कांग्रेस पार्टी दिन ब दिन कमज़ोर होती जा रही है. इसे कमज़ोर इस के अपने कर रहे हैं या कोई और इस का जवाब तो खुद कांग्रेस ही देगी लेकिन कांग्रेस नेताओं के मौजूद किरदार को देख कर यह स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस के लोग ही कांग्रेस मुक्त भारत बनाने में जुटे हए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कहने के बाद भी अभी तक किसी राज्ये के कांग्रेस नेता सड़क पर नहीं उतरे हैं, जिस के बाद सोशल मीडिया पर कांग्रेस का मज़ाक़ उड़ाते हुए लोग लिख रहे हैं कि मैडम अभी गर्मी है. सर्दी में हम सड़कों पर होंगे. कुछ लोग तो यह कह रहे हैं कि कांग्रेस नेता चाहते हैं मेहनत गांधी परिवार करे और फल नेता लोग खाएं.
जिन राज्यों में चुना हैं उन राज्यों में भी कांग्रेस नेताओं की खामोशी बताती है कि कांग्रेस के नेता ही कांग्रेस मुक्त भारत करने में लगे हैं. हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र और फिर झारखंड कहीं से भी कोई ऐसी खबर नहीं आ रही है जिससे यह स्पष्ट होगी कि कांग्रेसी जमीन पर एक मजबूत विपक्ष के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार या भाजपा की राज्य सरकारों को चुनौती देने के मूड में है. बड़ी बात यह है कि कांग्रेस के अंदर ही ऐसी लोग हैं कि कांग्रेस को किसी और दूसरे की जरूरत ही नहीं है. खुद कांग्रेस के नेता ही उसे तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
महाराष्ट्र से छन छन कर आ रही खबरों के अनुसार महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता पार्टी को बेचने की पूरी तैयारी कर चुके हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेता समाजवादी के साथ गठबंधन का फाइनल प्लान कर चुके हैं. समाजवादी जिसका महाराष्ट्र में कोई वजूद नहीं है कांग्रेस के कुछ नेता केंद्र के नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अवगत कराने में लगे हुए हैं कि समाजवादी गठबंधन की वजह से मुस्लिम वोट मिल जाएगा, जबकि वह यह नहीं बताते कि समाजवादी का मुंबई में कोई वजूद नहीं हैं और उसे लोकसभा चुनाव में लोग ठुकरा चुके हैं. अभी अबू आसिम आज़मी यह बयान दे चुके हैं कि उन का किसी के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा, जो अब यह कह रहे हैं कि बात चल रही है.
नेताओं का यह भी मानना है कि समाजवादी को साथ लेने का मतलब यह है कि कांग्रेस को मुस्लिम नेताओं की राज्य में जरूरत ही नहीं है. जो नेता पिछले लंबे वर्षों से जमीन पर मेहनत कर रहे हैं अगर उनको उनकी जगह नहीं मिलेगी और उनका सही इस्तेमाल नहीं होगा तो फिर वह भी पार्टी से टूट जाएंगे और पार्टी को भरी नुकसान होगा. उन का कहना है कि जो नेता जमीन पर मेहनत करना चाहते हैं या कर रहे हैं केंद्र या राज्य कांग्रेस के शीर्ष नेता उनको पनपने नहीं चाहते हैं. उन का कहना है कि दिल्ली के 02 और राज्य के 02 कांग्रेस नेताओं को छोड़कर कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो सिस्टम का पार्ट हो. यही हाल दूसरे राज्यों का भी है.
सोशल मीडिया के अनुसार "जिस समाजवादी से UP में गटबंधन नहीं उस से महाराष्ट्र में क्यों? क्या कांग्रेस को महाराष्ट्र में मुस्लिम वोटों के लिये समाजवादी की ज़रूरत है? ये कैसा गटबंधन है कि कांग्रेस अपनी सब + वाली सीटें सपा को दे रही है, और उन से उसे कोई फ़ायदा नहीं हो रहा है, बल्कि ४ विधानसभा में फ़्रेंड्ली फ़ाइट के नाम पर सपा कांग्रेस के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतार रही है. क्या कांग्रेस इतनी मजबूर हो गई है?
मांखुरद विधानसभा में 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 44000+ वोट मिले. भैवंडी विधानसभा 62000+ और यह दोनों सीटें कांग्रेस सपा को दे रही है और उसे क्या मिल रहा है?
कुछ लोग अपने व्यक्तिगत फ़ायदे के लिये पार्टी को बेचने का काम कर रहे हैं. क्या पार्टी लीडरशीप उन से पुछेगी कि इतने घाटे का सौदा क्यों?
मतलब कांग्रेस समाजवादी के सामने उम्मीदवार न दे और वो फ़्रेंड्ली फाइट के नाम पर कांग्रेस के सामने उम्मीदवार दे, वाह!! क्या कांग्रेस इतनी मजबूर है जो इतने घाटे का सौदा करे?"
ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व को इस पूरे मामले पर विचार विमर्श करना चाहिए और कांग्रेस को यह फैसला करना चाहिए कि जब उसका गठबंधन यूपी में समाजवादी से नहीं तो मुंबई में गठबंधन करके वह क्या मैसेज देना चाहती है?क्या सच में कांग्रेस के लोग उसे भारत से मुक्त करना चाहते हैं.
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