सैय्यद क़ासिम
सपा बसपा गठबंधन होने और 38 सीट 38 सीट पर चुनाव लड़ने के फार्मूले पर सहमति बन जाने के बाद उत्तरप्रदेश में योगी मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा का रथ रुकता तो दिखाई दे रहा है मगर दोनों दलों के लोकसभा चुनाव लड़ने वाले अधिकतर नेताओं के सामने सीट का संकट खड़ा हो गया है, जहां बहुजन समाज पार्टी से अंतिम समय में टिकट मैनेज करके चुनाव लड़ने की इक्षा रखने वाले अधिकतर धनाढ्य प्रत्याशियों को सीट बंटवारे में समाजवादी पार्टी को चले जाने के कारण झटका लगा है वहीं भैया तुम पर जान कुर्बान गैंग के साथ भी यही समस्या है कि जिस सीट से अखिलेश ब्रिगेड के युवा तैयारी कर रहे थे वह बटवारे में बसपा को जा चुकी है ऐसी स्थिति में दोनों तरह के प्रत्याशियों के पास प्रियंका के नेतृत्व वाली कांग्रेस बड़ा विकल्प बनकर सामने आ गयी है।
अच्छे प्रत्याशियों और धन की कमी से जूझ रही कांग्रेस को भी ऐसे नेताओं की तलाश थी जिसे सपा बसपा के बागी पूरा कर सकते हैं । जहां बहजन समाज पार्टी के पूर्व में बड़े नेता रहे आरके चौधरी,इंद्रजीत सरोज,पूर्व सांसद कैसर जहां,पूर्व विधायक जसमीर अंसारी,पूर्व सांसद रीना चौधरी ,पूर्व सांसद डॉक्टर बलिराम,पूर्व सांसद बलिहारी बाबू सीट विहीन हो चुके हैं वहीं समाजवादी पार्टी के भी लगभग दो दर्जन बड़े नेताओं को भी कांग्रेस बेहतर विकल्प लग रहा है।
भारतीय जनता पार्टी जिसने अपने आधे वर्तमान सांसदों का टिकट काटने का फार्मूला तैयार किया था वह भी आप रक्षात्मत हो गयी है मगर उसके सामने भी सवर्ण आरक्षण के बाद अन्य पिछडा वर्ग का वोट बिना उम्मीदवार लड़ाय पाना कठिन है ऐसी स्थिति में कांग्रेस नेताओं की बांछें खिली हुई हैं।प्रियंका गांधी की टीम के बहुत मज़बूत सदस्य ने बताया कि जहां हम इस बात को लेकर चिंतित थे की ''हमे 80 लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रत्याशी नही मिलेंगे आज हम हर लोकसभा में तीन चार प्रत्याशियों में बेहतर कौन के चयन की स्थिति में आ गए हैं ''
भाजपा सपा के टिकट वितरण के बाद उत्तर प्रदेश की चुनावी तस्वीर बदलती दिखाई देगी दोनों दलों की भगदड़ का सबसे बड़ा लाभ कांग्रेस को होने जा रहा है। 13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर विश्वविद्यालय का ओबीसी छात्र और तदर्थ शिक्षक सड़क पर है और मायावती ,अखिलेश यादव के इस मुद्दे पर चुप रहने को लेकर सोशल मीडिया पर सामाजिक न्याय समर्थक वर्ग का रोष देखा जा सकताहै। 10 % आरक्षण और विश्वविद्यालय के 13 पॉइंट रोस्टर प्रणाली को लेकर बड़े पैमाने पर ओबीसी सवर्ण के बीच विभाजन की रेखा खींच रही है जिससे एसएसटी ओबीसी एक प्लेटफार्म पर आता दिखाइडे रहा है जिसका नुकसान भाजपा ,सपा ,बसपा सभी को हो सकता है।
तेजस्वी यादव, कुशवाहा ,समेत डीएमके नेता स्टॅलिन ने 13 पॉइंट रोस्टर को मुद्दा बना दिया है जिससे जुड़ना अखिलेश यादव मायावती समेत सभी सामाजिक न्याय के नाम पर लड़ने वाले दलों की मजबूरी होगी यदि वे ऐसा नही करते हैं तो आगामी चुनाव में उनको इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। 2019 का चुनाव आम चुनाव नही कहा जा सकता और सरकार किसकी पीएम कौन का गणित लगाना अभी बहुत जल्दबाज़ी होगा
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