पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद के फैसले के अनुसार, संगठन के नॉर्थ ज़ोन सचिव अनीस अंसारी ने बाबरी मस्जिद मालिकाना हक के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए, क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की है। इससे पहले चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, अशोक भूषण, एस. अब्दुल नज़ीर और संजीव खन्ना की बेंच के बंद कमरे की बैठक में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर दाखिल की गई सभी पुनर्विचार याचिकाओं को 12 दिसंबर 2019 को खारिज कर दिया था। पॉपुलर फ्रंट की ओर से 11 फरवरी को क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की गई है, जो अभी पेंडिंग है।
यह क्यूरेटिव पिटिशन रूपा अशोक हुर्रा मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों को सामने रखते हुए दाखिल की गई है, जिसमें अदालत ने कहा था कि ‘‘उन सभी बुनियादों को गिनना ना तो उचित है और ना ही संभव, जिनको सामने रखते हुए ऐसी याचिकाओं पर विचार किया जा सकता है। मगर याचिकाकर्ता को राहत दी जा सकती है, अगर वह साबित करे कि (1) उस मामले में जिसमें वह पक्ष तो नहीं, लेकिन फैसले से उसके हितों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है, उसमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है, या अगर वह पक्ष हो लेकिन उसे कार्यवाही की जानकारी न दी गई हो और कार्यवाही इस तरह आगे बढ़ाई गई हो जैसे उसे उसकी जानकारी दी गई है और (2) अगर कार्यवाही में जज इस मामले या पक्षों से अपने संबंध को स्पष्ट करने में नाकाम रहे, जिसके कारण पक्षपात का संदेह होने लगे और फैसले से याचिकाकर्ता पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा हो।’’
याचिका में यह कहा गया है कि, ‘‘क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने वाला व्यक्ति भले ही इस मामले में पक्ष नहीं है, लेकिन बाबरी मस्जिद मालिकाना हक के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले से उसके हित पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। याचिकाकर्ता ने ठोस ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों के आधार पर अदालत से न्याय की मांग की है।’’
याचिका में खुली अदालत में सुनवाई की भी मांग की गई है। साथ ही याचिका में 30 दिसंबर 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को अमल में लाने पर रोक लगाने; और 9 नवंबर 2019 के उच्चतम न्यायालय के फैसले को अमल में लाने पर रोक लगाने के साथ-साथ 9 नवंबर 2019 के उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक बेंच के फैसले के अनुसार कोई भी कदम उठाने से केंद्र सरकार को रोकने की मांग की गई है।
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