नयी दिल्ली: तलाक विधेयक पर संसद में चर्चा के दौरान सपा के कद्दावर नेता और लोकसभा सांसद आज़म खान के शब्दों को लेकर मचे हंगामे के बीच राजनीति की बू आती है. सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि जब आजम खान ने यह स्वीकार कर लिया है कि अगर उन्होंने कोई भी गैर पार्लियामेंट्री शब्द इस्तेमाल किया हो तो वह इस्तीफा देने को तैयार हैं उसके बाद उनके खिलाफ गोदी मीडिया के जरिए अभियान चलाना दर्शाता है कि कहीं न कहीं आजम खां को बदनाम करने की कोशिश हुई है और हो रही है.
लोग लिख रहे हैं कि जब आजम खान ने स्वीकार कर लिया है कि अगर उन्होंने गैर संसदीय शब्द का प्रयोग किया है तो वह इस्तीफा देने को तैयार हैं, और इस्तीफे की बात वह सड़क और संसद दोनों में दोहरा चुके हैं उसके बाद अभियान नहीं चलाया जाना चाहिए और संसद के फैसले का वेट किया जाना चाहिए.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी समेत कई बड़े नेता आज़म खान के पक्ष में कूद पड़े हैं वहीं कई बड़े नेता आजम खां को माफी मांगने और अपने शब्दों को वापस लेने की बात कह रहे हैं.
ज्ञात रहे कि संसद में भी आजम खान ने दो टूक लफ़्ज़ों में कहा था कि अगर उन्होंने कहीं भी संसदीय परंपरा के विपरीत गैर संसदीय शब्दों का इस्तेमाल किया है तो उसके लिए अपना इस्तीफा देने को तैयार हैं.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव संसद में कह चुके हैं कि आजम खान ने जो कुछ कहा है उसमें कोई गैर संसदीय शब्द नहीं है. साथी उनके कहे हुए वाक्य में इस तरह की कोई ऐसी बू नहीं आती, जिस तरह की भाजपा के नेता उस में डालने की कोशिश कर रहे हैं. अखिलेश ने संसद में यह भी कहा कि अगर उन्होंने (आज़म खान) गैर संसदीय शब्दों का प्रयोग किया है तो स्पीकर को हक़ है वह इसे हटा दें और इस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी. अब देखना यह यही कि स्पीकर इस पर क्या फैसला लेते हैं. खुद बीजेपी संसद रमा देवी का यह बयान कि आज़म खान हीरो बनने आया है मैं उसे ज़ीरो बनाउंगी बहुत कुछ दर्शाता है?
बहार हाल देश को स्पीकर के फैसला का वेट करना चाहिए, क्यों कि स्पीकर ही यह फैसला करेंगे कि सच्चाई क्या है? आज़म खान ने किस भाव में बात कही है? उनकी मंशा क्या थी? मीडिया ट्रायल से ऊपर उठ कर संसद के फैसले का देश को वेट करना चाहिए और उस का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि इस सदन में नेहरू से लेकर अटल तक एक से बड़े एक महान नेता रहे हैं.
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