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अकादमिक प्रकाशन और अनुसंधान का प्रभाव बढ़ाने पर जामिया की डा.ज़ाकिर हुसैन लाइब्रेरी

जामिया मिल्लिया इस्लामिया की डा.ज़ाकिर हुसैन सेंट्रल लाइब्रेरी ने “अकादमिक प्रकाशन और अनुसंधान के प्रभाव को बढ़ाने“ विषय पर एक वेबिनार आयोजित किया। इसका मकसद युवा शिक्षकों और शोधकर्ताओं को अनुसंधान नैतिकता, अकादमिक सत्यनिष्ठा, साहित्यिक चोरी की अवधारणा और संपादकों की आवश्यकताओं को समझने के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करना था। 9 जून को आयोजित इस वेबिनार का एक उद्देश्य शोध कार्यों की प्रभावशीलता और गुणवत्ता को बढ़ाना भी था।

By: वतन समाचार डेस्क
  • अकादमिक प्रकाशन और अनुसंधान का प्रभाव बढ़ाने पर जामिया की डा.ज़ाकिर हुसैन लाइब्रेरी ने वेबिनार आयोजित किया

 

जामिया मिल्लिया इस्लामिया की डा.ज़ाकिर हुसैन सेंट्रल लाइब्रेरी ने “अकादमिक प्रकाशन और अनुसंधान के प्रभाव को बढ़ाने“ विषय पर एक वेबिनार आयोजित किया। इसका मकसद युवा शिक्षकों और शोधकर्ताओं को अनुसंधान नैतिकता, अकादमिक सत्यनिष्ठा, साहित्यिक चोरी की अवधारणा और संपादकों की आवश्यकताओं को समझने के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करना था। 9 जून को आयोजित इस वेबिनार का एक उद्देश्य शोध कार्यों की प्रभावशीलता और गुणवत्ता को बढ़ाना भी था।

 

इस वेबिनार में, गूगल मीट प्लेटफ़ॉर्म और यू-ट्यूब चैनल पर  भारत और कई अन्य देशों जैसे अफगानिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, रूस और बांग्लादेश से, लगभग 1500 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इसका उद्घाटन विश्वविद्यालय की कुलपति, प्रो नजमा अख़्तर ने किया।


कुलपति ने अपने संबोधन में कहा कि पत्र-पत्रिकाओं को प्रकाशित करने और किताबें लिखने के दौरान, उच्च मानकों को बनाए रखना और अकादमिक सत्यनिष्ठा के संबंध में यूजीसी के दिशानिर्देशों का पालन करना बहुत ज़रूरी है। यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि साहित्यिक चोरी से बचने के लिए कैसे संदर्भों को ठीक से रखा जाए और ऑनलाइन संदर्भ प्रबंधन टूल का इस्तेमाल किया जाए। उन्होंने आगे कहा कि इन दिनों जब हम एक ज्ञान संचालित समाज में रह रहे हैं, यह न केवल गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज, उद्योग और शिक्षा में भी अपना प्रभाव पैदा करने के लिए ज़रूरी है। हम सभी को रिसर्च गेट, ट्विटर, फेसबुक और लिंक्डइन आदि जैसे शैक्षणिक और सामाजिक मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करके, अपने शोध को सार्वजनिक करने के लिए विभिन्न उपायों का उपयोग करना चाहिए। इससे हमारे शोध कार्यों की पंहुच व्यापक होगी।


प्रो अख्तर ने प्रतिभागियों को सलाह दी कि हमें अपने शोध कार्यों को शोधगंगा जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से सुलभ बनाना चाहिए। जामिया के अधिकांश शोध कार्य जामिया अकादमिक रिपोज़िटरी के ज़रिए सबके लिए उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि जामिया राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी का भी हिस्सा है, जो नियमित रूप से अनुसंधान कार्यों और इसके दुर्लभ संग्रह में योगदान करती है। हमारे कई विभाग और यहां तक कि हमारी लाइब्रेरी एमओओसी विकसित करने में लगी हुई है और ‘स्वयं और स्वयंप्रभा‘ जैसी एमएचआरडी की पहल वाले प्रोग्राम में योगदान करती है।


उन्होंने कहा कि जामिया ने हाल ही में अपनी डिजिटलीकरण इकाई का विस्तार किया है और इससे आने वाले समय में इन-हाउस कंटेंट की प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी, जो कि लॉकडाउन जैसे मौजूदा हालात में ऑनलाइन टीचिंग-लर्निंग के लिए बहुत उपयोगी है।

 

वेबिनार के पहले तकनीकी सत्र का संचालन सिं्प्रगर नेचर की कार्यकारी संपादक सुश्री स्वाति महरियाही ने किया। उन्होंने  उत्कृष्ट शोध पत्र लेखन के विभिन्न पहलुओं को समझाया। उन्होंने प्रकाशन दुनिया की जरूरतों और युवा शोधकर्ताओं को इसके लिए तैयार करने की आवश्यकता के बारे में भी बात की।
वेबिनार के दूसरे तकनीकी सत्र का संचालन टर्निटिन इंडिया एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड से श्री आशिम सचदेवा, श्री वरुण पिपलानी और श्री आनंद बाजपेयी ने किया। इसमें अकादमिक सत्यनिष्ठा, नैतिक आचरण और साहित्यिक चोरी जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई। 


वेबिनार के अंतिम सत्र का संचालन एल्सेवियर के कस्टमर कंस्लटेंट सलाहकार श्री विशाल गुप्ता ने किया। इस सत्र का उद्देश्य शोधकर्ताओं को यह समझने में मदद करना था कि स्कोपस, साइंसडायरेक्ट और मेंडेली जैसे एल्सेवियर उपकरण कैसे उनके अनुसंधान को प्रभावी ढंग से व्यवस्थित करने में मदद कर सकते हैं।


सभी सत्रों के बाद प्रश्न-उत्तर सत्र हुए, जिसमें प्रतिभागियों ने संबंधित वक्ताओं के साथ बातचीत की। इस वेबिनार का कोआर्डिनेशन जामिया यूनिवर्सिटी के लाइब्रेरियन डॉ तारिक अशरफ ने किया।

 

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