वकील हत्याकांड के विरोध में बायकॉट के चलते आज मोहम्मद शुऐब साहब की सुनवाई नहीं हो सकी। अगली तारीख़ मिलने का इंतज़ार है
सरकार की नजरों में रिहाई मंच के चुभने की वजहें, मंच से जुड़े रहे पूर्व न्यायाधीश-पुलिस अधिकारी, पत्रकार और विख्यात लोग
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पुलिस द्वारा बेगुनाहों पर की गई हिंसा पर कोई सवाल न उठ सके, इसलिए अब रिहाई मंच को निशाना बनाया जा रहा है | रिहाई मंच 2007 से ही लगातार पुलिस द्वारा प्रदेश में मुठभेड़ के नाम पर हत्याओं और दलितों-मुसलमानों के खिलाफ जातिगत-साम्प्रदायिक हिंसा पर सवाल उठाता रहा है | मंच ने नागरिकता संशोधन के खिलाफ भी सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की है |
19 दिसंबर की रात 23.17 बजे प्राथमिकी संख्या 600/2019 थाना हजरतगंज में पंजीकृत की गई | इसके तहत रिहाई मंच समेत कई संगठनों को ‘उपद्रव’ मचाने के लिए आरोपित किया गया | गौरतलब है कि इसमें रिहाई मंच अध्यक्ष समेत किसी भी सदस्य को नामजद नहीं किया गया है | झूठे मामले में फंसाकर रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब और एक सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर रॉबिन वर्मा को पुलिस द्वारा उठा लिया गया | उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब इमरजेंसी के दौरान मीसा के तेहत जेल में बंद रहे और रिहाई मंच के संस्थापक हैं | आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों की पैरवी करने के लिए मुहम्मद शुऐब आगे आये और दर्जन भर से ज्यादा बेगुनाहों को जेल से बाहर निकाला है।
2007–08 के दौरान सामाजिक, राजनैतिक और कानूनी लड़ाई में सक्रिय कुछ पत्रकार, वकील, और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 2012 ने रिहाई मंच के नाम से सांझा संगठन बनाया | रिहाई मंच पुलिस हिरासत में हुई मौतों, भड़काऊ भाषण, साम्प्रादायिक हिंसा, दलित-उत्पीड़न, मौजूदा आदित्यनाथ सरकार में मुठभेड़ के नाम पर हत्याओं, दलितों एवं मुस्लिमों पर रासुका थोपे जाने, मोब लिंचिंग आदि के सवालों को संवैधानिक एवं लोक्ततंत्रिक माध्यम से मजबूती से उठाता रहा है
संविधानिक आदर्शों के प्रति अपनी इसी प्रतिबद्धता को बनाये हुए मौजूदा सरकार द्वारा नागरिकता अधिनियम में किये जा रहे गैर-संवैधानिक बदलावों के खिलाफ देश भर में चल रहे आन्दोलनों के साथ रिहाई मंच भी खड़ा रहा है | जामिया और एएमयू पर नागरिकता संशोधन को लेकर हुए दमन के बाद इस बीच समय-समय पर सामूहिक शान्तिपूर्वक धरनों के माध्यम से अपना विरोध व्यक्त करता रहा है | शहीद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह के शहादत दिवस 19 दिसंबर को देश भर में नागरिकता संशोधन के खिलाफ हो रहे विरोधों की कड़ी में लखनऊ में भी सामूहिक प्रदर्शन हुए | 19 दिसंबर से पहले मुहम्मद शुऐब से प्रशासन लगातार वार्ता में रहा | लेकिन अचानक 18.12.2018 को शुऐब समेत 8 लोगों 107/116 द.प्र.स. और थोड़े ही देर बाद 144 द.प्र.स. के तहत नोटिस पकड़ाकर, मुहम्मद शुऐब को उन्हीं के घर में बंदी बना लिया | 19 दिसंबर 2018 रात 11.45 बजे शुऐब को उनके घर से पुलिस द्वारा नजीराबाद में सर्किल ऑफिसर से मिलने के बहाने चलने को कहा गया | अगले दिन सुबह तक जब उनकी कोई खबर न आई तो उनके परिजनों द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय कि लखनऊ पीठ के समक्ष हैबियस कार्पस याचिका दाखिल कर दी गई | लेकिन पुलिस सरेआम झुठ बोल रही है कि शुऐब को 20.12.19 को सुबह 08.45 बजे क्लार्क्स अवध तिराहा से गिरफ्तार किया गया था |
उसी रात को समाचार माध्यमों द्वारा मालुम चला कि एक राष्ट्रीय अंग्रेजी समाचार पत्र के पत्रकार को पुलिस ने उत्तर प्रदेश बीजीपी दफ्तर के बाहर एक ढाबे से उठा लिया है | इसके बाद पता चला कि उनके साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता रॉबिन वर्मा को भी पुलिस ने उठा लिया और उनकी थाने में बेरहमी से पिटाई की | इसके बाद उन्हें शिया पीजी कॉलेज, जहां वे पढ़ाते थे, वहां से बर्खास्त कर दिया गया | उनके घर में उनकी बीवी, दो साल की बच्ची और नवजात बेटा उनके इंतज़ार में है |
गौरतलब है कि एससी-एसटी एक्ट को कमज़ोर किये जाने के विरोध में 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद में दलितों के खिलाफ हुए पुलिसिया दमन को लेकर मंच ने जांच रिपोर्टों और कानूनी सलाह के माध्यम से मजबूती से सवाल उठाया था |
रिहाई मंच की बैठकों, सेमिनार, गोष्ठियों, जन-अभियानों से सम्बंधित प्रेस नोट/रिपोर्ट लगातार सार्वजनिक तौर पर साझा की जाती हैं | जिसपर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग लगातार संज्ञान लेकर कार्यवाही सुनिश्चित करने का आश्वासन देता रहता है | मंच की शिकायत के आधार पर आयोग प्रदेश में मुठभेड़ों के आधार पर हुई हत्याओं की जांच भी कर रहा है | सवर्ण आरक्षण और 13-पॉइंट रोस्टर जैसे मुद्दों पर देश भर में हुए आन्दोलन में मजबूती से आवाज़ उठाता रहा है |
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