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तो क्या सच में उद्धव ठाकरे सरकार को खतरा है? खतरे का पूरा सच!

अब कांग्रेस के उस नेतृत्व को सतर्क रहने की जरूरत है जो राहुल गांधी को अपना नेता मानता है

By: वतन समाचार डेस्क
फाइल फोटो
  1. तो क्या सच में उद्धव ठाकरे सरकार को खतरा है? खतरे का पूरा सच!
  2. अब कांग्रेस के उस नेतृत्व को सतर्क रहने की जरूरत है जो राहुल गांधी को अपना नेता मानता है

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रोगी मीडिया ने ली सरकार को अस्थिर दिखाने की ज़िम्मेदारी!

उद्धव ठाकरे सरकार को लेकर तरह तरह की खबरों के बीच एक अहम जानकारी सामने आ रही है। सूत्रों के मुताबिक रोगी मीडिया के एक धड़े ने इस बात की जिम्मेदारी ली है कि वह दिल्ली में बैठे बैठे उद्धव सरकार को अस्थिर (Unstable) दिखाने का पूरा प्रयास करेगा। सूत्र बताते हैं कि इसी कड़ी में बीते रोज कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मौजूदा सांसद राहुल गांधी के बयान को भी पेश किया गया, ताकि देशवासियों को यह बताया जा सके कि महाराष्ट्र सरकार Unstable है और फिर जो कुछ मध्यप्रदेश में हुआ उसी तरह की कोशिश महाराष्ट्र में भी की जा सके।  सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था जैसी खबरें मीडिया में प्लांट की गई हैं। उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि हम महाराष्ट्र में उस स्थिति में नहीं हैं, जिस स्थिति में छत्तीसगढ़ राजस्थान या पंजाब में हैं, जोकि सच भी है।

 

पीछे की कहानी कुछ और है!

 ज्ञात रहे कि इन तीनों राज्यों (छत्तीसगढ़ राजस्थान और पंजाब) में कांग्रेस अपने दम पर सरकार चला रही है जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार के साथ है। जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी के हवाले से इस तरह की खबरें चला करके सरकार की अस्थिरता (instability) दिखाने की कोशिश हो रही है, और उसके पीछे कहानी कुछ और ही चल रही है।

 

एक्शन में पवार!

 सूत्रों ने बताया कि इन तमाम गठजोड़ और गतिविधियों के बीच एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने महाराष्ट्र सरकार की कमान अपने हाथ में ले ली है। सूत्र बताते हैं कि पवार किसी भी सूरत में सरकार को अस्थिर नहीं होने देना चाहते हैं। जानकार बताते हैं कि पवार सियासत के न सिर्फ चनकिया (Chanakya) हैं बल्कि महाराष्ट्र के रग-रग से वाकिफ हैं और सरकार कैसे चलानी है? कैसे उसको आगे ले जाना है? कैसे उसको मजबूती देनी है? उनसे बेहतर कोई नहीं जानता है।

 

राहुल विरोधी नेता भी शक के दायरे में

 जानकारों का यह भी कहना है कि कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता हो सकते हैं जिन्होंने राहुल गांधी की छवि को धूमिल किया है, क्योंकि राहुल को लेकर पहले जिस तरह की ख़बरें मीडिया में प्लांट की गई हैं वह घर का भेदी ही बता सकता हैं, वह भी इस प्रोपेगेंडा का हिस्सा हो सकते हैं। इस तरह की खबरें इसलिए चलाई जा रही हों ताकि राहुल के बढ़ते क़द को फिर महाराष्ट्र और देश के लेबल पर कम किया जा सके। 

 

 

जानकार बताते हैं कि शरद पवार किसी जोखिम के मूड में नहीं हैं और उन्हों ने खुद ही आगे का लाइन ऑफ़ अफेक्शन तय किया है। जानकारों के मुताबिक महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के जरिए चुनाव के दौरान एक शो में शरद पवार को लेकर दिए गए बयान से शरद पवार काफी दुखी हैं, और इससे एनसीपी ही नहीं बीजेपी के भी कुछ नेता नाराज़ बताये जा रहे है। वह बीजेपी को कोई ऐसा मौका नहीं देना चाहते हैं जिससे बीजेपी महाराष्ट्र में मध्यप्रदेश वाला गेम कर सके।

 

 

ज्ञात रहे कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद जिस तरह से ठाकरे ने काम किया है उसकी न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी प्रशंसा हो रही है।  जानकारों का कहना है कि कांग्रेस से जुड़े कुछ नेता अगर सरकार को अस्थिर कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने गोवा समेत कई राज्यों में किया है तो यह कांग्रेस के लिए ठीक नहीं होग।  इसलिए राहुल गांधी को अभी से इस पर कड़ी नजर रखनी होगी, क्योंकि जानकारों का मानना है कि साउथ में एक के बाद एक राज्य जिस तरह से कांग्रेस के हाथ से निकल गया यह दिल्ली में बैठे उन्हीं कांग्रेस नेताओं की गलती से हुआ जो राहुल को आज कमज़ोर कर रहे हैं और उन्होंने उन नेताओं को उस वक़्त कांग्रेस के आला कमान से मिलने तक नहीं दिया था, वरना आज कांग्रेस की तिलंगा से लेकर AP में सरकार होती और कांग्रेस को यह दिन नहीं देखना पड़ता।

 

 

 सियासत के जानकार बताते हैं कि तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता हों या फिर YSR कांग्रेस के नेता सब पहले कांग्रेस आला कमान से मिलना चाहते थे, लेकिन दिल्ली में बैठे सत्ता के नशे में चूर कांग्रेस के नेताओं ने उनको आला कमान से नहीं मिलने दिया और गांधी परिवार को मिस लीड करते रहे कि यह लोग पार्टी नेतृत्व को आगे challenge कर सकते हैं, हालांकि जबसे कांग्रेस राज्यों में कमज़ोर हुयी तभी से दूसरे दल मज़बूत हुए, चाहे वह ममता हों, पवार, जगन या फिर आज संगमा की पार्टी सब कांग्रेस से ही निकले और आज सियासत के शिखर पर हैं और ताज़ा मिसाल सिंधिया की है, कि जब पूर्व CM के बेटे को टिकट मिल सकता है तो सवाल यह पैदा होता हैं कि क्या सच में सिंधिया अध्यक्ष पद के लायक नहीं थे कि पार्टी ने सत्ता गँवा दी लेकिन उनको प्रदेश अध्यक्ष तक नहीं बनने दिया। पार्टी नेतृत्व के साथ जगन और KCR जैसे नेताओं का संवाद नहीं होने देने का खामियाज़ा आज कांग्रेस पार्टी को वैसे ही भुगतना पड़ रहा ह।

 

 

 जानकार बताते हैं कि बीते 15 सालों में महाराष्ट्र में कांग्रेस को कांग्रेस के नेताओं ने ही कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिस तरह से ऐसे लोगों को राज्य की जिम्मेदारी दी गई और उनसे पूछ ताछ नहीं हुयी उलटे उनका प्रमोशन पर प्रमोशन हुआ जिन की अगुवाई में पार्टी को हार पर हार मिलती रही, जिससे उनको राज्य में कांग्रेस को कमजोर करने का हौसला भी मिलता रहा। यही हाल दूसरे राज्यों में भी हुआ, जिन के नेतृत्व में पार्टी बिहार में हारी और उपचुनाव तक में धराशायी होगई उनको इनाम में दिल्ली की गद्दी देदी गयी। जानकारों का मानना है कि जब आप सत्ता में होते हैं तब आप का इम्तेहान नहीं होता है, विपक्ष में रह कर पार्टी को बचाना और जीत दिलाना सब से अहम् होता है।   

 

दिल्ली में जब कांग्रे सत्ता में थी तो खामियां नजर नहीं आ रही थीं, लेकिन सत्ता से जाते ही पार्टी बिखर गयी। जानकारों का मानना है कि यही हाल सेंट्रल इलेक्शन कमेटी CEC से संबंधित नेताओं का हुआ कि जब पार्टी को हार पर हार मिल रही थी तो उन से पूछ ताछ के बजाये उनका प्रमोशन हुआ और एक दो नहीं बल्कि आधे दर्जन राज्य का उनको प्रभार भी इनाम में दे दिया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं दिल्ली में बैठे कुछ कांग्रेसी नेता पार्टी की कमर तोड़ देना चाहते हैं।

 

 

 जानकारों का मानना है कि तथाकथित बुद्धिजीवियों को पार्टी से निकालने और तथाकथित सलाहकारों को पार्टी में साइड लाइन किये जाने के बाद यह माना जा रहा था कि अब पार्टी पूरी तरह से मजबूत होगी, लेकिन तथाकथित सलाहकारों की पार्टी पर होती गिरफ्त यह दर्शाती है कि कहीं ना कहीं पार्टी को फिर से कमजोर करने की पूरी तैयारी है, लेकिन यह किस के इशारे पर हो रहा है? इसे पार्टी नेतृत्व को संजीदा तरीके से लेना होगा, वरना आने वाले दिनों में पार्टी को इसके घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते है।  जानकारों का यह भी मानना है कि दिल्ली में कांग्रेस के ऐसे नेता जिन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ खबरें प्लांट की हैं, राहुल गांधी को भी अपनी पार्टी के ऐसे नेताओं से सतर्क रहना होग।  वह नेता जो पिछले 20 25 वर्षों से निरंतर कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं, लेकिन पार्टी उनकी सेवाएं नहीं ले रही है इसलिए उन नेताओं के मनोबल को भी संभालना भी पार्टी के लिए अहम होग।

 

 

दूसरी पीढ़ी के दलित आदिवासी OBC या मुस्लिम नेताओं का उदय ना होना भी पार्टी के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। पार्टी को इस बात पर विचार विमर्श करना होगा कि अब तक ऐसा क्यों नहीं हुआ और इसके लिए दोषी कौन लोग हैं? जानकार मानते हैं कि अगर उद्धव ठाकरे की सरकार को कांग्रेस की ओर से कमजोर करने की कोशिश हुई तो कांग्रेस महाराष्ट्र में पूरी तरह से खत्म हो सकती है, इसलिए कांग्रेस को भूलकर भी यह गलती नहीं करनी होगा और राहुल को खुद ही पावर से बात करनी होगी, क्योंकि अगर सरकार कमज़ोर होती हैं तो कांग्रेस के यह तथा कथित नेता इसका ठीकरा राहुल गांधी पर फोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और मीडिया के जरिए से ऐसी खबरें प्लांट कराएंगे जिस से राहुल गांधी के बढ़ते क़द को कमज़ोर किया जाय, क्यों कि इन्हीं नेताओं ने नाना पटोले की जगह ऐसे लोगों को लाने की कोशिश की थी जिन कि ज़मीन पर कोई पकड़ नहीं है।

 

 

 जानकारों का यह भी मानना है कि राहुल गांधी को प्रेस कॉन्फ्रेंस से भी ज़्यादा क़रीब नहीं आना चाहिए, यह भी उनके क़द को कम करने का एक ज़रिया हो सकता है। इसलिए अब कांग्रेस के उस नेतृत्व को सतर्क रहने की जरूरत है जो राहुल गांधी को अपना नेता मानता है।

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