नई दिल्ली, 22 अप्रैल, 2021:मौलाना वहीदुद्दीन खान हमारे बीच एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने हमेशा देश के लोगों के बीच शांति और अमन के रास्ते तलाशे। मौलाना वहीदुद्दीन खान हमेशा तमाम भारतवासियों के बीच बेहतर संबंधों की बात करते थे वह अतिवाद और कट्टरता विरोधी थे। उनका पूरा साहित्य शांति और अमन का खजाना है। वह धर्म की उन बातों पर जोर देते थे जो तमाम धर्मों में एक जैसी हैं उनकी किताबें और साहित्य हमारे लिए भविष्य का रास्ता है
यह वक्तव्य दिल्ली मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष कलीमुल हफीज का है जिन्होंने प्रेस को जारी एक शोक बयान में मौलाना को लेकर अपना दुख ,पीड़ा और शोक जताया
उन्होंने कहा कि मौलाना को पद्मा विभूषण सहित दर्जनों सम्मानों से सम्मानित किया गया था, लेकिन वास्तव में मौलाना का व्यक्तित्व भारत के लिए एक सम्मान था। मौलाना इस्लाम के प्रचारक और विचारक भी थे। मौलाना वहीदुद्दीन खान ने बहुत सारी किताबें लिखीं उनके विचारों के कारण इस्लाम धर्म के बहुत से अछूते पहलू सामने आए
मौलाना के संपादन में प्रकाशित मासिक अल-रिसाला ने अपनी पहचान बनाई आज भी इस मासिक मैगजीन का महत्व बना हुआ है।
हालांकि वह लंबे समय से बीमार थे, ۔۔۔۔अल्लाह ने उनको लंबी आयु (98 वर्ष) दी,अल्लाह ने उनसे बड़ा काम लिया। अब यह उनके मानने वालों की जिम्मेदारी है कि वे उनके मिशन को आगे तक लेकर जाएं । कलीमुल हफ़ीज़ ने कहा कि मौलाना का एक गुण यह है कि उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दी और उन्हें अपने मिशन का भागीदार बनाया। उनकी एक बेटी फरीदा खानम जो जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हैं। उन्होंने मौलाना की बहुत सारी किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद किया और वह अल-रिसाला अंग्रेजी की संपादक भी हैं। उनके बेटे डॉ जफरुल इस्लाम खान साहब खुद एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक विद्वान हैं। अल्लाह मौलाना की मगफिरत फरमाए और उनके दरजात बुलंद करे. (आमीन)
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