लखनऊ 7 सितंबर 2019। गुजरात पुलिस द्वारा पूर्व सिमी अध्यक्ष शाहिद बदर फलाही के खिलाफ 19 साल पुराने ज़मानती धाराओं वाले मुकदमे में धोखाधड़ी से गैर जमानती वारंट जारी करवाने और कानूनी औपचारिकताओं को पूरा किए बिना गुजरात ले जाने के प्रयासों की रिहाई मंच ने निंदा की।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने शाहिद बदर को पकड़ने की गुजरात पुलिस की कार्रवाई को गुजरात माडल का हिस्सा बताते हुए कहा कि वो उसकी विवादित छवि बनाकर सांप्रदायिक विभाजन की साजिश रच रही है। यह हास्यस्पद तर्क है कि गुजरात पुलिस को इतने सालों में शाहिद बदर का पता नहीं मालूम था। अपने समय के सबसे चर्चित मामलों में से एक सिमी पर प्रतिबंध और शाहिद बदर के चार साल तक कैद के दौरान सैकड़ों मीडिया कवरेज के बावजूद उनका पता न मालूम होना पुलिस विभाग की ख़ुफ़िया कार्य प्रणाली पर सवाल उठाता है। शाहिद बदर अपने गांव में करीब 2007 से और आज़मगढ़ शहर में पिछले पांच साल से अपना क्लीनिक चलाते रहे हैं और मीडिया से लगातार बात करते रहे हैं। इलेक्ट्रानिक तकनीक के इस युग में एक बार गूगल कर लेने से भी शाहिद बदर के बारे में पूरी जानकारी हासिल की जा सकती है। ऐसे में गुजरात पुलिस का यह कहना कि वे लोग तीन बार आज़मगढ़ आए लेकिन शाहिद बदर या उनके गांव के बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं कर पाए, अविश्वसनीय है। वहीं यह भी सवाल उठता है कि गुजरात पुलिस सूबे के प्रशासन को सूचना दिए बिना इस तरह की कार्रवाई कैसे कर रही है।
सिमी को प्रतिबंधित किए जाने से भी पहले 2001 में गुजरात के जनपद कच्छ में भुज पुलिस द्वारा भा०द०वि० की धारा 353 और 147 में प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद बिना कोई सम्मन तामील करवाए 2012 में वहां की स्थानीय कोर्ट से गैर जमानती वारंट हासिल कर लिया गया था। वारंट हासिल करने के करीब सात साल बाद पुलिस शाहिद बदर फलाही को गिरफ्तार कर बिना ट्रांज़िट रिमांड लिए गैर कानूनी तरीके से गुजरात ले जाना चाहती थी। 5 सितंबर 2019 की रात स्थानीय पुलिस की मदद से उन्हें उनके गांव मनचोभा, आज़मगढ़ से किसी ज़रूरी काम से कोतवाली चलने को कहा गया। कोतवाली पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि भुज में दर्ज मुकदमे के सिलसिले में गैर जमानती वारंट जारी हुआ है और उन्हें गुजरात ले जाया जाएगा। गुजरात पुलिस बिना ट्रांज़िट रिमांड लिए गैरकानूनी तरीके से उन्हें ले जाने के फिराक में थी। गिरफ्तारी की यह खबर तेजी से फैली और मीडिया में आ गई। स्थानीय पुलिस ने भी गुजरात पुलिस से अदालत में पेश कर ट्रांज़िट रिमांड लेने की बात कही। अगले दिन 6 सितंबर की सुबह जब उन्हें अदालत में पेश किया गया तो एडवोकेट अब्दुल खालिक, एडवोकेट अरुण सिंह और एडवोकेट रफीक ने ज़मानती धाराओं में कायम मुकदमे में ट्रांज़िट रिमांड दिए जाने का विरोध करते हुए अपना पक्ष रखा। कहा कि बिना सम्मन तामील किए वारंट जारी होना कानून सम्मत नहीं है। इसके अलावा गुजरात पुलिस के पास 2012 में जारी गैर ज़मानती वारंट के अतिरिक्त अन्य प्रांत से गिरफ्तारी के लिए आवश्यक दस्तावेज़ भी नहीं थे।
तथ्यों को देखते हुए सीजेएम आज़मगढ़ आलोक कुमार ने उन्हें एक–एक लाख की दो ज़मानतों पर अंतरिम ज़मानत देते हुए एक महीने के अंदर सक्षम न्यायालय में पेश होने का निर्णय सुनाया। इसके बाद उनकी रिहाई को बाधित करने की नीयत से सरकारी वकील के साथ कुछ अन्य अधिवक्ताओं ने ज़मानत पत्र के प्रमाणित किए जाने से पहले रिहाई देने का विरोध किया। इस बीच गुजरात पुलिस के उच्च अधिकारियों और उत्तर प्रदेश की शासन की तरफ से सीजेएम पर दबाव बनाए जाने की अफवाहें गश्त करती रहीं और शाम को जनपद के उच्च पुलिस अधिकारी दीवानी न्यायालय के भीतर मौजूद देखे गए। करीब पौने सात बजे शाम को सीजेएम ने अपने निर्णय में संशोधन करते हुए एक महीने के बजाए सात दिनों के भीतर शाहिद बदर को सक्षम न्यायालय में हाजिर होने की शर्त पर रिहा कर दिया।
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