इस मीटिंग में जमीयत उलेमा-ए-हिंद सद्भावना मंच को भी संवैधानिक तौर से हरी झंडी मिलने की उम्मीद है. सूत्रों ने बताया कि 1919 में बनी जमीयत उलेमा-ए-हिंद हालात और परिस्थितियों के हिसाब से अपने आप को ढालने की कोशिश कर रही है और कैसे देश में भाईचारे और प्यार मोहब्बत को बढ़ावा दिया जाए इस पर चर्चा होगी, जिसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद अपनी एक ज़िम्मेदारी समझ कर कर रही है. क्योंकि इतिहास की किताबों में लिखा है कि देश की आज़ादी में अगर जमीअत का किरदार कांग्रेस से ज़ियादा नहीं तो कम भी नहीं है, क्योंकि मौलाना आज़ाद से ले कर मुफ़्ती किफ़ायतुल्लाह और दूसरे बड़े दिग्गज नेता जमीअत से जुड़े थे. यह वही मौलाना आज़ाद हैं जिन की मज़ार पर जड़े ताले को लेकर फ़ीरोज़े बख्त अहमद (मौलाना के हक़ीक़ी पोते और मानु के चांसलर) की अर्ज़ी पर सुनवाई करते हुए जस्टिस विजेंदर जैन दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि मौलाना के मज़ार पर जड़ा ताला फ़ौरन खुलना चाहिए क्यों कि देश की आज़ादी के लिए मौलाना की क़ुर्बानियां गांधी जी और पंडित नेहरू से कहीं ज़ियादा हैं.
जमीयत की जनरल काउंसिल 12 को, संविधान में तबदीली और फीस में बढ़ोतरी समेत कई मुद्दों पर होगी चर्चा
सूत्र बताते हैं कि इस मीटिंग में मदरसों के आधुनिकीकरण और उन की शिक्षा प्रणाली पर भी चर्चा होने की संभावना है.
नयी दिल्ली: 12 सितंबर 2019 को होने वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद की जनरल काउंसिल की मीटिंग काफी अहम मानी जा रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस मीटिंग में देशभर से जनरल काउंसिल के कुल 3200 सदस्यों के हिस्सा लेने की संभावना है. सूत्र बताते हैं कि यह मीटिंग 12 सितंबर को सुबह 9:00 बजे जमीयत उलेमा-ए-हिंद के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित हेड क्वार्टर के मदनी हाल में होगी.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस मीटिंग में fascism को लेकर चर्चा होने की संभावना है, जिसमें हिन्दुत्व की SUPREMACY पर चर्चा हो सकती है. सूत्र बताते हैं कि जमीयत के संविधान में तब्दीली को लेकर भी इस मीटिंग में चर्चा होगी. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक्टिव मेंबर की नयी शिक संविधान में जोड़ी जा सकती है और साथ ही युथ लीडरशिप और दीगर मुद्दों पर भी चर्चा होने की संभावना है, जिस में अब तक चली आ रही 02 रुपया की membership को बढ़ाया जासकता है.
सूत्रों ने बताया कि 11 September को वर्किंग कमेटी की मीटिंग होगी जिसमें 21 मेंबर और 20 के आसपास स्पेशल इनवाइटीज़ यानी कुल 40 से 41 लोगों के उपस्थित होने की संभावना है जिसमें इन मुद्दों पर औपचारिक चर्चा होगी और आखरी फैसला जनरल काउंसिल की मीटिंग में होगा.
इस मीटिंग में जमीयत उलेमा-ए-हिंद सद्भावना मंच को भी संवैधानिक तौर से हरी झंडी मिलने की उम्मीद है. सूत्रों ने बताया कि 1919 में बनी जमीयत उलेमा-ए-हिंद हालात और परिस्थितियों के हिसाब से अपने आप को ढालने की कोशिश कर रही है और कैसे देश में भाईचारे और प्यार मोहब्बत को बढ़ावा दिया जाए इस पर चर्चा होगी, जिसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद अपनी एक ज़िम्मेदारी समझ कर कर रही है. क्योंकि इतिहास की किताबों में लिखा है कि देश की आज़ादी में अगर जमीअत का किरदार कांग्रेस से ज़ियादा नहीं तो कम भी नहीं है, क्योंकि मौलाना आज़ाद से ले कर मुफ़्ती किफ़ायतुल्लाह और दूसरे बड़े दिग्गज नेता जमीअत से जुड़े थे. यह वही मौलाना आज़ाद हैं जिन की मज़ार पर जड़े ताले को लेकर फ़ीरोज़े बख्त अहमद (मौलाना के हक़ीक़ी पोते और मानु के चांसलर) की अर्ज़ी पर सुनवाई करते हुए जस्टिस विजेंदर जैन दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि मौलाना के मज़ार पर जड़ा ताला फ़ौरन खुलना चाहिए क्यों कि देश की आज़ादी के लिए मौलाना की क़ुर्बानियां गांधी जी और पंडित नेहरू से कहीं ज़ियादा हैं.
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