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Live: बाबरी मस्जिद शहादत केस, क्या 29 साल बाद अदालत मुजरिमों को ढूंढ पायेगी

By: वतन समाचार डेस्क
आडवाणी जोशी कोर्ट में नहीं रहेंगे मौजूद
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तारीख पर तारीख अब एक और तारीख के बीच अब कोई तारीख नहीं होगी। आज बाबरी मस्जिद शहीद करने वाले आरोपियों की किस्मत का फैसला होगा। आज यह तय होगा कि क्या किसी ने बाबरी मस्जिद गिराई थी? बाबरी मस्जिद गिराने का कोई मुजरिम है या आरोपी सब के सब बरी हो जाएंगे या यह तय हो जाएगा कि बाबरी मस्जिद किसी ने नहीं गिराई बल्कि बाबरी मस्जिद खुद-ब-खुद शहीद हो गई। 

 



लगभग 29 साल के लंबे अगर मगर हां नहीं क्यों कैसे और लेकिन के बीच आज बाबरी मस्जिद शहीद करने वाले आरोपियों की किस्मत तय होगी। बीजेपी के कई नेता बाबरी मस्जिद शहीद करने के आरोपी हैं। जिसमें बीजेपी के चोटी के नेता रहे लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मुरली मनोहर जोशी समेत कई लोगों का नाम शामिल है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर बाबरी मस्जिद की शहादत का मुजरिम कौन था? किसके इशारे पर बाबरी मस्जिद शहीद की गई? 

 



किसने बाबरी मस्जिद शहीद कराई और कानून को ठेंगा दिखाते हुए दिन के उजाले में बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया? ये और इन जैसे अनेकों सवाल हैं जिनका अभी थोड़ी देर के बाद जवाब मिल जाएगा। लोगों को भारतीय न्याय प्रक्रिया पर पूरा विश्वास है। बस थोड़ी देर इंतज़ार कीजिये। याद रहे गोदी मीडिया अब सिर्फ बाबरी लिख रहा है और मस्जिद का शब्द गायब हो गया है। 

 

 

बाबरी मस्जिद शहादत मामले का ट्रायल करने वाले स्पेशल जज एस के यादव पिछले साल 30 सितंबर को ही रिटायर होने वाले थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इनका कार्यकाल फैसला आने तक बढ़ाने के आदेश जारी किए. आदेश के मुताबिक यूपी सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया और उनका कार्यकाल फैसला आने तक बढ़ा दिया है. ट्रायल के दौरान जज ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सुरक्षा मुहैया कराने की मांग भी की. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से सुरक्षा देने के निर्देश दिए हैं. अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाने के मामले में 29 साल बाद फैसला आएगा. यह मुकदमे के निपटारे और फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तय समयसीमा की अंतिम तारीख है. इस लंबे खिचे मुकदमें ने वास्तविक रफ्तार तब पकड़ी जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे निबटाने की समयसीमा तय की.

 



सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 में दो साल के भीतर मुकदमा निपटा कर फैसला सुनाने का आदेश दिया था. इसके बाद तीन बार समय बढ़ाया और अंतिम तिथि 30 सितंबर 2020 तय की थी. मुकदमें पर अगर निगाह डालें तो घटना की पहली FIR नंबर 197  उसी दिन 6 दिसंबर 1992 को श्रीराम जन्मभूमि सदर फैजाबाद पुलिस थाने के थानाध्यक्ष प्रियंबदा नाथ शुक्ल ने दर्ज कराई थी. दूसरी FIR नंबर 198 राम जन्मभूमि पुलिस चौकी के प्रभारी गंगा प्रसाद तिवारी की थी.

 



Ndtv की रिपोर्ट के अनुसार मामले में विभिन्न तारीखों पर कुल 49 प्राथमिकी दर्ज कराई गईं. केस की जांच बाद में सीबीआई को सौंप दी गई. सीबीआई ने जांच करके 4 अक्टूबर 1993 को 40 अभियुक्तों के खिलाफ पहला आरोपपत्र दाखिल किया और 9 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ 10 जनवरी 1996 को एक और आरोपपत्र दाखिल किया. 28 साल में 17 अभियुक्तों की मृत्यु हो गई अब  32 अभियुक्त बचे हैं, जिनका फैसला आना है. 

 



केस के लंबे समय तक लंबित रहने के पीछे भी वही कारण थे जो हर हाईप्रोफाइल केस में होते हैं. अभियुक्तों ने हर स्तर पर निचली अदालत के आदेशों और सरकारी अधिसूचनाओं को उच्च अदालत में चुनौती दी जिसके कारण मुख्य केस की सुनवाई में देरी होती रही.

अभियुक्त मोरेसर सावे ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मामला सीबीआई को सौंपने की अधिसूचना को चुनौती दी थी. कई साल याचिका लंबित रहने के बाद 2001 में हाईकोर्ट का फैसला आया, जिसमें अधिसूचना को सही ठहराया गया. इस बीच अभियुक्तों ने आरोपतय करने से लेकर कई मुद्दों पर हाइकोर्ट के दरवाजे खटखटाए जिससे देरी हुई.


पहले यह मुकदमा दो जगह चल रहा था. भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित आठ अभियुक्तों के खिलाफ रायबरेली की अदालत में और बाकी लोगों के खिलाफ लखनऊ की विशेष अदालत में. रायबरेली में जिन आठ नेताओं का मुकदमा था उनके खिलाफ साजिश के आरोप नहीं थे.


उन पर साजिश में मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और अंत में सुप्रीम कोर्ट के 19 अप्रैल 2017 के आदेश के बाद 30 मई 2017 को अयोध्या की विशेष अदालत ने उन पर भी साजिश के आरोप तय किये और सारे अभियुक्तों पर एक साथ संयुक्त आरोपपत्र के मुताबिक एक जगह लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रायल शुरू हुआ.

 




सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पहले जिस आदेश ने लगभग ठहरी सुनवाई को गति दी थी वह था इलाहाबाद हाईकोर्ट का 8 दिसंबर 2011 का आदेश जिसमें हाईकोर्ट ने रायबरेली के मुकदमें की साप्ताहिक सुनवाई का आदेश दिया था. लेकिन असली रफ्तार सुप्रीम कोर्ट के रोजाना सुनवाई के आदेश से आयी. इसके बावजूद मुकदमा दो साल में नहीं निबटा और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर रहे जज के आग्रह पर तीन बार समय सीमा बढ़ाई. 19 जुलाई 2019 को 9 महीने और 8 मई 2020 को चार महीने बढ़ा कर 31 अगस्त तक का समय दिया और अंत में तीसरी बार 19 अगस्त 2020 को एक महीने का समय और बढ़ाते हुए 30 सितंबर तक फैसला सुनाने की तारीख तय की थी.

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