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NEP: जमाअत ने कुछ चीज़ों का स्वागत तो कुछ को संविधान के खिलाफ बताया

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को संवैधानिक मूल्यों का पालन करना चाहिए: जमाअत

By: Mohammad Ahmad

नयी दिल्ली: देश की सर्वोच्च सामाजिक संस्थानों में से एक जमात ए इस्लामी हिंद ने आज मोदी सरकार के नेतृत्व में बनाई जाने वाली नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) पर अपना पक्ष देश के सामने रखते हुए कहा कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में राइट टू एजुकेशन की उम्र 18 साल किया जाना बिलकुल ठीक है. उन्होंने यू आर जी ग्रुप्स (URG) के लिए 200 जिलों में स्कूल खोले जाने के मोदी सरकार के कदम की प्रशंसा करते हुए कहा कि इन स्कूलों का मेयार नवोदय और KV से कम नहीं होना चाहिए.

 

 उन्होंने कहा कि जब हम शिक्षित भारत की बात करते हैं तो शिक्षा सब से पहले देश की आखिरी पंक्ति में खड़े हुए आखरी बच्चे को मिलनी चाहिए ताकि देश दुनिया की आंखों में आंखें डाल कर के बात कर सके, क्योंकि शिक्षा के बगैर हम दुनिया का नेतृत्व नहीं कर सकते. उन्होंने मौलाना आजाद स्कॉलरशिप के लिए अड़चनों का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह से इस स्कॉलरशिप को हासिल करने के लिए अड़चनें हैं उस से सरकार की मंशा ठीक नहीं मालूम होती है, इसलिए प्रधानमंत्री को इस में intervene करना चाहिए.

 

 उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के गठन पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह क़दम दर्शाता है कि सरकार शिक्षा को सेंट्रलाइज करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है जो कि देश के फेडरल सिस्टम के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा आयोग जरूरी नहीं हैं और UGC जैसे दूसरे संस्थान पूरी तरह से संपन्न और आजाद होने चाहिए और उसमें किसी तरह का कोई intervene बिल्कुल भी ठीक नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री किसी पार्टी का ही नेता होता है इसलिए इसका चेयरमैन किसी ऐसे व्यक्ति को बनाया जाए जो academician हो.

 

 उन्होंने कहा कि इस पॉलिसी में एक चीज और आपत्तिजनक है वह यह कि अंडर ग्रैजुएट बच्चों के डाटा लीक होने का ख़तरा है जो राइट टू प्राइवेसी के खिलाफ है इसलिए इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमने Mr. T. S. R Subramanian (सुब्रह्मण्यम) कस्तूरी रंजन दोनों कमेटियों के साथ साथ शिक्षा मंत्रालय (MHRD) को भी अपनी रिपोर्ट भेज दी है और हमें उम्मीद है कि फाइनल ड्राफ्ट तैयार करते वक्त इन सभी आपत्तियों पर सरकार पूरी ईमानदारी के साथ विचार-विमर्श करेगी

 

 ज्ञात रहे कि जमातअत इस्लामी हिंद के केंद्रीय शैक्षिक बोर्ड ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के मसौदे पर विभिन्न प्रश्न उठाए हैं और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को अपने सुझाव भेजकर मसौदे में बदलाव की मांग की है. मंत्रालय ने इस साल जून में एनईपी के मसौदे को सार्वजनिक किया था और जनता से 15 अगस्त तक सुझाव और प्रतिक्रिया मांगी थी.

जमाअत के केंद्रीय शैक्षिक बोर्ड के अध्यक्ष नुसरत अली ने शनिवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में एनईपी 2019 पर जमाअत की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि, “जमात सार्वजनिक महत्व के मुद्दों का ध्यान रखती है. इसने एनईपी 2019 का मसौदा तैयार करने वाली समिति को सिफारिशें भेज दी थीं. अब इसने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को अपने सुझाव भेज दिए हैं.”

बोर्ड ने अपने बयान में कहा, “एनईपी 2019 के मसौदे में बहुत से विरोधाभास और खामियां हैं. यह संवैधानिक संरचनाओं और मूल्यों का उल्लंघन करता है और व्यावसायीकरण को बढ़ावा देता है ...,”

प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए नुसरत अली ने कहा, "यह एनईपी के मसौदे से स्पष्ट नहीं है कि संवैधानिक मूल्यों को कक्षाओं में पढ़ाया जाना है. मसौदे में कहा गया है कि यह पिछली एनईपी रिपोर्टों की सिफारिशें शामिल कर रहा है लेकिन यह पता नहीं चल सका है कि ये सिफारिशें उपयोगी थीं या नहीं. एनईपी 2019 भी देश में वर्तमान शिक्षा की स्थिति के बारे में बात नहीं करता है.”

नुसरत अली जमाअत के कुछ शीर्ष नेताओं के साथ थे जिनमें मोहम्मद जाफर, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और टी आरिफ अली, राष्ट्रीय महासचिव शामिल थे. रिपोर्ट के विमोचन में जमाअत के शिक्षा विभाग के सहायक सचिव इनामुर्रहमान भी उपस्थित थे.

हम निजी स्कूलों के खिलाफ नहीं हैं बल्कि शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़ हैं:

 मीडिया को संबोधित करते हुए नुसरत अली ने स्पष्ट रूप से कहा: “हम निजी स्कूलों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम शिक्षा प्रणाली के निजीकरण के ख़िलाफ़ हैं. जांच और देख-रेख के लिए कोई तरीका अवश्य होना चाहिए.”

एनईपी 2019 भारत में शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण के लिए एक “विरोधाभासी दृष्टिकोण रखता है. जबकि ये मसौदा शिक्षा के सार्वजनिक व अच्छे स्वरूप को दर्शाता है, यह पूरे मसौदे में शिक्षा के व्यवसायिक रूप को प्रस्तुत करता है.”

जमाअत ने सुझाव दिया कि, "बढ़ते व्यावसायीकरण ने "डोनेशन" और "कैपिटेशन शुल्क" जैसे रूपों में भ्रष्टाचार को बढ़ा दिया है. पाठ्यपुस्तकों के लिए निजी अनुबंध हैं. निजी प्रकाशकों द्वारा महंगी खुदरा बिक्री को रोकने के लिए इसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए.

 शैक्षणिक संस्थानों के लाइसेंस का नियमितीकरण, फीस, ट्यूशन और हॉस्टल फीस के आधार पर सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

छात्रवृत्ति के लिए आसान प्रक्रिया:

जमाअत के शिक्षा बोर्ड ने ये सुझाव दिया है कि, “सरकार से छात्रवृत्ति प्राप्त करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ो की संख्या को कम करके छात्रों के लिए आसानी सुनिश्चित की जानी चाहिए.” प्रक्रिया को सरल और नि: शुल्क बनाया जाना चाहिए. नए नियम उपयुक्त नहीं हैं, यानी अल्पसंख्यकों के लिए मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (MANF) और SC - ST के लिए राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप (RGNF) के लिए CBSE-UGC NET की आवश्यकता. वे उच्च शिक्षा के लिए लाभार्थियों की पहुंच को कम करते हैं. इन नियमों को तत्काल प्रभाव से समाप्त किया जाना चाहिए. साथ ही फेलोशिप की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए.”

 अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग:

 जमाअत के शिक्षा बोर्ड ने अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के लिए दोषपूर्ण व अप्रभावी राष्ट्रीय आयोग (NCMEI) का मुद्दा भी उठाया. कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए शासन के दौरान, यह बोर्ड बहुत सक्रिय था और सैकड़ों शैक्षणिक संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था, लेकिन यह पिछले कुछ वर्षों से लगभग अप्रभावी रहा है.

जमाअत की मांग है कि, “राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग (NCMEI), संसद के अधिनियम के तहत एक वैधानिक बोर्ड है. इसे मज़बूत किया जाना चाहिए और इसके द्वारा दी गई संबद्धता को तदनुसार मान्यता दी जानी चाहिए और पूरे देश में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए.”

 

द्वारा जारी, मीडिया प्रभाग, जमाअत इस्लामी हिन्द

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