राजनीति की बिसात पर साध्वी प्रज्ञा सिंह का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए जब समाजवादी पार्टी ने पूर्व बीएसएफ जवान तेज बहादुर को वाराणसी के मैदान में उतारा तो मोदी जी के पसीने छूट गए। इस महाभारत में तेज बहादुर ने बहुत देर से कदम रखा मगर आते ही सामाजिक संपर्क के माध्यम पर छा गए। देखते देखते वाराणसी के इस निष्कासित उम्मीदवार ने लोकप्रियता में अरविंद केजरीवाल तो दूर नरेंद्र मोदी को भी पीछे छोड़ दिया है। इस मामूली नौजवान की आमद से अचानक मोदी जी का सिंहासन डोले लगा और दबाव बनाकर उसका नामांकन रद्द करा दिया गया। वाराणसी भाजपा के लिए एक अत्यंत सुरक्षित चुनाव क्षेत्र है। 1989 से भाजपा वहां पर 7 बार कामयाब हो चुकी है। इस बीच केवल 2004 को छोड़कर जब कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा को सफलता मिली थी हर बार भाजपा को ही जीत प्राप्त हुई। मिश्रा जी को हराने के लिए 2009 में भाजपा ने अपना कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को मैदान में उतारा और ब्राह्मणों के महासंग्राम में कमल फिर से खिल गया।
मुरली मनोहर जोशी की जीत का श्रेय दरअसल मायावती के सर है इसलिए कि उन्होंने 2009 में वाराणसी से मुख्तार अंसारी को टिकट दे दिया था। अंसारी को हराने के लिए सारे ब्राह्मण जोशी के पीछे इकट्ठे हो गए। इसके नतीजे में मुरली मनोहर जोशी को 2 लाख 3 हजार और मुख्तार अंसारी को 1 लाख 86 हजार वोट मिले। राजेश कुमार मिश्र 66 हजार पर सिमट गए तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी के अजय राय थे जिन्हें 1 लाख 23 हजार वोट मिले। इस बार अपना दल ने विजय कुमार जायसवाल को अपना उम्मीदवार बनाया था और उन्हें भी लगभग 66 हजार वोट मिल गए। 2014 नरेंद्र मोदी ने पहली बार राष्ट्रीय चुनाव लड़ने का साहस किया तो बड़ौदा के साथ वाराणसी से भी पर्चा दाखिल किया। क्योंकि 345 साल बाद भी किसी पिछड़ी जाति के नेता को सत्ता संभालने के लिए ब्राह्मणों का आशीर्वाद इसी तरह अनिवार्य था जैसे शिवाजी को गो ब्राह्मण प्रतिपालक बनने के लिए आवश्यक था। संयोग से शिवाजी के राज्याभिषेक के लिए भी गागा भट्ट को काशी यानी वाराणसी से ही बुलाया गया था।
2014 के उत्तर प्रदेश की तब तो निश्चित रूप से मोदी लहर थी साथ ही वाराणसी एक मजबूत क्षेत्रीय दल अपना दल भी भाजपा का समर्थक बन गया था। बीएसपी में देखा के अपना दल ने विजय प्रकाश जायसवाल का टिकट काट दिया है तो उसने मुख्तार अंसारी का टिकट काटकर विजयप्रकाश पर दांव लगा दिया। उन लोगों की को अपेक्षा रही होगी कि इन प्रत्याशियों के साथ उनके वोटर्स भी आ जाएंगे लेकिन यह भूल गए कि जिन का टिकट काटा जा रहा है उनके वोटर चले भी जाएंगे। इस तरह हिसाब बराबर हो जाएगा। समाजवादी पार्टी ने नकली चाय वाले के सामने असली पान वाले कैलाश चैरसिया को मैदान में उतार दिया, लेकिन उस समय के सुपर स्टार अरविद केजरीवाल ने अपना नामांकन भरके सब उलट पुलट कर दिया।
इस राजनीतिक उथल-पुथल का जमीनी सच्चाई पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। वाराणसी में कुल 10 लाख 31 हजार वोटर्स ने अपने वोट का प्रयोग किया। इसमें से 56 प्रतिशत यानी 5 लाख 81 हजार भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के पक्ष में। अरविंद केजरीवाल ने भी 30 प्रतिखत वोट प्राप्त कियेे। उसके बाद कांग्रेस के अजय राय थे और फिर बी एस पी के जायसवाल थे। समाजवादी पार्टी को जो उस समय राज्य में सत्ता में थी केवल 45,000 वोट पर संतोष करना पड़ा। इन आंकड़ों को इसलिए पेश किया जा रहा है कि यह मालूम हो जाए के वाराणसी के चुनाव में समाजवादी पार्टी की हैसियत क्या है। वह तो कभी दूसरे नंबर पर भी नहीं आ सकी। कुल 8 में से केवल एक बार तीसरे नंबर पर और उसके अलावा हमेशा और भी नीचे ही रही। इस बार बीएसपी के साथ गठबंधन के कारण दोनों के वोट मिला लिए जाएंगे तब भी 1 लाख 6 हजार वोट बनते हैं। लेकिन अंतर यह है कि पहले मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे और इस बार हैं।
इन सच्चाई ओं के चलते मोदी जी में आत्मसम्मान और निडरता होनी चाहिए थी लेकिन आश्चर्य है कि वे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार तेज बहादुर से डर गए और उसका नामांकन रद्द करवा दिया। तेज बहादुर के नामांकन में अगर कोई दोष था तब भी उसे लड़ने दिया जाना चाहिए था, इसलिए कि वह क्या कर लेता। साथ ही उसका वाराणसी की सीमा में रहना कम हानिकारक होता। अब तो अखिलेश इसको राज्य की सारी सीटों पर ले जाएंगे जहां पोलिंग होनी है। एक निष्कासित बी एस एफ जवान से 56 इंच की छाती वाले हिंदू हृदय सम्राट का डर जाना बताता है कि उस कागज के शेर में केवल हवा भरी हुई है। तेज ने अपने साथ होने वाले अन्याय पर चिंता जताते हुए कहा है कि मेरा नामांकन गलत तरीके से रद्द किया गया है। मुझ अब सबूत पेश करने के लिए कहा गया था, हमने सबूत पेश कर दिया। इसके बावजूद मेरा नामांकन रद्द कर दिया गया। तेज बहादुर का कहना है कि चुनाव आयोग ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया है। इसलिए वे इस फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। जनता की अदालत से बड़ा कोई नहीं होता वहां भी अपनी लड़ाई लड़ेंगे।
प्रधानमंत्री पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार का गुस्सा सही है, लेकिन उनसे तो अखिल भारतीय राम राज्य परिषद के श्री भगवानदास वेदांत आचार्य भी नाराज हैं, क्योंकि चुनाव आयोग ने उनका भी नामांकन रद्द कर दिया। तेज बहादुर तो खैर कलयुग का जवान है उसने सोचा चुनाव आयोग के सामने हंगामा करने से ज्यादा उपयोगी यह है कि कैमरे के सामने शोर किया जाए। ताकि दूरदराज तक उसकी आवाज पहुंचे लेकिन राम राज्य परिषद के श्री भगवानदास वेदांत आचार्य अभी सतयुग में जी रहे हैं। इसलिए कलेक्ट्रेट में ही हंगामा शुरू कर दिया। बाद में अखबार के पत्रकारों से बात करते हुए बोले हमारा नामांकन जो रद्द किया जा रहा है वह प्रधानमंत्री मोदी के दबाव में किया जा रहा है। लोकतंत्र की हत्या हुई है। यह बहुत गलत है। रावण राज्य में अगर स्वामी जी यह आरोप लगाते तो चल जाता लेकिन मोदी राज में संघ परिवार ने सोचा भी नहीं होगा कि ऐसा है। वैसे संघ को मालूम होना चाहिए कि मादी है तो कुछ भी मुमकिन है।
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