प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जजों और मुख्यमंत्रियों के सामने कोर्ट में स्थानीय भाषाओं के प्रयोग का उठाया मुद्दा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शीघ्र ही एक जॉइंट कांफ्रेंस का सम्मेलन किया। जॉइंट कांफ्रेंस में देश के सभी राज्य के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेश के लेफ्टिनेंट गवर्नर, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और हाई कोर्ट के सभी जज मौजूद थे। इसी के साथ कानून और न्याय के मंत्री किरेन रिजिजू भी मौजूद थे।
उपस्थित सभी मुख्यमंत्रियों और जजों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “हमारे देश में जहां एक ओर न्यायालयों की भूमिका संविधान संरक्षक की है वही विधान मंडल नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का संगम, यह संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्यायव्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा।”
देश में पहले भी न्यायधीशों और मुख्यमंत्रियों की जॉइंट कांफ्रेंस होती है। जिससे कुछ न कुछ नए विचार निकले है। लेकिन इस बार यह जो आयोजन है अपने आप में और भी ज़्यादा खास है। आज यह कांफ्रेंस एक ऐसे समय में हो रही है जब देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आजादी के इन 75 सालों में न्यायलय और कार्यपालिका दोनो की ही भूमिका और जिम्मेदारी को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरत हुई वहां देश को दिशा देने के लिए यह संबंध लगातार बढ़ा है।
भविष्य की ओर इंगित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि जब 2047 में जब देश आज़ादी के 100 साल पूरे करेगा तब हम देश में कैसी न्यायव्यवस्था देखना चाहेंगे। हमें सोचना चाहिए कि हम किस तरह अपने न्यायिक प्रणाली को इतना समर्थ बनाए कि वो 2047 के भारत के आकांक्षाओं को पूरा कर सके। उनपर खरा उतर सके। यह प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने यह जानकारी देते हुए कहा कि आज न्यायिक प्रणाली को बेहतर करने की कोशिश चल रही है। केस मैनेजमेंट के लिए आईसीटी के इस्तेमाल को शुरुआत भी की गई है। सबोर्डिनेट कोर्ट्स और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से ले कर हाई कोर्ट तक सभी खाली सीटों को भरने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही न्यायिक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए भी देश में व्यापक काम हो रहा है और इसमें राज्यों की भी बहुत बड़ी भूमिका है।
आज पूरी दुनिया में नागरिकों के अधिकार के लिए और उनके सशक्तिकरण के लिए तकनीकीकरण एक बहुत ही अहम औजार बन चुकी है। हमारे न्यायिक सिस्टम में भी तकनीकीकरण की संभावनाओं से आप सब परिचित है। भारत सरकार भी तकनीकीकरण को डिजिटल सिस्टम का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा मानती है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री ने न्यायालयों में इस्तेमाल की भाषाओं पर अपना मत रखा। उन्होंने कहा कि, “आज भी न्यायालयों में सारी कार्यवाही अंग्रेज़ी भाषा में होती है। और लोगो को कोर्ट में यह प्रक्रिया बहुत कठिन लगती हैं। हमे न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बनेगा।”
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