते हुए दम तोड़ दिया. ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि मुसलमानों के साथ भेदभाव का असर यह है कि मुसलमानों के मुकाबले में हिन्दू हर माह 7000 ज्यादा कमाते हैं. इसी वजह से मुसलमानों की तादाद जेलों में आबादी से दोगुने से भी ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक covid की बीमारी के दौरान सबसे ज्यादा मुसलमान बेरोजगार हुए. यही सूरत-ए-हाल दलित और आदिवासियों में गैर दलितों और आदिवासियों के मुक़ाबले है. बार-बार हमें यह कहा जा रहा है मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. इससे हिंदुओं को डराया जा रहा है, जबकि हिंदुओं की आबादी 30 करोड़ पचास लाख से बढ़कर आज 112 करोड हो गई है और मुसलमानों की आबादी 4 करोड़ से बढ़कर 19 करोड पहुंची है और भारत की कुल आबादी 140 करोड़ है. अर्जुन मुंडा साहब ने यह बात कही है कि हमें आबादी को एसेट के तौर पर इस्तेमाल करने की जरूरत है. जानकारों का मानना है कि 40 साल बाद हमारी सूरत ऐसी हो सकती है कि हम यूरोप के कुछ देशों की तरह बच्चा पैदा करने के लिए इनाम का ऐलान करें.
साहब ने हमारे हिंदुस्तान को हंगर इंडेक्स में पाकिस्तान से भी खराब बना दिया और अपने मित्र अडानी को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अमीर बना दिया. मित्रों के कर्ज को एनपीए में बदला जा रहा है, किसान के कर्ज को उसकी जमीन बेचकर अदा करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. उनके इरादे इतने खतरनाक हैं कि मुल्क में खुदकुशी 1967 के बाद सबसे ज्यादा है. संतुलन इस हद तक बिगड़ गया है कि देश की 33% संपत्ति एक प्रतिशत लोगों के पास है, जबकि 10% लोगों के पास 60% से अधिक संपत्ति है। नीचे के पचास प्रतिशत लोगों के पास छह प्रतिशत भी संपत्ति नहीं है। इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम सरकार को जगाएं और मजबूर करें कि वह आम आदमी के कल्याण के लिए परियोजनाएं चलाए और देश से गरीबी, बेरोजगारी और भूखमरी को मिटाए, ताकि मुजाहिदीन ए आजादी का सपना साकार हो और यही सच्चा राष्ट्र वाद है.
कालीमुल हफ़ीज़
व्याख्या: यह लेखक के निजी विचार हैं। लेख प्रकाशित हो चुका है। कोई बदलाव नहीं किया गया है। वतन समाचार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। वतन समाचार सत्य या किसी भी प्रकार की किसी भी जानकारी के लिए जिम्मेदार नहीं है और न ही वतन समाचार किसी भी तरह से इसकी पुष्टि करता है।
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