कांग्रेस ज्वाइन करने पर कन्हैया की आलोचना लेकिन जिग्नेश पर चुप्पी
कुछ लोग कांग्रेस ज्वॉइन करने पर कन्हैया को आम जाऊर बोल रहे हैं। लेकिन, जिग्नेश पर चुप हैं, क्यों? जिग्नेश की भी तो अपनी राजनीति थी, दलित समाज की राजनीति, दबे कुचलों की राजनीति। उन्होंने भी तो कांग्रेस को ज्वॉइन किया है, सिर्फ फॉर्म नहीं भरा है।
कन्हैया को गरियाने और जिग्नेश पर चुप्पी साधना वैसे ही है, जैसे मायावती कह देती हैं कि कांग्रेस और सपा को हराने के लिए भाजपा से भी हाथ मिला सकते हैं। आज़ादी के बाद 7 दशकों में दलितों और पिछड़ों ने जो हासिल किया है, वह कांग्रेस से लड़कर हासिल किया है, सिर्फ हासिल किया, गंवाया कुछ नहीं। कांग्रेस से लड़कर हासिल किया, उसे बचाने के लिए लड़ रहे हैं।
तो ऐसा है कि कन्हैया को गरियाने से बिहार में तेजस्वी की सरकार नहीं बन जाएगी और आपकी दुकानदारी भी नहीं चमकेगी। उसके लिए चाहिए बेहतर माहौल, शांति और सामाजिक सुरक्षा। ताकि एक व्यक्ति अपनी नौकरी और खाने कमाने पर फोकस कर सके। याद रखिए इसी सरकार में लालू यादव को भरे बुढ़ापे में बेल के लिए संघर्ष करना पड़ा और जब तबीयत एकदम खराब हो गई तो जैसे तैसे बेल मिली। कांग्रेस सरकार में सामाजिक और राजनीतिक लोकलज्जा की बिना पर लालू को बेल मिल जाती। क्या-क्या गिनाएं... तो कहने का मतलब है कि आलोचना करिए लेकिन पक्षपाती आलोचना मत करें। अगर थोड़ी सी भी शर्म हो कि आपके पढ़े लिखे को भी लोग आंकते और जांचते हैं तो जिग्नेश की राजनीति पर भी वैसे ही सवाल करिए जैसे कन्हैया पर कर रहे हैं।
क्योंकि क्रांति की ज़रूरत आपको भी उतनी ही है, जितनी कि हमको, कन्हैया को और जिग्नेश को। याद रहे कि अगर कांग्रेस ने जिग्नेश को यूपी में झोंका तो सबसे ज्यादा दर्द किसे होगा? आप समझ ही रहे हैं... क्योंकि जिग्नेश ने कल फिर दोहराया कि पिछले 7 सालों में देश जो झेल रहा है, गुजरात के लोग पिछले दो दशकों से झेल रहे हैं। इसलिए कांग्रेस से लड़ने का मौका फिर मिलेगा... लेकिन ये वक्त नहीं है।
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