नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जरिए देश के मुसलमानों को ईद की बधाई दिए जाने के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस ए मुशावरत के अध्यक्ष नवेद हामिद ने ट्वीट करते हुए लिखा "साभार पीएम @नरेंद्र मोदी ईद की बधाई के लिए जी। लेकिन क्या आप ईमानदारी से मुसलमानों को शुभकामनाएं देने में विश्वास करते हैं? बस समझने की कोशिश कर रहा हूं।"
Thank you PM @narendramodi ji for Eid Greetings. But do you sincerely believe in extending greetings to Muslims? Just trying to understand. https://t.co/Ud4m7BDE5F
— Navaid Hamid نوید حامد (@navaidhamid) August 12, 2019
नावेद हामिद के जरिये किये गए इस ट्वीट को मुशावरत दिल्ली चैप्टर के व्हाट्सएप ग्रुप में साझा किया गया. ग्रुप में साझा किये जाने के डेढ़ घंटे बाद डॉक्टर जफर उल इस्लाम खान ने इस पर रिप्लाई करते हुए लिखा कि "मैं नावेद हामिद के इस ट्वीट को प्रधानमंत्री मोदी के तईं ठीक नहीं समझता हूं. उन्होंने लिखा कि इसमें प्रधानमंत्री मोदी की तोहीन की गई है.
खान ने लिखा कि हम प्रधानमंत्री से सहमत और सहमत दोनों हो सकते हैं, लेकिन वह हमारे प्रधानमंत्री हैं और हम उनके जरिए भेजी गई शुभकामनाओं का स्वागत करते हैं. साथ ही उन्होंने शुभकामनाएं देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का शुक्रिया भी अदा किया".
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर अपने ट्वीट में ऐसा क्या नावेद हामिद ने लिखा या कहा जिसे प्रधानमंत्री मोदी की तौहीन वाली बात ज़फरुल इस्लाम खान कह रहे हैं. क्या प्रधानमंत्री से नावेद हामिद की असहमति को डॉक्टर खान उनकी तौहीन से जोड़ना चाहते हैं?
प्रधानमंत्री का पद पूरे देश के लिए सम्मानित होता है और लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करते हुए उनसे असहमति हो सकती है, यह बात खुद PM मोदी कई बार कह चुके हैं कि लोकतंत्र में वाद-विवाद जरूरी है. कोई जरूरी नहीं है कि आप सभी चीज़ों से सहमत हों. यही लोकतंत्र की खूबी है कि सभी को संविधानिक मूल्यों पर अपनी बात कहने की आज़ादी है. वरिष्ठ नेता लेखक विद्वान और प्रधानमंत्री की हिमायत करने का इल्ज़ान झेल रहे आरिफ मोहम्मद खान का भी यही कहना है कि
"देश सरकार और विपक्ष दोनों के सहारे चलता है. अकेले सरकार देश नहीं चला सकती. विपक्ष का यह काम है कि वह सरकार को tenterhooks पर रखे और उस पर हर तरह के इलज़ाम लगाए. यह जरूरी नहीं होता कि उनमें पूरी तरह सच्चाई हो. लोकतंत्र में विपक्ष की ज़िम्मेदारी है कि सरकार पर गंभीर से गंभीर आरोप लगाए कोई जरूरी नहीं है कि उनमें सौ फीसद सच्चाई हो.
खान लिखते हैं कि इसमें प्रधानमंत्री मोदी की तोहीन की गई है. सवाल यह है कि क्या देश के मुखिया से सवाल पूछना यह उन की तौहीन है या उन से असहमत होना उनकी तौहीन है. इसका जवाब तो डॉक्टर खान को देना चाहिए.
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