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जमीयत उलेमा के दृष्टिकोण से आप की ईद कैसी होनी चाहिए

और यह भी फरमाया कि अगर ईद तक प्रतिबंध न हटाए गए तो जिस तरह अब तक जिन मस्जिदों और दूसरे स्थानों में शर्तों के साथ नमाज़ जुमा अदा की जा रही है इसी तरह ईद की नमाज़ भी अदा की जाएगी। क्योंकि ईद के लिए भी वही शरायत (शर्तें) हैं जो जुमे के लिए हैं। इसलिए पूरी कोशिश की जाए कि शरई शरायत (इस्लामी निर्देश) और सरकार की तरफ से जारी दिशा निर्देशों को ध्यान में रखते हुए ईद की नमाज़ अदा की जाए। और अगर जो लोग किसी कारण से ईद की जमात में कहीं भी भाग न ले सकें तो सिर्फ उनके लिए बेहतर है कि वह चार रकआत "चाश्त" की नफिल नमाज़ तकबीरात जवाइद (अतिरिक्त तकबीरों) के बिना अलग-अलग पढ़ लें। और रमज़ान उल मुबारक और रोज़े की नेमत (अमूल्य उपहार) पर अल्लाह ताला का शुक्र बजा लाएं और बहराल ईद के दिन खुशी को प्रकट करें लेकिन ईद साधारण तरीके (सादगी) से मनाएं और मित्र व सहयोगियों और संबंधियों से मिलने में स्वास्थ्य संबंधी सरकारी दिशा निर्देशों को अवश्य ध्यान में रखें ताकि हर प्रकार की हानि से सुरक्षित रहें। अल्लाह ताला पूरी मानवता के लिए खैर भलाई और राहत के फैसले फरमाए और मौजूदा महामारी को पूरे विश्व से समाप्त कर दे।

By: वतन समाचार डेस्क
  • जमीयत उलेमा के दृष्टिकोण से आप की ईद कैसी होनी चाहिए

 

नई दिल्ली। 12 मई : अमीर उल हिंद हज़रत मौलाना क़ारी सय्यद मोहम्मद उस्मान साहब मंसूरपुरी अध्यक्ष जमीयत उलमा ए हिंद ने सारे मुसलमानों से अपील की है कि वह रमज़ान उल मुबारक के क्षणों को स्वर्णिम अवसर समझें, विशेषकर आखिरी अशरे (अंतिम दस दिन) में इबादत वह अच्छे व्यवहार - कार्यों को करते रहें। इसलिए कि सहीह हदीस में है कि नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम रमज़ान उल मुबारक के आखिरी दस दिनों में जिस क़दर इबादत में मेहनत फरमाते थे उतना दूसरे दिनों में नहीं फरमाते थे और उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा (सिद्दीक़ा रज़ि अल्लाह अनहा) कहती हैं कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम रमज़ान के आखिरी अशरे में रात भर इबादत में लगे रहते थे। घर वालों को भी इबादत के लिए जगाते थे और कमर कस लिया करते थे। (मुस्लिम शरीफ )

इसके अलावा नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने आखिरी अशरे की पवित्र रातों में शबे कद्र की तलाश का भी आदेश दिया है। शबे कदर वह अमूल्य रात है जिस में इबादत का सवाब (पुण्य) एक हज़ार महीने (लगभग 83 साल) की इबादत से भी बढ़कर है। इसी उद्देश्य से आपने आखिरी अशरे के एतकाफ (एकांतवास) का एहतमाम फरमाया। इसलिए इस अवसर को बिल्कुल नष्ट न करें बल्कि अपने घरों में रहते हुए इन रातों में व्यक्तिगत(निजी) आमाल में संलग्न रहें। और सावधानी तथा सरकारी दिशा निर्देशों का संपूर्ण रूप से पालन करें और देश व मानवता की भलाई के लिए दुआ करते रहें। हज़रत मौलाना ने क्षमता वाले लोगों को ईद से पहले अपनी तरफ से और अपने अधीनस्तों (मातहतों) की तरफ से सदक़ा फितर की अदायगी को भी कहा.

और यह भी फरमाया कि अगर ईद तक प्रतिबंध न हटाए गए तो जिस तरह अब तक जिन मस्जिदों और दूसरे स्थानों में शर्तों के साथ नमाज़ जुमा अदा की जा रही है इसी तरह ईद की नमाज़ भी अदा की जाएगी। क्योंकि ईद के लिए भी वही शरायत (शर्तें) हैं जो जुमे के लिए हैं। इसलिए पूरी कोशिश की जाए कि शरई शरायत (इस्लामी निर्देश) और सरकार की तरफ से जारी दिशा निर्देशों को ध्यान में रखते हुए ईद की नमाज़ अदा की जाए। और अगर जो लोग किसी कारण से ईद की जमात में कहीं भी भाग न ले सकें तो सिर्फ उनके लिए बेहतर है कि वह चार रकआत "चाश्त" की नफिल नमाज़ तकबीरात जवाइद (अतिरिक्त तकबीरों) के बिना अलग-अलग पढ़ लें। और रमज़ान उल मुबारक और रोज़े की नेमत (अमूल्य उपहार) पर अल्लाह ताला का शुक्र बजा लाएं और बहराल ईद के दिन खुशी को प्रकट करें लेकिन ईद साधारण तरीके (सादगी) से मनाएं और मित्र व सहयोगियों और संबंधियों से मिलने में स्वास्थ्य संबंधी सरकारी दिशा निर्देशों को अवश्य ध्यान में रखें ताकि हर प्रकार की हानि से सुरक्षित रहें। अल्लाह ताला पूरी मानवता के लिए खैर भलाई और राहत के फैसले फरमाए और मौजूदा महामारी को पूरे विश्व से समाप्त कर दे।

 

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