नई दिल्ली: मोदी सरकार एक बार फिर निशाने पर आयी है. देश में मॉब लिंचिंग के नाम पर हुए क़त्ल ए आम के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज की टिप्पड़ी सरकार को भारी पड़ सकती है और विपक्ष को एक और हथियार सरकार के खिलाफ मिल सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मॉब लिंचिंग को लेकर कहा है कि जब किसी शख्स को उसके खान-पान की वजह से पीट-पीटकर मार दिया जाता है तो यह उसकी नहीं, बल्कि संविधान की हत्या होती है. ‘जब किसी कार्टूनिस्ट को देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया जाता है, जब धार्मिक इमारत की आलोचना करने के लिए किसी ब्लॉगर को जमानत के बजाए जेल मिलती है तो इन सब की वजह से संविधान का हनन होता है.’
लाइव लॉ और दा वायर हिंदी की खबर के मुताबिक, जस्टिस चंद्रचूड़ बॉम्बे हाईकोर्ट में बॉम्बे बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित जस्टिस देसाई मेमोरियल लेक्चर में संबोधित कर रहे थे, जहां उन्होंने हाल की घटनाओं के संदर्भ में संविधान के महत्व पर बात की.
उन्होंने कहा, ‘जब धर्म और जाति के आधार पर लोगों को प्रेम करने का अधिकार नहीं दे पाते हैं, तो संविधान को तकलीफ पहुंचती है. ठीक ऐसा ही तब हुआ, जब एक दलित दूल्हे को घोड़े पर नहीं चढ़ने दिया गया. जब हम इस तरह की घटनाएं देखते हैं तो हमारा संविधान रोता हुआ दिखाई देता है.’
एक संवैधानिक संस्कृति इस विश्वास पर आधारित होती है कि वह जान-पहचान के दायरे से परे हटकर लोगों को एकसूत्र में पिरोती है. उन्होंने संविधान के बंधन मुक्त (आजाद) स्वरूप का भी जिक्र किया, जो हाल ही में सबरीमाला मंदिर के मामले में देखने को मिला.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने व्याख्यान की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक को याद करते हुए किया, जिन पर उसी अदालत में सालों पहले मुकदमा चलाया गया था.उन्होंने कहा कि संविधान ब्रिटिश राज से गणतंत्र भारत को सत्ता के हस्तांतरण का महज एक दस्तावेज नहीं है. संविधान एक परिवर्तनकारी विजन है, जो हर एक शख्स को मौका देता है. अपनी किस्मत आजमाने का. देश का हर एक शख्स उसकी मूलभूत इकाई है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने संविधान के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान अपना काम करता रहता है, बेशक इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़े. यह आपको प्रभावित भी करता है, बेशक आप इसमें विश्वास नहीं करें.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘विश्व में नए बदलाव हो रहे हैं, जो निजी और सांस्कृतिक पहचान की परिभाषा को तेजी से बदल रहे हैं. उन्होंने राष्ट्रवाद की नई नस्ल, धर्मनिरपेक्षताा और धार्मिक हिंसा के नए स्वरूप, यौन एवं सांस्कृतिक पहचानों की नई राजनीति का हवाला दिया जो लोगों और समाज के बीच बातचीत की प्रकृति को बदल रहे हैं.’ ‘कृत्रिम बुद्धिमता (आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस) जैसे तकनीकि विकासों के संदर्भ में व्यक्तित्व की परिभाषा बदलाव के दौर में है. संविधान के निर्माताओं को बेशक इन बदलावों का पूर्वाभास न हुआ हो. संविधान में मौन को परिवर्तनकारी और अनुकरणीय आदर्शों के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि संविधान जीवंत बना रहे और नए दौर की चुनौतियों का कुशलता से सामना कर सके.’ उन्हों ने कहा.
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