दिल्ली हिंसा पर अब बीजेपी अपने सहयोगियों के जरिए से ही घिरती जा रही है। दिल्ली हिंसा के बाद लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान ने अपनी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी को घेरा है। उन्होंने अनुराग ठाकुर प्रवेश वर्मा और गिरिराज सिंह के भड़काऊ बयानों पर आपत्ति दर्ज कराई है और साथ ही कपिल मिश्रा को भी निशाने पर लिया है। वहीं बीजेपी के दूसरे सहयोगी दलों ने भी भारतीय जनता पार्टी को घेरा है.
बीजेपी की पूर्व सहयोगी शिवसेना ने भी भाजपा को नसीहत दी है. शिवसेना ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सामना में कहा है कि जब दिल्ली जल रही थी तो देश के गृहमंत्री कहां थे? शिवसेना ने आगे कहा है कि यह एक शर्मनाक घटना है. शिवसेना ने कहा है कि इस तरह की घटनाएं समाज के लिए निंदनीय है और कबूल नहीं की जा सकती. शिवसेना ने केंद्र सरकार से तीखे सवाल भी किए हैं, वही जावेद अख्तर ने भी इस पूरे दंगे पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
बीते रोज जावेद अख्तर ने लिखा कि संयोग से आरोपी का नाम ताहिर हुसैन है. आज जावेद अख्तर ने इस को आगे बढ़ाते हुए लिखा है कि अकेले ताहिर पर एक्शन क्यों? ज्ञात रहे कि ताहिर हुसैन ने खुद को बेकसूर बताया है और दंगों से पहले या दंगों के बाद कभी भी ताहिर का कोई भड़काऊ बयान नहीं आया था. ताहिर ने खुद को पीड़ित बताया है और मीडिया से बातचीत में उन्होंने इसके कई सारे प्रमाण भी पेश किए हैं. उन्होंने कहा है कि उन्होंने खुद को बचाने के लिए 100 नंबर पर अनेकों काल की और साथ ही अलग-अलग अधिकारियों को भी उन्होंने काल की ताकि उनको बचाया जा सके. उन्होंने आरोप लगाया कि उनको फंसाने की कोशिश हो रही है. ताहिर हुसैन ने जांच में भी पूरी तरह सहयोग करने का भरोसा दिलाया है. उन्होंने कहा है कि वह जांच में हर तरह के सहयोग के लिए तैयार हैं.
Delhi violence के लिए LJP अध्यक्ष चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने कपिल मिश्रा (Kapil Mishra), अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और गिरिराज सिंह के भड़काऊ भाषण पर नाराजगी जताई है। उन्होंने बीजेपी से इन नेताओं पर कार्रवाई की मांग की है।
राजधानी दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में भड़की हिंसा में अब तक 38 लोगों की मौत हो चुकी है। पूरे मामले में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के भड़काऊ भाषण की बार-बार चर्चा हो रही है। हाई कोर्ट ने भी मामले की सुनवाई के दौरान इस पर कड़े तेवर दिखाए थे। अब बीजेपी की सहयोगी पार्टियां कड़वे सवाल पूछने पर आमादा हो गई हैं।
इन दलों ने बीजेपी की नीयत पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। गुरुवार को शिरोमणि अकाली दल के सांसद नरेश गुजराल ने दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाया था। उन्होंने कहा था कि दिल्ली पुलिस ने 16 मुसलमानों को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसके बारे में उन्होंने ख़ुद पुलिस को इत्तला किया था। गुजराल ने कहा कि उनके ये कहे जाने के बावजूद कि वो सांसद हैं, पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुंची। गुजराल ने कहा था कि उन सबकी जान ख़तरे में थी फिर भी पुलिस ने शिथिलता बरती।
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दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है और इस तरह केंद्रीय गृह मंत्री की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। बीजेपी शीर्ष नेतृत्व से भी सवाल पूछे जा रहे हैं। बीजेपी की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने आरोप लगाया कि कुछ ‘भगवा नेताओं के भड़काऊ भाषण’ ने पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा को भड़काया।
चिराग पासवान ने अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए कहा, “बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को नफ़रत भरे भाषणों और बयानों के लिए कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा और गिरिराज सिंह जैसे नेताओं के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। मिश्रा के बयान ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़काने का काम किया, तो ठाकुर के बयान ‘गोलो मरो…’ का जामिया क्षेत्र में विरोध और हिंसा पर असर पड़ा।”
एलजेपी अध्यक्ष ने कहा, “माहौल ख़राब करने वाले इन सभी नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की ज़रूरत है। मैं उनका नाम बता रहा हूं। जिस तरह से कपिल मिश्रा ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जाने के बाद वे कदम उठाएंगे और वह भी वरिष्ठ पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में, वह हिंसा का एक मुख्य कारण था।”
चिराग पासवान ने केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के हालिया बयान की भी आलोचना की। गिरिराज सिंह पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि कुछ नेताओं ने ग़लत बयान दिए हैं और बीजेपी नेतृत्व को इनके ऊपर कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा, “यह देश सभी का है। यह जितना हिंदुओं का है, उतना ही मुसलमानों, सिखों और ईसाईयों का भी है। देश के विकास में सभी लोगों की भागीदारी है। आप समाज के किसी एक वर्ग पर आरोप नहीं लगा सकते हैं और न ही उसे किनारे कर सकते हैं।”
आपको बता दें कि गिरिराज सिंह ने बीते दिनों कई विवादित बयान दिए थे। बिहार की एक रैली के बाद उन्होंने कहा था, “हमारे पूर्वजों ने एक ग़लती की है। यदि वे यह तय कर लेते कि 1947 विभाजन के बाद सारे मुसलमान पाकिस्तान चले जाएं और हिंदुओं को (पाकिस्तान) यहां (भारत) ले आया जाता, तो नागरिकता (संशोधन) अधिनियम की आवश्यकता उत्पन्न नहीं हुई होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हमने इसके लिए भारी क़ीमत चुकाई। जब हमारे पूर्वज आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, जिन्ना इस्लामिक स्टेट के निर्माण पर ज़ोर दे रहे थे।”
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