लखनऊ/आज़मगढ़ 1 अगस्त 2019। रिहाई मंच ने उन्नाव की बलात्कार पीड़िता पर हुए जानलेवा हमले पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चुप्पी को आपराधिक करार देते हुए पूरे मामले को शासन-प्रशासन की मिलीभगत का नतीजा बताया। मंच ने चंदौली में मुस्लिम युवक को जिन्दा जला देने की घटना और इलाज में लापरवाही पर कहा कि सूबे के मुखिया योगी मानते ही नहीं कि सूबे में मॉब लिंचिंग हुई है तो ऐसे में पुलिस क्यों मानेगी। सवाल किया कि क्या इसलिए किसी का इलाज सही से नहीं होगा क्योंकि उसने मॉब लिंचिंग का आरोप लगाया।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि चंदौली के पीड़ित अब्दुल खालिक को पहले बीएचयू ले जाया गया था लेकिन वहां जगह न होने की बात कहकर डाक्टरों ने उसे मंडलीय अस्पताल कबीर चौरा भेज उसको मौत के मुंह में धकेल दिया। मोदी दावा करते हैं कि बीएचयू में एम्स के बराबर सुविधाएं हैं लेकिन इस मामले से साफ़ हो गया कि कम से कम इस तरह के गंभीरतम रोगियों के लिए वहां जगह नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार अपराधों को रोकने में पूरी तरह विफल रही है बल्कि यह कहना ज्यादा सही है कि सरकार में ऐसी वीभत्स घटनाओं को रोकने की इच्छा गायब नजर आती है।
मंच अध्यक्ष ने यूपी पुलिस द्वारा मॉब लिंचिंग को अनावश्यक महत्व देने वाले बयान को गैर ज़िम्मेदाराना और अपराधियों का हौसला बढ़ाने वाला बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि प्रदेश में बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं के बीच यह कहना कि ‘सभी व्यक्तियों, समुदायों और धर्मों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए और यह कि गाय भी महत्वपूर्ण है’ परोक्ष रूप से मॉब लिंचिंग की घटनाओं को जायज ठहराने जैसा है। उन्होंने कहा कि योगी के बयान के बाद अमेठी और चंदौली में हुई लिंचिंग की घटनाओं से तय हो गया कि यह अपराधियों के राजनीतिक संरक्षण का नतीजा है। उन्होंने कहा कि खालिक को पहले मारा पीटा गया और उसके बाद जय श्रीराम न बोलने पर उसे बांध कर ज़िंदा जलाने का प्रयास किया गया। यह अस्पताल में दिए गए उसके बयान से स्वतः स्पष्ट है। लेकिन पुलिस अधीक्षक चंदौली इस घटना में लिंचिंग नहीं देखते। इस बीच खबर है कि खालिक के माता-पिता पर मुंह बंद रखने का भारी दबाव है और शासन–प्रशासन यह साबित करने का प्रयास कर रहा है कि घटना मॉब लिंचिंग नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस तरह की घटनाओं को रोक पाने में बुरी तरह विफल पुलिस प्रशासन को ऐसी घटनाओं से नहीं बल्कि उसको लिंचिंग नाम दिए जाने पर दिक्कत है।
आजमगढ़ के सालिम दाऊदी और अवधेश यादव ने कहा कि सड़क दुर्घटना में उन्नाव रेप पीड़िता की चाची और चाची की बहन की मौत और खुद पीड़िता और अधिवक्ता के गंभीर रूप से घायल होने की घटना स्वभाविक नहीं है। उन्होंने कहा कि गलत दिशा से तेज़ रफ्तार से आ रहे जिस ट्रक ने कार को सामने से टक्कर मारी है उसके नम्बर प्लेट पर कालिख पुती होना और पीड़िता के गार्डों का उसके साथ न होना संयोग नहीं हो सकता। इस मामले में जेल में बंद आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर पर पुलिस की मिलीभगत से पीड़िता के पिता की हत्या कराए जाने का भी आरोप है। पीड़िता को इंसाफ पाने के लिए सालों तक भटकना पड़ा, उसके पिता की हत्या हुई और अब संदिग्ध सड़क दुर्घटना में पीड़िता की हत्या का प्रयास किया गया। विधायक सेंगर को बचाने के लिए सत्ताधारी दल के नेता सड़कों पर भी उतर चुके हैं। इसलिए न्यायहित में आवश्यक हो जाता है कि पीड़िता का मुकदमा किसी सुरक्षित जगह स्थानांतरित किया जाए।
शाह आलम शेरवानी ने कहा कि योगी आदित्यनाथ का ख़ुद अपनी पीठ ठोंकता बयान है कि अपराधी या तो प्रदेश छोड़कर भाग गए हैं या जेल में हैं या उनका राम नाम सत्य किया जा चुका है। ऐसे में योगी को यह भी बताना चाहिए कि भारतीय सेना के रिटायर्ड कैप्टन की अमेठी में घर में घुसकर आखिर कैसे हत्या हो जाती है। हमले में उनकी पत्नी बुरी तरह से घायल हैं। यह दुखद और शर्मनाक है कि पूर्व सैनिक और उनकी पत्नी की पिटाई होती रही लेकिन आसपास के लोग उन्हें बचाने की हिम्मत नहीं कर सके। इससे संदेह होता है कि घटना को अंजाम देनेवाले या उनको संचालित करनेवाले रसूखदार लोग थे जिनसे कोई दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहता था।
द्वारा-
रॉबिन वर्मा
रिहाई मंच
7905888599
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